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आह्निक कृत्य
( २०४-३४५), गृहस्थरत्नाकर, रघुनन्दन का आह्निकतत्त्व, वीरमित्रोदय (आह्निकप्रकाश), स्मृतिमुक्ताफल ( काण्ड) अधिक प्रसिद्ध हैं। स्थान-संकोच से हम यहाँ गृहस्थधर्मों का वर्णन विस्तार से नहीं करेंगे, केवल अति महत्वपूर्ण बातें ही उल्लिखित की जायेंगी । उदाहरणार्थ, अनुशासनपर्व ( १४१ । २५-२६ ) में आया है"अहिंसा, सत्यवचन, सभी जीवों पर दया, राम, यथाशक्ति दान - गृहस्थ का यह सर्वश्रेष्ठ धर्म है । परस्त्री से असंसर्ग, अपनी स्त्री एवं धरोहर की रक्षा, न दी हुई वस्तु के ग्रहण-भाव से दूर रहना, मघु एवं मांस से दूर रहना - ये पाँच धर्म हैं, जिनकी कई शाखाएँ हैं और उनसे सुख की उत्पत्ति होती है।"" यह बात दक्ष ( २२६६-६७) में भी पायी जाती है। किन्तु इन साधारण धर्मों की चर्चा बहुत पहले ही हो चुकी है ( देखिए इस भाग का अध्याय १ ) ।
दिवस - विभाजन
बहुत प्राचीन काल से दिन को कई भागों में बाँटा गया है। कभी-कभी " अहः " शब्द 'रात्रि' से पृथक् माना गया है और कभी-कभी यह सूर्योदय से सूर्योदय ( दिन एवं रात्रि) तक का द्योतक माना गया है। ऋग्वेद ( ६।९।१) में "कृष्णम् अहः” अर्थात् रात्रि एवं " अर्जुनम् अह " अर्थात् दिन का प्रयोग हुआ है। दिन को कभी-कभी दो भागों में बाँटा जाता है, यथा पूर्वाह्न ( दोपहर के पूर्व ) एवं अपराह्न ( दोपहर के उपरान्त ) । देखिए इस विषय में ऋग्वेद ( १० | २४|११ ) एवं मनु ( ३।२७८) । दिन को तीन भागों में भी बाँटा गया है, यथा प्रातः, मध्याह्न (दोपहर) एवं सायं, जो सोमरस के तीन तर्पणों का द्योतक है - प्रातः सवन, माध्यन्दिन सवन एवं सायं सवन (ऋग्वेद ३१५३८, ३३२८११, ४ एवं ५, ३।३२।१, ३१५२/५-६ ) । १२ घण्टे के दिन को पाँच भागों में बाँटा गया है, यथा-- प्रातः या उदय, संगव, माध्यन्दिम या मध्याह्न ( दोपहर ), अपराह्न एवं सायाह्न या अस्तगमन या सायं। इनमें प्रत्येक का काल तीन मुहूर्तों का होता है। कुछ स्मृतियों एवं पुराणों ने इन पांचों विभागों का वर्णन तथा व्याख्या की है, यथा प्रजापतिस्मृति १५६-१५७, मत्स्यपुराण २२।८२-८४, १२४।८८-९०, वायुपुराण ५०।१७०-१७४ । अपरार्क ( पृ० ४६५) ने भी याज्ञवल्क्य (१।२२६) की व्याख्या में श्रुति के वाक्य एवं व्यास की उक्तियाँ उद्धृत की हैं । २४ घण्टे के "अहः " ( दिन) को ३० मुहूर्तों में विभाजित किया गया है (देखिए शतपथब्राह्मण १२/३/२/५, जहाँ वर्ष को १०८०० मुहूर्तीों में बाँटा गया है, अर्थात् ३६० x ३० = १०८०० ) । तैत्तिरीयसंहिता ने दिन के १५ मुहूर्तों के नाम दिये हैं, यथा चित्र, केतु आदि । मदनपारिजात ( पृ० ४९६) ने व्यास को उद्धृत कर दिन के पन्द्रह भागों के नाम दिये हैं।
स्मृतियों ने सामान्यतः दिन को आठ भागों में बांटा है। दक्ष ने दिन को आठ भागों में बाँटकर प्रत्येक भाग में किये जाने वाले कर्तव्यों का वर्णन किया है (२।४-५ ) । कात्यायन ने दिन को आठ भागों में बाँटकर प्रथम को छोड़ आगे के तीन भागों में राजा के लिए न्याय करने की बात कही है। कौटिल्य ने रात एवं दिन को ८-८ भागों में बाँटा है और उनमें राजा के धर्म का वर्णन किया है । वसिष्ठ (१११३६ ), लघु हारीत (९९); लघु शातातप (१०८) आदि
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५. अहिंसा सत्यवचनं सर्वभूतानुकम्पनम् । शमो वानं यथाशक्ति गार्हस्थ्यो धर्म उत्तमः ॥ पर-दारेष्वसंसर्गो परिरक्षणम् । अवत्तादानविरमो मधुमांसस्य वर्जनम् । एष पंचविधो धर्मो बहुशाखः सुखोदयः ॥ अनुशासन पर्व १४१।२५-२६ ।
६. अहाच कृष्णमहरर्जुनं च विवर्तते रजसी वेद्याभिः । वैश्वानरो जायमानो न राजावातिरज्ज्योतिषाग्निस्तमांसि ॥ ऋ० ६।९।१ । निरुक्त ( २।२१) ने इसकी व्याख्या की है—अहश्च कृष्णं रात्रिः शुक्लं च अहरर्जुनम् आदि ।
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