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धर्मशास्त्र का इतिहास शल्ल--मनु (१०।२२) के अनुसार यह करण एवं खश का दूसरा नाम है।
डोम्ब (डोम)--क्षीरस्वामी एवं अमर के अनुसार यह श्वपच ही है । पराशर ने श्वपच, डोम्ब एवं चाण्डाल को एक ही श्रेणी में डाला है। वंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश में यह डोम कहा जाता है।
तक्षा या तक्षक (बढ़ई)--वैदिक साहित्य (तैत्तिरीय ब्राह्मण ३।४१) में यह नाम आया है। यह वर्षकि ही है, जैसा कि कायस्थों के वर्णन में हमने देख लिया है। मनु (४।२१०), विष्णुधर्मसूत्र (५१५८), महाभाष्य (पाणिनि पर, २।४।१०) में इसकी चर्चा आयी है। महाभाष्य ने इसे शूद्र माना है और अयस्कारों (लोहारों) की श्रेणी में रखा है। उशना (४३) ने इसे ब्राह्मण एवं सूचक (प्रतिलोम) की सन्तान माना है।
तन्तुवाय (जुलाहा)--इसे कुविन्द (आज का तँतवा बिहार में) भी कहा जाता है। विष्णुधर्मसूत्र (५१।१३), शंख आदि ने इसका उल्लेख किया है। महाभाष्य (पाणिनि पर, २।४।१०) ने इसे शूद्र कहा है।
ताम्बलिक--यह आज का तमोली (बिहार एवं उत्तर प्रदेश में) है। कामसूत्र (१।५।३७) ने भी इसकी चर्चा की है।
__ ताम्रोपजीवी--उशना (१४) के अनुसार यह ब्राह्मण स्त्री एवं आयोगव की सन्तान है। वैखानस (१०।१५) ने इसे ताम्र कहा है।
तुम्नवायु (वर्नी)--मनु (४।२१४) ने इसकी चर्चा की है। अपरार्क द्वारा उद्धृत ब्रह्मपुराण में इसे सूचि (सौचिक) कहा गया है।
तैलिक (तेली)--विष्णुधर्मसूत्र (५१।१५), शंख एवं सुमन्तु में इसका उल्लेख है। दरव--मनु (१०१४४) एवं उद्योगपर्व (४।१५) ने इसका नाम लिया है।
दाश (मछुवा)--येदान्तसूत्र के अनुसार (२।३।४३) एक उपनिषद् में इसकी चर्चा है। व्यास (१।१२१३) ने इसे अन्त्यजों में गिना है। मनु (१०।३४) ने मार्गव, दास (दाश? ) एवं कैवर्त को समान माना है।
दिवाकीयं--मानवगृह्यसूत्र (२।१४।११) में यह नाम आया है। अमर० ने चाण्डाल एवं नापित को दिवाकीति कहा है।
दौष्मन्त--गौतम (४।१४) के अनुसार यह एक क्षत्रिय पुरुष एवं शूद्र नारी से उत्पन्न अलोप जाति है। मूतसंहिता में दौष्यन्त नाम आया है।
द्रविड--मनु (१०।२२) के अनुसार यह करण ही है। मनु (१०४३-४४) के अनुसार यह शूद्र की स्थिति में आया हुआ एक क्षत्रिय है।
धिग्वण---मनु (१०।१५) के अनुसार यह ब्राह्मण पुरुष और आयोगव नारी की सन्तान है। यह जाति नमड़े का व्यवसाय करती थी (मनु १०।४९.) । जातिविवेक में इमे मोचीकार कहा गया है।
धीवर--यह कैवर्त एवं दाश के सदृश है। गौतम (४।१७) के अनुसार यह वैश्य पुरुष एवं क्षत्रिय नारी से उत्पन्न प्रतिलोम सन्तान है । मध्यप्रदेश के भण्डारा जिले में यह धीमर कहा जाता है। यह मछली पकड़ने का कार्य करता है।
ध्वजी (शराब बेचनेवाला)-अपरार्क द्वारा उद्धृत सुमन्तु एवं हारीत ने इसका उल्लेख किया है। ब्रह्मपुराण ने इसे शौण्डिक ही माना है।
नट--यह सात अन्त्यजों में परिगणित जाति है। बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश एवं पंजाब में यह अछूत जाति है। हारीत ने नट एवं शैलुष में अन्तर बताया है। अपरार्क के अनुसार शैलुष अभिनय-जीवी जाति है, यद्यपि वह नट जाति से भिन्न है। नट जाति अपने खेलों के लिए प्रसिद्ध है। यह रस्सियों एवं जादू के खेलों के लिए सारे भारत में प्रसिद्ध है।
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