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धर्मशास्त्र का इतिहास
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शिल्पकारों, चिकित्सकों, क्षत्रियों एवं दासों, राजाओं, राजकर्मचारियों को अशौच की अवधि नहीं माननी चाहिए। मेधातिथि ने प्रचेता के ग्रन्थ को स्मृति कहा है और उसे मनु, विष्णु आदि के समान प्रमाण माना है । मिताक्षरा, हरदत्त तथा अपरार्क ने बृहत्प्रचेता से अशौच- प्रायश्चित्त - सम्बन्धी उद्धरण लिये हैं । इन लोगों ने वृद्धप्रचेता की भी चर्चा की है। स्मृतिचन्द्रिका एवं हरदत्त ने प्रचेता को उद्धृत किया है।
४७. प्रजापति
बौधायनधर्मसूत्र ने प्रजापति को प्रमाण रूप में उद्धृत किया है (२.४.१५ एवं २. १०.७१ ) । वसिष्ठ में प्राजापत्य श्लोक उद्धृत पाये जाते हैं (३.४७ १४.१६ - १९, २४-२७, ३०-३२ ) । उद्धृत श्लोकों में बहुत-से मनुस्मृति में भी पाये जाते हैं। हो सकता है, दोनों धर्मं सूत्रकारों ने प्रजापति नाम से मनु की ओर ही संकेत किया हो ।
आनन्दाश्रम संग्रह में प्रजापति नामक एक स्मृति है, जिसमें श्राद्ध पर १९८ श्लोक हैं । इसका छन्द अनुष्टुप है, किन्तु कहीं-कहीं इन्द्रवज्रा, उपजाति, वसन्ततिलका और सग्धरा छन्द भी हैं। इसमें कल्पशास्त्र, स्मृतियों, धर्मशास्त्र, पुराणों की चर्चा हुई है। इसमें कार्ष्णाजिनि की भाँति कन्या एवं वृश्चिक नामक राशियों के नाम आये हैं ।
मिताक्षरा ने अशौच एवं प्रायश्चित्त के बारे में प्रजापति की चर्चा की है, अपरार्क ने वस्तु-पवित्रीकरण, श्राद्ध, दिव्य आदि के बारे में उद्धरण दिये है। इन्होंने प्रजापति के एक गद्यांश द्वारा परिव्राजकों के चार प्रकार बताये हैं, यथा कुटीचक, बहूदक, हंस, परमहंस । स्मृतिचन्द्रिका, पराशरमाधवीय ने प्रजापति के व्यवहारविषयक श्लोक उद्धृत किये हैं। प्रजापति ने नारद की भांति कृत एवं अकृत नामक दो प्रकार के गवाहों की चर्चा की है।
४८. मरीचि
आह्निक, अशौच, प्रायश्चित्त एवं व्यवहार पर मिताक्षरा, अपरार्क एवं स्मृतिचन्द्रिका ने मरीचि के उद्धरण लिये हैं। मरीचि ने सावन-भादों में सरिता - स्नान मना किया है, क्योंकि उन दिनों नदियाँ रजस्वला रहती हैं। यदि कोई ऋयकर्ता बहुत से व्यापारियों के सामने, राजकर्मचारियों की जानकारी में, दिन दोपहर कोई अस्थावर द्रव्य क्रय करता है, तो वह दोष-मुक्त हो जाता है और अपने धन को प्राप्त कर लेता है (यदि द्रव्य किसी दूसरे का निकल आता है तो ) । मरीचि ने कहा है कि आधि ( बंधक), बिक्री, विभाजन, स्थावर सम्पत्ति दान के विषय में जो कुछ तय पाये वह लिखित होना चाहिए। उन्होंने आधि ( बंधक) को भोग्य, गोप्य, प्रत्यय एवं आज्ञाधि नामक चार प्रकारों में बाँटा है।
४९. यम
वसिष्ठधर्मसूत्र ने यम को धर्मशास्त्रकार मानकर उनकी स्मृति से उद्धरण लिया है ( १८. १३-१५ एवं १९.४८)। यम के उद्धृत चार पद्यों में तीन मनु में मिल जाते हैं । याज्ञवल्क्य ने यम को धर्मवक्ता कहा है। मनु के टीकाकार गोविन्दराज एवं अपरार्क ने यम के इस मत को कि कुछ पक्षियों का मांस खाना चाहिए, उद्धृत किया है। जीवानन्द संग्रह में एक यमस्मृति है जिसमें ७८ श्लोक हैं, जो प्रायश्चित्त एवं शुद्धि का विवेचन करते हैं । इस स्मृति के कुछ पद्यांश मनु से मिलते-जुलते हैं | आनन्दाश्रम संग्रह में एक यमस्मृति है जिसमें प्रायश्चित्त, श्राद्ध एवं पवित्रीकरण पर ९९ श्लोक हैं ।
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