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मेलापक और विवाह के प्रकार
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चान्द्र नक्षत्र में चौल, उपनयन, गोदान एवं विवाह सम्पादित होते हैं, किन्तु कितने ही विद्वानों के मत से विवाह कमी मी किये जा सकते हैं (केवल उत्तरायण आदि में ही नहीं ) । आपस्तम्बगृह्यसूत्र (२।१२-१३) के अनुसार शिशिर के दो मास अर्थात् माघ एवं फाल्गुन छोड़कर तथा ग्रीष्म के दो पास ( ज्येष्ठ-आषाढ़) छोड़कर सभी ऋतु विवाह के योग्य हैं, इसी प्रकार सभी शुभ नक्षत्र भी इसके लिए उपयुक्त हैं। इसी सूत्र ( ३।३) ने पुनः निष्ट्या अर्थात् स्वाति नक्षत्र को उत्तम माना है (देखिए तैत्तिरीय ब्राह्मण १।५।२ एवं बौधायनगृह्यसूत्र १।१।१८-१९ ) । आपस्तम्बगृह्यसूत्र ने विवाह के लिए रोहिणी, मृगशीर्ष, उत्तरा फाल्गुनी, स्वाति को अच्छे नक्षत्रों में गिना है, किन्तु पुनर्वसु, तिष्य ( पुष्य ), हस्त, श्रवण एवं रेवती को अन्य उत्सवों के लिए शुभ माना है। अन्य मत देखिए मानवगृह्यसूत्र (१।७।५), काठकगृह्यसूत्र ( १४१९ | १० ), वाराहगृह्यसूत्र ( १० ) । रामायण ( बालकाण्ड ७२ । १३ एवं ७१।२४ ) एवं महाभारत ( आदिपर्व ८।१६) ने भगदेवता के नक्षत्र को विवाह के लिए ठीक माना है। कौशिकसूत्र ( ७५।२-४) ने आधुनिक काल के समान ही कहा है कि कार्तिक पूर्णिमा के उपरान्त से वैशाख पूर्णिमा तक विवाह करना चाहिए, या कभी भी, किन्तु चैत्र के आधे भाग को छोड़ देना चाहिए।
मध्य काल के निबन्धों ने फलित ज्योतिष के आधार पर बहुत लम्बा चौड़ा आख्यान प्रकट किया है, जिसका वर्णन यहाँ सम्भव नहीं है। एक-दो उदाहरण यहाँ दे दिये जाते हैं । उद्वाहतत्व ( पृ० २४) ने राजमार्तण्ड एवं भुजबलभीम को उद्धृत करके बताया है कि चैत्र एवं पौष को छोड़कर सभी मास शुभ हैं। उसने यह भी लिखा है कि उचित अवस्था से अधिक अवस्था पार कर लेने पर किसी शुभ मुहूर्तं की बाट नहीं जोहनी चाहिए, केवल दस वर्ष की कन्या के लिए ही शुभ मुहूर्तों की खोज करनी चाहिए। संस्काररत्नमाला ( पृ० ४६० ) का कहना है कि सूत्रों स्मृतियों में शुभ मुहतों के विषय में मतभेद हैं, अतः अपने देश के आचार के अनुसार ही कार्य करना चाहिए। ज्येष्ठ मास में ज्येष्ठ पुत्र का ज्येष्ठ कन्या से विवाह नहीं करना चाहिए और ज्येष्ठ पुत्र एवं पुत्री का विवाह उनके जन्म के मास, दिन या नक्षत्र में भी नहीं करना चाहिए। सप्ताह में बुध, सोम, शुक्र एवं बृहस्पति उत्तम दिन हैं, किन्तु मदनपारिजात के अनुसार रात्रि में विवाह करने से सभी दिन अच्छे हैं। लड़कियों के विवाह में चन्द्र का शक्तिशाली स्थान में रहना आवश्यक है। लड़का और लड़की के जन्म के समय के नक्षत्र एवं राशि से ज्योतिष सम्बन्धी गणना आठ प्रकार से की गयी है, जिसे कूट कहा गया है और वे कूट हैं- वर्ण, वश्य, नक्षत्र, योनि, ग्रह ( दो राशियों पर राज्य करने वाले ग्रह), गण, राशि एवं नाड़ी। इनमें से प्रत्येक बाद वाला अपने से पूर्व से अधिक शक्तिशाली कहा जाता है। गण एवं नाड़ी की विशेष महत्ता अतः यहाँ पर उनका संक्षिप्त विवरण उपस्थित किया जाता है। २७ नक्षत्रों को ३ दलों में विभाजित किया गया है। और प्रत्येक दल देवगण, मनुष्यगण एवं राक्षसगण के साथ लगा हुआ है । यथा
देवगण
अश्विनी
मृगशिरा
पुनर्वसु
पुष्य
हस्त
स्वाति
अनुराधा
श्रवण
रेवती
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मनुष्यगण
भरणी
रोहिणी
आर्द्रा
पूर्वा फाल्गुनी
उत्तरा फाल्गुनी
पूर्वाषाढा
उत्तराषाढा
पूर्वाभाद्रपद
उत्तराभाद्रपद
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राक्षसगण
कृत्तिका
आश्लेषा
मघा
चित्रा
विशाखा
ज्येष्ठा
मूल
धनिष्ठा
शततारका
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