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स्त्रियों की दशा
३२५ चलायी है। शान्तिपर्व (२६७।३८) के अनुसार यदि स्त्री कुमार्ग में जाय तो दोष उसके पति का है न कि पत्नी का। वरुणप्रघास (चातुर्मास्यों में एक यज्ञ) में यज्ञ करने वाले की पत्नी को, यदि उसका कोई प्रेमी होता था तो उसे यह बात अंगीकार करनी पड़ती थी, और इस प्रकार सच कह देने पर भी उसे यज्ञ में भाग लेने दिया जाता था (तैत्तिरीय ब्राह्मण १।६।५, शतपथब्राह्मण २।५।२१२०, कात्यायनश्रौतसूत्र ५।५।६-१०)।
___अब हम कुछ ऐसी उक्तियों का भी अवलोकन करें, जो स्त्रियों के विरोध में पड़ती हैं। मैत्रायणीसंहिता में स्त्री को 'अनृत' अर्थात् झूठ का अवतार कहा गया है (१।१०।११)। ऋग्वेद (८।३३।१७) के एक कथन में "नारी का मन दुर्दमनीय" कहा गया है। ऋग्वेद (१०।९५।१५) एवं शतपथब्राह्मण (११।५।१।९) ने घोषित किया है-"स्त्रियों के साथ कोई मित्रता नहीं है, उनके हृदय भेड़ियों के हृदय हैं (अर्थात् कठोर एवं धोखेबाज या धूर्त)।" ऋग्वेद (५।३०। ९) के अनुसार स्त्रियाँ दास की सेना एवं अस्त्र-शस्त्र हैं।" तैत्तिरीयसंहिता (६।५।८।२) का कथन है-अतः स्त्रियाँ बिना शक्ति की हैं, उन्हें दाय नहीं मिलता, वे दुष्ट से भी बढ़कर दुर्बल ढंग से बोलती हैं। यह उक्ति (जो वास्तव में स्त्रियों को सोम रस की अधिकारिणी नहीं मानती) बौधायनधर्मसूत्र (२।२।५३) एवं मनु (९।१८) द्वारा इसअर्थ में प्रयुक्त की गयी है कि स्त्रियों को वसीयत या दाय में भाग नहीं मिलता और न उन्हें वैदिक. मन्त्रों का अधिकार ही है। शतपथब्राह्मण के अनुसार स्त्री, शूद्र, कुत्ता एवं कौआ में असत्य, पाप एवं अंधकार विराजमान रहता है (१४।१।१। ३१)। इसी ब्राह्मण ने पुनः लिखा है-“पत्नियाँ घृत या वज़ से हत होने पर तथा बिना पुरुष के होने पर न तो अपने पर राज्य करती हैं और न दाय (सम्पत्तिमाग) पर।"" शतपथब्राह्मण ने पुनः लिखा है-“वह इस प्रकार स्त्रियों को आश्रित बनाता है, अतः स्त्रियाँ पुरुष पर अवश्यमेव आश्रित रहती हैं" (१३।२।२।४)।
उपर्युक्त कथनों से स्पष्ट है कि वैदिक काल में भी स्त्रियाँ बहुधा नीची दृष्टि से देखी जाती थीं। उन्हें सम्पत्ति में कोई भाग नहीं मिलता था तथा वे आश्रित थीं। स्त्रियों के चरित्र के विषय में जो उक्तियाँ हैं वे वैसी ही हैं जैसा कि प्रत्येक काल में वक्र भाव एवं कुटिल विचार वाले लोगों ने कहा है-“हे नारी, तुम दुर्बलता की खान हो।" धर्मशास्त्रसाहित्य में स्त्रियों की दशा बुरी ही होती चली गयी, केवल सम्पत्ति के अधिकारों के बारे में अपवाद पाया गया। गौतम (१८११), वसिष्ठपर्मसूत्र (५।१ एवं ३), मनु (५।१४६-१४८ एवं ९।२-३), बौधायनधर्मसूत्र (२।२।५०-५२), नारद (दायभाग, ३१) आदि ने घोषित किया है कि स्त्रियाँ स्वतन्त्र नहीं हैं, सभी मामलों में आश्रित एवं परतन्त्र हैं, बचपन में, विवाहोपरान्त एवं बुढ़ापे में वे क्रम से पिता. पति एवं पुत्र द्वारा रक्षित होती हैं। मनु (९।२-३) ने हानि एवं विपत्ति से स्त्री-रक्षा करने की बात कही है। मनु (५।१४६-१४८) का कथन है कि सभी घरेलू बातों में तथा सभी अवस्थाओं में स्त्री का जीवन किसी पुरुष पर आश्रित है। नारद (दायभाग, २८-३०) का कथन है--"जब विधवा पुत्रहीन होती है, उसके पति के सम्बन्धी उसके भरण-पोषण, देख-रेख, सम्पत्ति-रक्षा करने वाले हैं, जब कोई सम्बन्धी एवं पति का सपिण्ड रक्षक न हो तो पिता का कुल रक्षक होता है। विधाता ने स्त्री को आश्रित बनाया है, अच्छे कुल की
२३. स्त्रियो हि दास आयुधानि चके किं मा करबला अस्य सेनाः। ऋग्वेद ५।३९।९; तस्मास्त्रियो निरित्रिया अदायावीरपि पापात्पुंस उपस्तितरं वदन्ति । ते० सं० ६५२।
निरिन्द्रिया अदायाश्च स्त्रियो मता इति श्रुतिः। बौधायनधर्मसूत्र (२॥२॥५३); नास्ति स्त्रीणां क्रिया मन्त्ररिति धर्मे व्यवस्थितिः। निरिन्द्रिया ह्यमन्त्राश्च स्त्रियोऽमृतमिति स्थितिः॥ मनु (९।१८)।
वसो वा आज्यमेतेन वे देवा वज्रणाज्येनाघ्नन्नेव पत्नीनिराधमुवंस्ता हता निरष्टा नात्मनश्न नैशत न दायस्थ घ नैशत। शताय ४।४।२।१३।
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