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संस्कार
१७९ आपस्तम्बगृह्यसूत्र एवं भारद्वाजगृह्यसूत्र में क्षिप्रसुवन तथा हिरण्यकेशिगृह्यसूत्र में क्षिप्रसवन कहा गया है। बुधम्मृति (संस्कारप्रकाश में उद्धृत, पृ० १३९) में भी इसकी चर्चा है।
जातकर्म-इसकी चर्चा समौ सूत्रों एवं स्मृतियों में हुई है। उत्थान-केवल वैखानस (३१८) एवं शांखायनगृह्यसूत्र (११२५) ने इसकी चर्चा की है। नामकरण--सभी स्मृतियों में वर्णित है।
निष्क्रमण या उपनिष्क्रमण या आदित्यदर्शनं या निर्णयन-याज्ञवल्क्य (२०११) पारम्कग्गृह्यसूत्र (१।१७) तथा मनु (२।३४) ने इसे क्रम से निष्क्रमण, निष्क्रमणिका तथा निष्क्रमण कहा है। किन्तु कौशिकमूत्र (५८।१८), बौधायनगृह्यसूत्र (२।२), मानवगृह्यसूत्र (१।१९।१) ने क्रम मे इसे निर्णयन, उपनिष्क्रमण एवं आदित्यदर्शन कहा है। विष्णुधर्मसूत्र (२७।१०) एवं शंख (२१५) ने भी इमे आदित्यदर्शन कहा है । गौतम. आपस्तम्बगृह्यसूत्र तथा कुछ अन्य सूत्र इसका नाम ही नहीं लेते।
कर्णवेष--सभी प्राचीन सूत्रों में इसका नाम नहीं आता। व्यासम्मति (१।१०). बौधायनगृह्योपमूत्र (१।१२।१) एवं कात्यायन-सूत्र ने इसकी चर्चा की है।
अन्नप्राशन--प्रायः सभी स्मृतियों ने इसका उल्लेख किया है। वर्षवर्धन या अम्बपूर्ति--गोभिल, शांखायन, पारस्कर एवं बौधायन ने इमका नाम लिया है। चौल या चूडाकर्म या चूडाकरण--मभी स्मृतियों में वर्णित है।
विद्यारम्भ---किसी भी स्मृति में वर्णित नहीं है, केवल अपगर्क एवं स्मृतिचन्द्रिका दाग उद्धृत मार्कण्डेय पुराण में उल्लिखित है।
उपनयन--सभी स्मृतियों में वर्णित है। व्यास (१।१४) ने उसका ब्रतादेश नाम दिया है। व्रत (चार)--अधिकांशतया सभी गृह्यसूत्रों में वर्णित हैं। केशान्त या नोदान---अधिकांशतः सभी धर्मशास्त्र-ग्रन्थों में उल्लिखित है।
समावर्तन या स्नान--इन दोनों के विषय में कई मत हैं। मनु (३।४) ने छात्र-जीवनोपरान्त के स्नान को समावर्तन से भिन्न माना है । गौतम, आपस्तम्बगृह्यसूत्र (५।१२-१३), हिरण्यकेशिगृह्यमूत्र (११९११), यानवल्वम (१०५१), पारस्करगृह्यसूत्र (२१६-७) ने स्नान शब्द को दोनों अर्थात छात्र-जीवन के उपरान्त म्नान तथा गुरु-गृह से लौटने की क्रिया के अर्थ में प्रयुक्त किया है। किन्तु आश्वलायनगृह्यसूत्र (३.८१), वांधायनगृह्यसूत्र (२०६१), शांखायनगृह्यसूत्र (३।१) एवं आपस्तम्बधर्मसूत्र (१।२।७।१५ एवं ३१) ने ममावर्तन गब्द का प्रयोग किया है।
विवाह-सभी में संस्कार रूप में वर्णित है। महायज्ञ-प्रति दिन के पांच यज्ञों के नाम गौतम, अंगिरा तथा अन्य ग्रन्थों में आते हैं।
उत्सर्ग (वेदाध्ययन का किसी-किसी ऋतु में त्याग)--वैखानस (११) एवं अंगिरा ने इसे मम्कार रूप में उल्लिखित किया है।
उपाकर्म (वेदाध्ययन का वार्षिक आरम्भ)--वैखानस (१११) एवं अंगिरा में वर्णित है। अन्त्येष्टि--मनु (२०१६) एवं याज्ञवल्क्य (१११०) ने इसकी चर्चा की है।
शास्त्रों में ऐसा आया है कि जातकर्म से लेकर चूडाकर्म तक के संस्कारों के कृत्य द्विजातियों के पुरुषवर्ग में वैदिक मन्त्रों के साथ किन्तु नारी-वर्ग में बिना वैदिक मन्त्रों के किये जायें (आश्वलायनगृह्यसूत्र १।१।१२, १।१६।६, १।१७।१८; मनु २१६६ एवं याज्ञवल्क्य १११३)। किन्तु तीन उच्च वर्गों के नारी-वर्ग के विवाह में वैदिक मन्त्रों का प्रयोग होता है (मन २१६७ एवं याज्ञवल्क्य १।१३)।
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