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भवदेव भट्ट, प्रकाश व्यवहारतिलक नामक ग्रन्थ लिखा था। व्यवहारतत्त्व ने भवदेव भट्ट के दुर्बल कारण वाले एक उत्तर का उदाहरण देकर उसका विवेचन उपस्थित किया है। उसी ग्रन्थ में यह भी आया है कि श्रीकर, बालक तथा अन्य लेखकों के समान मवदेव भट्ट ने भी विपरीत अधिकार के विषय में मत प्रकाशित किया है। मिसरू मिश्र के विवादचन्द्र ने भी भवदेव के विचारों की चर्चा की है। आततायी के मारने के बारे में सुमन्तु के कथनों पर भवदेव के मत की चर्चा बीरमित्रोदय ने की है। सरस्वतीविलास एवं नन्द पण्डित के 'वैजयन्ती' नामक ग्रन्थों ने भी भवदेव के मतों की चर्चा की है। इन सब चर्चाओं से प्रकट होता है कि भवदेव भट्ट का व्यवहारतिलक न्याय-विधि पर एक मूल्यवान् अन्य अवश्य समझा जाता रहा। अभाग्यवश अभी ग्रन्थ की प्रति नहीं मिल सकी है। भवदेव भट्ट ने अन्य अन्य भी लिखे हैं।
डेकन कालेज के संग्रह में भवदेव की कई नामों वाली, यथा कर्मानुष्ठानपद्धति या दशकर्मपद्धति या दशकर्मदीपक कृति की दो हस्तलिखित प्रतियां हैं। एम० एम० चक्रवर्ती के कथन से पता चलता है कि यह ग्रन्थ प्रकाशित हो चुका है। इस ग्रंथ में सामवेद पढ़नेवाले ब्राह्मण के दस प्रमुख क्रिया संस्कारों का वर्णन है। प्रमुख विषय ये हैं-नवग्रह-होम, मातृपूजा, पाणिग्रहण तथा अन्य वैवाहिक कार्य; विवाहोपरान्त चौथे दिन पर होम, गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, सोष्यन्तीहोम (वच्जे के जन्म पर होम), जातकर्म, निष्क्रमण, नामकरण, अन्नप्राशन, चूड़ाकरण, उपनयन, समावर्तन, शालाकर्म (नव गृह में प्रथम प्रवेश)।
भवदेव की दूसरी कृति है प्रायश्चित्तनिरूपण जिसमें लेखक की उपाधि है बालवलभी-भुजंग। इसमें २५ स्मृतिकारों, मत्स्य एवं भविष्य पुराणों, विश्वरूप, श्रीकर एवं बालोक (बालक ? ) की चर्चा हुई है। वेदाचार्य के स्मृतिरत्नाकर में इस ग्रन्थ को प्रायश्चित्त के विषय में मनु के बाद सबसे अधिक मान दिया गया है। भवदेव भट्ट की तीसरी कृति है तौतातितमततिलक, जिसमें कुमारिल भट्ट के अनुसार पूर्वमीमांसा के सिद्धान्तों का वर्णन है। उड़ीसा के पुरी जिले के भुवनेश्वर के अनन्तवासुदेव के मन्दिर के एक अभिलेख में भवदेव के बारे में भरपूर चर्चा है। कीलहॉर्न के कथनानुसार अभिलेख १२वीं शताब्दी का है।
हेमाद्रि, मिसरू मिश्र एवं हरिनाथ ने भवदेव भट्ट से उद्धरण लिया है, अतः भवदेव भट्ट की तिथि लगभग ११०० ई० है। कुछ अन्य धर्मशास्त्र-लेखकों का नाम भवदेव है। दानधर्मप्रक्रिया (१७वीं शताब्दी) के लेखक एवं स्मृतिचन्द्रिका (१८वीं शताब्दी) के लेखक का नाम भवदेव ही है। भवदेव भट्ट की कृति कर्मानुष्ठान-पद्धति पर संसारपद्धतिरहस्य नामक एक भाष्य भी है।
७४. प्रकाश आरम्भिक निबन्धकारों ने प्रकाश नामक एक ग्रन्थ की चर्चा की है। कात्यायन के एक श्लोक पर कल्पतरु ने प्रकाश, हलायुध एवं कामधेनु की व्याख्या का उल्लेख किया है। कम-से-कम बीस बार चण्डेश्वर ने अपने विवादरत्नाकर में प्रकाश के मतों की चर्चा की होगी। कभी-कभी प्रकाश पारिजात के साथ ही उल्लिखित होता है। इसी प्रकार कई एक ग्रन्थों में प्रकाश के मतों का हवाला दिया गया है। इस पुस्तक में व्यवहार, दान, श्राद्ध आदि पर प्रकरण थे, यह बात उद्धरणों से सिद्ध हो जाती है।
हम यह निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि प्रकाश एक स्वतन्त्र ग्रन्थ था या एक भाष्य मात्र। कभी-कभी ऐसा मलकता है कि यह याज्ञवल्क्यस्मृति का मानो भाष्य है। विवादचिन्तामणि में प्रकाश की व्याख्याओं की ओर संकेत हुआ है। वीरमित्रोदय में प्रकाश की मनु-सम्बन्धी व्याख्याओं का खण्डन पाया जाता है। कल्पतरु में उल्लिखित होने के कारण प्रकाश की तिथि ११२५ ई० के पूर्व ही मानी जायगी। प्रकाश में मेघातिथि का
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