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परवा-श्रवा
३३८ किया है। शाकुन्तल (५/१३) में दुष्यन्त की राजसभा में लायी जाती हुई शकुन्तला को अवगुण्ठन डाले चित्रित कि गया है। इससे प्रकट होता है कि उच्च कुल की नारियाँ बिना अवगुण्ठन के बाहर नहीं आती थीं, किन्तु साधारण स्त्रियों के साथ ऐसी बात नहीं थी। उत्तरी एवं पूर्वी भारत में परदा की प्रथा जो सर्वसाधारण में पायी जाती है उसक आरम्भ मुसलमानों के आगमन से हुआ। इस विषय में इण्डिएन एण्टिक्वेरी (सन् १९३३, पृ० १५) पठनीय है, जहाँ वाचस्पति की सांख्यतत्त्वकौमुदी ( नवीं शताब्दी) की एक उद्धृत उक्ति से प्रकट होता है कि उच्च कुल की नारियाँ परदा करके ही बाहर निकलती थीं। और भी देखिए पाठक-स्मृतिग्रन्थ (पृष्ठ ७२), जहां परदा प्रथा के प्रच लन के विषय में बौद्ध ग्रन्थों से निर्देश दिये गये हैं ।
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