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धर्मशास्त्र का इतिहास
व्यावसायिक श्रेणियों का उल्लेख किया है। उन्होंने आस्तिकता एवं वेदों की निन्दा कि ओर भी संकेत किया है। और बहुत प्रकार की बोलियों की चर्चा की है। उन्होंने 'केचित्', 'अपरे', 'अन्ये' कहकर अन्य लेखकों के मत का उद्घाटन किया है।
बहलर का कथन है कि पहले एक मानवधर्मसूत्र था, जिसका रूपान्तर मनुस्मृति में हुआ है । किन्तु, वास्तव यह एक कोरी कल्पना है, क्योंकि मानवधर्म सूत्र था ही नहीं ।
अब हम आन्तरिक एवं बाह्य साक्षियों के आधार पर मनुस्मृति के काल-निर्णय का प्रयत्न करेंगे। प्रथमतः हम बाह्य साक्षियां लेते हैं। मनुस्मृति की सबसे प्राचीन टीका मेघातिथि की है, जिसका काल है ९०० ई० । याज्ञवल्क्यस्मृति के व्याख्याकार विश्वरूप ने मनुस्मृति के जो लगभग २०० श्लोक उद्धृत किये हैं, वे सब बारहों अध्यायों के हैं। दोनों व्याख्याकारों ने वर्तमान मनुस्मृति से ही उद्धरण लिये हैं । वेदान्तसूत्र के भाष्य में शंकराचार्य ने मनु को अधिकतर उद्धृत किया है । वेदान्तसूत्र के लेखक मनुस्मृति पर बहुत निर्भर रहते हैं; ऐसा शंकराचार्य ने कहा है । कुमारिल के तन्त्रवार्तिक में मनुस्मृति को सभी स्मृतियों से और गौतमधर्मसूत्र से भी प्राचीन कहा है । मृच्छकटिक (९.३९ ) ने पापी ब्राह्मण के दण्ड के विषय में मनु का हवाला दिया है, और कहा है कि पापी ब्राह्मण को मृत्यु-दण्ड न देकर देश- निष्कासन दण्ड देना चाहिए। वलभीराज धारसेन के एक अभिलेख से पता चलता है कि सन् ५७१ ई० में वर्तमान मनुस्मृति उपस्थित थी । जैमिनिसूत्र के भाष्यकार शबरस्वामी ने मी, जो ५०० ई० के बाद के नहीं हो सकते, प्रत्युत पहले के ही हो सकते हैं, मनुस्मृति को उद्धृत किया है। अपरार्क एवं कुल्लूक ने भविष्यपुराण द्वारा उद्धृत मनुस्मृति के श्लोकों की चर्चा की है । बृहस्पति ने, जिनका काल है ५०० ई०, मनुस्मृति की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। बृहस्पति ने जो कुछ उद्धृत किया है वह वर्तमान मनुस्मृति में पाया जाता है। स्मृतिचन्द्रिका में उल्लिखित अङ्गिरा ने मनु के धर्मशास्त्र की चर्चा की है। अश्वघोष की वज्रसूचिकोपनिषद् में मानव धर्म के कुछ ऐसे उद्धरण हैं जो वर्तमान मनुस्मृति में पाये जाते हैं, कुछ ऐसे भी हैं, जो नहीं मिलते। रामायण में वर्तमान मनुस्मृति की बातें पायी जाती
हैं ।
उपर्युक्त बाह्य साक्षियों से स्पष्ट है कि द्वितीय शताब्दी के बाद के अधिकतर लेखकों ने मनुस्मृति को प्रामाणिक ग्रन्थ माना है ।
संकेत कर लें ।
क्या मनुस्मृति के कई संशोधन हुए हैं ? सम्भवतः नहीं । नारदस्मृति में जो यह आया है कि - मनु का शास्त्र नारद, मार्कण्डेय एवं सुमति भार्गव द्वारा संक्षिप्त किया गया; भ्रामक उक्ति है, वास्तव में ऐसा कहकर नारद ने अपनी महत्ता गायी है। अब हम कुछ आन्तरिक साक्षियों की ओर भी वर्तमान मनुस्मृति याज्ञवल्क्य से बहुत प्राचीन है, क्योंकि मनुस्मृति में न्याय-विधि - सम्बन्धी बातें अपूर्ण हैं और याज्ञवल्क्यस्मृति इस बात में बहुत पूर्ण है । याज्ञवल्क्य की तिथि कम-से-कम तीसरी शताब्दी है । अतः मनुस्मृति को इससे बहुत पहले रचा जाना चाहिए। मनु ने यवनों, कम्बोजों, शकों, पह, लवों एवं चीनों के नाम लिये हैं, अतएव वे ई० पू० तीसरी शताब्दी से बहुत पहले नहीं हो सकते । यवन, काम्बोज एवं गान्धार लोगों का वर्णन अशोक के पाँचवें प्रस्तर - अनुशासन में आ चुका है । वर्त्तमान मनुस्मृति गठन एवं सिद्धान्तों में प्राचीन धर्मसूत्रों, अर्थात् गौतम, बौधायन एवं आपस्तम्ब के धर्मसूत्रों से बहुत आगे है। अतः निस्सन्देह इसकी रचना धर्मसूत्रों के उपरान्त हुई है। अतः स्पष्ट है कि मनुस्मृति की रचना ई० पू० दूसरी शताब्दी तथा ईसा के उपरान्त दूसरी शताब्दी के बीच कभी हुई होगी। संशोधित एवं परिवर्धित मनुस्मृति की रचना कब हुई, इस प्रश्न का उत्तर मनुस्मृति एवं महाभारत के पारस्परिक सम्बन्ध के ज्ञान पर निर्भर रहता है। श्री वी० एन०
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