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धर्मशास्त्र का इतिहास जाती है। आपस्तम्ब (१।९।२५।१४ एवं १।९।२६।१) ने तो यहां तक कहा है कि शूद्र को मार डालने पर इतना ही पातक लगता है जितना कि एक कौआ, सरट (गिरगिट), मोर, चक्रवाक, मराल (राजहंस), भास, मेढक, नकुल (नेवला), गंधमूषक (छछुन्दर), कुत्ता आदि को मार डालने से होता है (मनु'११।१३१) ।
___यदि शूद्रों की बहुत-सी अयोग्यताएँ थीं तो उन्हें बहुत-सी सुविधाएँ भी दी गयी थीं। कोई भी शूद्र ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों के कुछ व्यवसायों को छोड़कर कोई भी व्यवसाय कर सकता था। किन्तु कुछ शूद्र तो राजा भी हुए हैं और कौटिल्य (९।२) ने शूद्रों की सेना के बारे में लिखा है। शूद्र प्रति दिन की अनगिनत क्रियाओं से स्वतन्त्र था। वह विवाह को छोड़कर अन्य संस्कारों के झंझट से दूर था। वह कुछ भी खा-पी सकता था। उसके लिए गोत्र एवं प्रवर का झंझट नहीं था, और न उसे शास्त्र के विरोध में जाने पर कोई जप या तप करना पड़ता था।
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