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विद्यारम्भ संस्कार
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का आशीर्वाद ग्रहण करता है । अनध्याय के दिनों में शिक्षण नही किया जाता । अनध्याय के विषय में हम आगे पढ़ेंगे ।
संस्कारप्रकाश एवं संस्काररत्नमाला में ज्योतिष सम्बन्धी लम्बी चर्चाएँ हैं । विश्वामित्र, देवल तथा अन्य ऋषियों की बातें उद्धृत करके संस्कारप्रकाश ने लिखा है कि विद्यारम्भ पाँचवें वर्ष तथा कम-से-कम उपनयन के पूर्व अवश्य कर डालना चाहिए । इसने नृसिंह को उद्धृत करके कहा है कि सरस्वती तथा गणपति की पूजा के उपरान्त गुरु की पूजा करनी चाहिए। आधुनिक काल में लिखना सीखना किसी शुभ मुहूर्त में आरम्भ कर दिया जाता है, यह शुभ मुहूर्त बहुधा आश्विन मास के शुक्लपक्ष की विजयादशमी तिथि को पड़ता है । सरस्वती एवं गणपति के पूजन के उपरान्त गुरु का सम्मान किया जाता है, और बच्चा "ओम् नमः सिद्धम् " दुहराता है और पट्टी पर लिखता है । इसके उपरान्त उसे अ, आ...इत्यादि अक्षर सिखाये जाते हैं। संस्काररत्नमाला ने इस संस्कार का 'अक्षरस्वीकार' नाम दिया है, जो उपयुक्त ही है। पारिजात में उद्धृत बातों के अनुसार संस्काररत्नमाला ने होम तथा सरस्वती, हरि, लक्ष्मी, विनेश (गणपति), सूत्रकारों एवं स्वविद्या के पूजन की चर्चा की है ।
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