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कमलाकर भट्ट, नीलकण्ठ भट्ट नहीं है। केवल शूद्रकमलाकर (शूद्र-धर्मतत्त्व या शूद्रधर्मतत्त्वप्रकाश) पर कुछ प्रकाश डाला जा रहा है। आरम्भ में ही ऐसा आया है कि शूद्र वेदाध्ययन नहीं कर सकते। वे ब्राह्मणों द्वारा स्मृतियों, पुराणों आदि का केवल पाठ सुन सकते हैं। उनकी धार्मिक क्रियाएँ पौराणिक मन्त्रों द्वारा सम्पादित होनी चाहिए। इसके अन्य विषय हैं-विष्णु-पूजा, अन्य देवताओं की पूजा, व्रत, उपवास। जनकल्याण के कार्यों (पूर्त) में शूद्र दान दे सकता है, शूद्र गोद ले सकता है, शूद्रों के लिए बिना वैदिक मन्त्रों के संस्कारों के विषय में विविध मत, गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्त, जातकर्म, नामकरण, शिशुनिष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, कर्णवेध, विवाह नामक संस्कार, पंचमहायज्ञ (वाजसनेयी शाखा के अनुसार), श्राद्ध (बिना पकाये अन्न द्वारा), वर्जितावर्जित कर्म, कतिपय क्रिया-संस्कारों का विवेचन, आह्निक-कृत्य, जन्म-मरण पर अशुद्धि, अन्त्येष्टि क्रिया, पलियों एवं विधवाओं के कर्तव्य, वर्णसंकर, प्रतिलोम सम्बन्ध से उत्पन्न लोगों के विषय में विधि, कायस्थों के विषय में।
____ कमलाकर भट्ट के ग्रन्थों में निर्णयसिन्धु या निर्णयकमलाकर सबसे अधिक प्रसिद्ध है। यह विद्वत्ता, परिश्रम एवं मनोहरता का प्रतीक है। यह एक अत्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता रहा है। नीलकण्ठ एवं मित्रमिश्र को छोड़कर किसी अन्य धर्मशास्त्रकार ने इतने ग्रन्थों एवं ग्रन्थकारों का उल्लेख नहीं किया है। आश्चर्य है, कमलाकर भट्ट ने इतने ग्रन्थ कैसे एकत्र किये और पढ़े। उन्होंने लगभग १०० स्मृतियों एवं ३०० से अधिक निबन्धकारों का उल्लेख किया है। निर्णयसिन्धु तीन परिच्छेदों में विभक्त है। इसमें जो विषय आये हैं, उन्हें संक्षिप्त रूप से यों लिखा जा सकता है—विविध धार्मिक कृत्यों के उचित समयों के विषय में निश्चित मत देना ही प्रमुख विषय है; सौर आदि मास; चान्द्र महीनों के चार प्रकार, यथा--सौर, चान्द्र आदि; संक्रान्ति कृत्य एवं दान; मलमास, क्षयमास, तिथियों के विषय में; शुद्धा एवं विद्धा; व्रत, साल के विविध व्रत एवं उत्सव ; गर्भाधान आदि विविध संस्कार; सपिण्ड-सम्बन्ध; मूर्ति-प्रतिष्ठा; बोने, अश्व-क्रय आदि के लिए मुहूर्त; श्राद्ध; जन्ममरण पर अशुद्धि; मृत्यूपरान्त कृत्य, सती-कृत्य; संन्यास।
कमलाकर भट्ट का काल भली-भांति ज्ञात किया जा सकता है। निर्णयसिन्धु की रचना १६१२ ई० में हुई थी, और यह कृति उनके आरम्भिक ग्रन्थों में गिनी जा सकती है। उन्होंने बहुत-से ग्रन्थ लिखे हैं, अतः १६१० से १६४० तक का समय उनका रचना-काल माना जा सकता है।
१०७. नीलकण्ठ भट्ट नीलकण्ठ नारायण भट्ट के पौत्र एवं शंकर भट्ट के पुत्र थे। शंकर भट्ट एक उद्भट मीमांसक थे। उन्होंने मीमांसा पर शास्त्रदीपिका, विधिरसायनदूषण, मीमांसाबालप्रकाश नामक ग्रन्थ लिखे हैं। उन्होंने द्वैतनिर्णय, धर्मप्रकाश या सर्वधर्मप्रकाश नामक धर्मशास्त्र-सम्बन्धी ग्रन्थ भी लिखा है। नीलकण्ठ ने यमुना और चम्बल के संगम के भरेह नामक स्थान के सेंगरवंशी बुन्देल सरदार भगवन्तदेव के सम्मान में भगवन्तभास्कर नामक धार्मिक ग्रन्थ लिखा, जो १२ मयूखों (प्रकरणों) में है, यथा--संस्कार, आचार, काल, श्राद्ध, व्यवहार, दान, उत्सर्ग, प्रतिष्ठा, प्रायश्चित्त, शुद्धि एवं शान्ति। नीलकण्ठ ने व्यवहारमयूख का एक संक्षिप्त संस्करण भी व्यवहारतत्त्व के नाम से प्रकाशित किया। .
नीलकण्ठ प्रसिद्ध निबन्धकारों में गिने जाते हैं। वे मीमांसकों के कुल के थे, अत: धर्मशास्त्र में मीमांसा के नियमों के प्रयोगों के वे बड़े ही सफल लेखक हुए हैं। लेखन-शैली, माधुर्य, विद्वत्ता एवं स्मृति-ज्ञान में वे माध्यमिक काल के सभी धर्मशास्त्रकारों में सर्वश्रेष्ठ हैं। यद्यपि उन्होंने विज्ञानेश्वर, हेमाद्रि आदि की प्रशंसा
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