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चण्डेश्वर, हरिनाथ,माधवाचार्य
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एक विस्तृत निबन्ध है। इसम कृत्य, दान, व्यवहार, शुद्धि, पूजा, विवाद एवं गृहस्थ नामक सात अध्याय हैं। तिरहुत में हिन्दू व्यवहारों (कानूनों) के लिए चण्डेश्वर का विवादरत्नाकर एवं वाचस्पति की विवादचिन्तामणि प्रामाणिक ग्रन्थ माने जाते रहे हैं। कृत्यरत्नाकर में २२ तरंग, गृहस्थरत्नाकर में ६८ तरंग, दानरत्नाकर में २९ तरंग, विवादरत्नाकर में १०० तरंग, शुद्धिरत्नाकर में ३४ तरंग हैं।
स्मार्त विषयों के अतिरिक्त चण्डेश्वर ने कई अन्य ग्रन्थ लिखे हैं, यथा--कृत्यचिन्तामणि, जिसमें ज्योतिषसम्बन्धी बातों के आधार पर उत्सव-संस्कारों का वर्णन है। एक अन्य ग्रन्थ है राजनीतिरत्नाकर, जिसमें १६ तरंगें हैं और राज्य-शासन-सम्बन्धी बातों का ही विवेचन हुआ है। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त दो अन्य ग्रन्थ हैं दानवाक्यावलि एवं शिववाक्यावलि।
. चण्डेश्वर ने बहुत-से लेखकों एवं कृतियों के नाम दिये हैं। उन्होंने अपने पूर्व के पाँच लेखकों के ग्रन्थों से अधिक सहायता ली है, जिनके नाम हैं--कामधेनु, कल्पतरु, पारिजात, प्रकाश एवं हलायुध। अन्य ग्रन्थों एवं ग्रन्थकारों के भी नाम आये हैं, यथा--कामन्दक, कल्लकमद्र, पल्लव, पल्लवकार, श्रीकर आदि।
चण्डेश्वर राजमन्त्री थे। उन्होंने नेपाल की विजय की, और अपने को सोने से तौल कर दान किया था। इनका काल चौदहवीं शताब्दी का प्रथम चरण है। चण्डेश्वर ने मैथिल एवं बंगाली लेखकों पर बहुत प्रभाव डाला है। मिसरू मिश्र, वर्धमान, वाचस्पति मिश्र एवं रघुनन्दन ने इन्हें बहुत उद्धृत किया है। वीरमित्रोदय ने रत्नाकर को पौरस्त्य निबन्ध (पूर्वी निबन्ध) कहा है।
९१. हरिनाथ हरिनाथ धर्मशास्त्र-विषयक बहुत-सी बातों वाले स्मृतिसार नामक निबन्ध के लेखक हैं। इस निबन्ध का कोई अंश अभी प्रकाशित नहीं हो सका है। इसकी हस्तलिखित प्रतियाँ उपलब्ध हैं। उनमें एफ में कर्मप्रदीप, कल्पतरु, कामधेनु, कुमार, गणेश्वर मिश्र, विज्ञानेश्वर, विलम्ब, स्मृतिमंजूषा, हरिहर आदि ६७ धर्मशास्त्र-प्रमापक अर्थात् प्रामाणिक कृतियाँ एवं लेखक उल्लिखित हैं। हरिनाथ ने आचार, संस्कार एवं व्यवहार आदि सभी विषयों पर लेखनी चलायी है।
स्मृतिसार में हरिनाथ के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती, केवल उसके अन्त में वे महामहोपाध्याय कहे गये हैं। उन्होंने गौड़ों के क्रिया-संस्कारों की ओर इस प्रकार संकेत किया है कि लगता है वे मैथिल हैं। स्मृतिसार के विवाद (व्यवहार-पद) खण्ड की एक प्रति में संवत् १६१४ (सन् १५५८ ई०) आया है, और उसी खण्ड की दूसरी प्रति में लिपिक ने लक्ष्मण-संवत् ३६३ (१४६९-१४७० ई०) दिया है। शूलपाणि ने अपने दुर्गोत्सवविवेक एवं मिसरू मिश्र ने अपने विवादचन्द्र में हरिनाथलिखित स्मृतिसार के मत दिये हैं। इससे स्पष्ट है कि स्मृतिसार १४वीं शताब्दी के अन्तिम चरण के पहले ही प्रणीत हो चुका था। चण्डेश्वर एवं हरिनाथ ने एक दूसरे की कहीं भी चर्चा नहीं की है, अत: लगता है, दोनों समकालीन थे। हरिनाथ ने कल्पतरु एवं हरिहर का उल्लेख किया है। अत: वे १२५० ई० के उपरान्त ही हुए होंगे। यदि हरिनाथ द्वारा उद्धत गणेश्वर मिश्र चण्डेश्वर के चाचा हैं, तो वे १३०० ई० के पूर्व नहीं हो सकते। हरिनाथ को वाचस्पति मिथ रघुनन्दन, कमलाकर, नीलकण्ठ तथा अन्य लेखकों ने उद्धृत किया है।
९२. माधवाचार्य धर्मशास्त्र पर लिखने वाले दाक्षिणात्य लेखकों में माधवाचार्य सर्वश्रेष्ठ हैं। ख्याति में शंकराचार्य के
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