Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 1
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 551
________________ ५२८ धर्मशास्त्र का इतिहास ब्रा० ३१७/४)। अध्वर्यु उन्हें नीचे से ऊपर की ओर जल से धो देता है। जैमिनि (३।८।३२) का कहना है कि दो पवित्र और विधुतियाँ कटे हुए बहिनों से नहीं बनायी जाती हैं, प्रत्युत परिभोजनीय नामक कुशों से बनायी जाती हैं। अध्वर्यु उच्च स्वर से उद्घोष करता है--"गाय, रस्सियों एवं सभी पात्रों को पवित्र करो।" तब वह अग्निहोत्रहवणी के भीतर दोपवित्र रख देता है, उसमें जल छोड़ता है, पवित्रों को पूर्व दिशा में रखकर जल का पभित्र करता है, इसी प्रकार पवित्रों को पुनः उनके स्थान पर लाता है और उनके ऊपरी छोरों को तीन बार उत्तर की ओर उठाकर तै० सं० (११११५।१) का मन्त्र पढ़ता है। तब वह जल का आह्वान करता है (तै० सं० १११।५।१, वाज० ११२-१३), पात्रों के मुख को ऊपर करता है, उन पर तीन बार जल छिड़कता है और कहता है-"आप देव-पूजा के लिए इस दिव्य कृत्य को पवित्र करें" (तं० सं० १३१।३।१)। वह दोनों पवित्रों को सुपरिचित स्थान पर रख देता है। वह 'एता आचरन्ति' ('तै० ब्रा० ३।७।४) नामक मन्त्र के साथ चरागाह से आनेवाली गायों की बाट जोहता है। अध्वर्यु मन्त्र के साथ (तै० सं० ११११७४१) उपवेष द्वारा गार्हपत्य से अंगार लेकर उत्तर की ओर ले जाता है। उखा को उन अंगारों पर रख देता है और उसके चारों ओर कोयले सुलगा देता है और कहता है-"आप लोग भृगुओं एवं अंगिराओं के तप की भाँति गर्म हो जायें" (तै० सं०१।१७।२)। तब वह दूध दुहने वाले को आज्ञा देता है-"जब बछड़ा गाय के पास चला जाय तो मुझसे कहना।" वह मन्त्र के साथ उखा में पूर्व की ओर नोंक करके शाखापवित्र को रखता है और उसका स्पर्श करके मौन हो जाता है तथा शाखापवित्र को पकड़े रहता है; दूध दुहने वाला अभिधानी (रस्सी) को 'अदित्य रास्नासि' (तै० सं० १११।२।२) के साथ एवं दो निदानों (रस्सियों) को चुपचाप उठाता है और 'तुम पूषा हो' कहकर बछड़े को गाय से मिला देता है। अध्वर्यु कहता है---"बछड़े को पिलाती हुई गाय और विहार (यज्ञ-स्थल) के बीच से कोई न आये-जाये।" सभी लोग आज्ञा का पालन करते हैं। अध्वर्यु एक मन्त्र के साथ गाय का आह्वान करता है और दुहने वाला गाय के पास बैठ जाता है। दुहने वाला भी मन्त्र पढ़ता है ! गाय दुहे जाते समय गृहस्थ मन्त्रपाठ करता है और जव पात्र में दुग्ध धारा गिरने लगती है और वह सुनने लगता है तो दूसरे मन्त्र का पाठ करता है। दुहने वाला अध्वर्यु के पास आता है और अध्वर्यु उससे पूछता है-"तुमने किसे दुहा? घोषणा करो यह इन्द्र के लिए है, यह शक्ति है।" दुहने वाला गाय का नाम (यथा गंगा) बताता हुआ कहता है-“इसमें देवों एवं मानवों के लिए दूध पाया जाता है।" अध्वर्यु कहता है--"यह (गाय) सबका जीवन है।" तब वह उखा (या कुम्भी) में पवित्र रखता है और उसम पवित्र के द्वारा मन्त्रोच्चारण के साथ दूध डालता है। इसी प्रकार अध्वर्यु दो अन्य गायें दुहाता है। यहाँ गायों के नामो में अन्तर होगा (यथा यमुना आदि) और दूसरी एवं तीसरी गायें क्रम से 'विश्वव्याचाः' एवं 'विश्वकर्मा' कही जायेंगी न कि 'विश्वायुः। जब तीन गायें दुह ली जाती हैं तो वह उद्घोष करता है----“इन्द्र के लिए अधिक दूध दुहो, देवों, बछड़ों, मानवों के लिए आहुति बढ़े, दुहने के लिए पुनः तैयार हो जाओ।" पदि अन्य गायें भी हो (साधारणतः छ: होती हैं) तो उन्हें भी इसी प्रकार दुहना चाहिए, किन्तु अध्वर्यु बोलता रहता है और कुम्भी नहीं छूता है। उस रात्रि घर के लोगों को दूध नहीं मिलता, क्योंकि सारा-का-सारा दूध सान्नाय्य के लिए रख लिया जाता है । जब पूरी गायें दुह ली जाती हैं और वह स्थल जहाँ दूध की कुछ बूंदें टपक गयी रहती हैं, स्वच्छ कर लिया जाता है, तब मन्त्र के साथ अध्वर्यु उस पांत्र का आह्वान करता है जिसमें कि सान्नाय बनाया जाता है। दूध के पात्र का ८. बछड़े के द्वारा गाय दुही जाती है न कि स्तन पर हस्तत्रिया से, "वत्सेन च दोहार्थ प्रसवः साध्यः" (शत. ब्रा० ११३, पृ० ९६ पर भाष्य)। यही बात तै० ब्रा० (२३११८) में भी है। आप० (१।१२।१५) के मत से इस यज्ञ में गाय को दुहुने वाला शूद्र भी हो सकता है और नहीं भी हो सकता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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