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तर्पण
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बहुत-से गृह्यसूत्रों में बहुत-से मतभेद पाये जाये हैं। केवल थोड़े-से विभेद उपस्थित किये जा रहे हैं । प्रत्येक सूत्र में तर्पण के देवता विभिन्न हैं। बहुत-से सूत्रों में "स्वधा नमः" आता ही नहीं। कुछ सूत्रों के मत से सम्बन्धियों के गोत्रों के नाम प्रतिदिन के तर्पण में नहीं लिये जाने चाहिए। बौधायनघर्मसूत्र ( २।५ ) में तर्पण के विषय का सबसे अधिक विस्तार पाया जाता है। इसके अनुसार प्रत्येक देवता, ऋषि एवं पितृगणों के पूर्व 'ओम्' शब्द आता है । इसने बहुत-से अन्य देवताओं के भी नाम गिनाये हैं और एक ही देवता के कई नाम दिये हैं (यथा -- विनायक, वक्रतुण्ड, हस्तिमुख, एकदन्त, यभ, यमराज, धर्म, धर्मराज, काल, नील, वैवस्वत आदि ) । इसने ऋषियों की श्रेणी में बहुत-से सूत्रकारों को भी रख दिया है, यथा कण्व, बौधायन, आपस्तम्ब, सत्याषाढ तथा याज्ञवल्क्य एवं व्यास । हिरण्यकेशिगृह्यसूत्र ( २।१९-२० ), बौधायनगृह्यसूत्र ( ३1९ ) एवं भारद्वाजगृह्यसूत्र ( ३1९-११ ) में देवताओं एवं विशेषतः ऋषियों के बहुत से नाम आये हैं ।
यदि किसी व्यक्ति को लम्बा तर्पण करने का समय न हो तो धर्मसिन्धु एवं अन्य निबन्धों ने एक सूक्ष्ज विधि बतलायी है; "व्यक्ति दो श्लोक कहकर तीन बार जल प्रदान करे।" इन श्लोकों में देवों, ऋषियों एवं पितरों, मानवों तथा ब्रह्मा से लेकर तृण तक के तर्पण की बात है ।
पारस्करगृह्यसूत्र से संलग्न कात्यायन के स्नानसूत्र ( तृतीय कण्डिका) में तर्पण का वर्णन है । बौधायन के समान यह भी प्रत्येक देवता के साथ 'ओम्' लगाने की बात कहता है और इसमें तृप्यताम् या तृप्यन्ताम् (बहुवचन ) क्रिया का उल्लेख है। इसमें देवता केवल २८ हैं और आश्वलायन की सूची से कुछ मित्र हैं। ऋषियों में केवल सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरि, वोढु एवं पञ्चशिख ( कपिल, आसुरि एवं पंचशिख को सांख्यकारिका ने सांख्यदर्शन के प्रवर्तक माना है और वे गुरु एवं शिष्य की परम्परा में आते हैं) के नाम आये हैं। ऋषितर्पण के उपरान्त गृहस्थ को जल में तिल मिलाकर एवं यज्ञोपवीत को दायें कंधे के ऊपर से बायें हाथ के नीचे लटकाकर कव्यवाड् अनल (अग्नि), सोम, यम, अर्यमा, अग्निष्वात्तों, सोमपों एवं बर्हिषदों को जल देना चाहिए। पानी में तिल मिलाकर उपर्युक्त लोगों को तीन तीन अंजलि जल दिया जाता है। ऐसा तर्पण पिता के रहते भी किया जाना चाहिए। किन्तु तर्पण का शेषांश (पितृतर्पण) केवल अपितृक को ही करना चाहिए । गोभिलस्मृति ( २।१८-२० ) एवं मत्स्यपुराण ( १०२ १४-२१ ) ने बहुत कुछ स्नानसूत्र की ही भाँति व्यवस्था दी है। आश्वलायन तथा अन्य लोगों के मत से तर्पण दायें हाथ से होता है, किन्तु कात्यायन एवं कुछ अन्य लोगों के मतानुसार दोनों हाथों का प्रयोग करना चाहिए। स्मृतिचन्द्रिका (१, पृ० १९१) ने मतभेद उपस्थित होने पर गृह्यसूत्र के नियम जानने के लिए प्रेरित किया है। कार्ष्णाजिनि के अनुसार श्राद्ध एवं विवाह में केवल दाहिने हाथ का प्रयोग होना चाहिए, किन्तु तर्पण में दोनों हाथों का । देवताओं को एकएक अंजलि जल, दो-दो सनक एवं अन्य ऋषियों को तथा तीन-तीन अंजलि प्रत्येक पितर को देना चाहिए। भीगे हुए वस्त्रों के साथ जल में खड़े होकर तर्पण धारा में ही किया जाता है, किन्तु शुष्क वस्त्र धारण कर लेने पर सोने चाँदी, ताँबे या काँसे के पात्र से जल गिराना चाहिए, किन्तु मिट्टी के पात्र में तर्पण का जल कभी न गिराना चाहिए। यदि उपर्युक्त पात्र न हों तो कुश पर जल गिराना चाहिए (स्मृतिचन्द्रिका १, पृ० १९२ ) । इस विषय में कई मत हैं। (देखिए गृहस्थरत्नाकर, पृ० २६३ - २६४), आजकल आह्निक तर्पण बहुत कम किया जाता है, केवल थोड़े से कट्टर ब्राह्मण, व्याकरणज्ञ तथा शास्त्रज्ञ प्रति दिन तर्पण करते हुए देखे जाते हैं। सामान्यतः आजकल श्रावण मास में एक दिन ब्रह्मयज्ञ के एक अंश के रूप में अधिकांश ब्राह्मण तर्पण करते हैं ।
मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को यदि मंगलवार आता हो तो यम को विशिष्ट तर्पण किया जाता है (स्मृतिचन्द्रिका १, पृ० १९७-१९८, मदनपारिजात, पृ० २९६, पराशरमाघवीय, १1१, पृ० ३६१ ) । दक्ष ( २/५२ - ५५ ) के मत मे उपर्युक्त दिन को यम तर्पण यमुना में होता था और बहुत-से नामों से यम का आवाहन किया जाता था
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