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पौष, वीर नि०सं०२४५६
कर्णाटक-जैन कवि ने प्रौढगय (१४१९.१४४६) की सभामें अनेक विद्वानों किया है और मंगलाचरणमें कोंड हुँद, समन्तभद्र, मे शास्त्रार्थ करके जयपत्र प्राप्त किया था। पंडितमुनि, धर्मभूषण, भट्टाकलंक, देवकीर्ति, मुनिभद्र,
वोम्मरसके सनत्कुमारचरित और जीवंधरसांगत्य विजयकीर्ति, ललितर्काति, और श्रुतकीर्ति इन कविनामक दो ग्रंथ उपलब्ध हैं । सनत्कुमारचरित भामिनी गुरुओं की स्तुति की है। पदपदी (छन्द) में लिखा गया है। उसमें १७ सन्धि जीवंधरपटपदीकी केवल एक ही अपूर्ण प्रति
और ८७० पद्य हैं । प्रारंभमें मंगलाचरणके बाद जिन- उपलब्ध हुई है जिसमें शुरूके ९ अध्याय और दसवें धर्मशाम्रोद्धारक गुणभद्र, अकलंक, वीरसन, पूज्यपाद अध्यायके ११९ पद्य हैं। और अपने प्रपितामह वादीभसिंह नमिचन्द्रका नाम
श्रीधरदेव (१५००) म्मरण किया गया है। जीवंधरसांगत्यमें १० सन्धि
इनका बनाया हुआ वैद्यामृत नामका ग्रन्थ प्राप्य और १४४९ पद्य हैं।
है। इसमें इन्होंने अपनका ‘जगदेकमहामन्त्रवादि' ७ कोटीश्वर (१५०८) विशेपणस विभृपित किया है । मुनि चन्द्रदेवकी इच्छा __इनके पितातम्मणसट्टि तुलुदेशान्तर्गत वइदर राज्य के अनुसार यह ग्रंथ निर्मित हुआ है । इस प्रन्थसे कवि के सेनापति थे । इनकी माताका नाम रामक, बड़े भाई के विषयों और किसी बातका पता नहीं लगता है । का नाम सोमेश और छोटे भाईका नाम दुर्ग था। वैद्यामन चम्प ग्रंथ है । इसमें गद्य भागही अधिक मंगीतपुरके आस्थानश्रेष्ठी (नगरसेठ ? ) 'कामणसे- है,बीच बी वमें कन्द पद्य हैं। इसके २४ अधिकार हैं। ही' इनका जामाता था । श्रवणबेलगुलके पण्डित- और चिकित्मा-विधानमें बहुत जगह मन्त्र दिये गये हैं योगीक शिष्य प्रभाचन्द्र इनके गुरु थे । संगीतपुरक नमिजिनेश इनके इष्टदेव और संगीतपुरनरेश मंगम
यश कीर्ति (१५००, इनके आश्रय-दाता थे। इन्हीं की आज्ञासे इन्होंने इन्होंने धर्मशर्माभ्युदय काव्यकी 'सन्देहध्वान्तजीवन्धरपट्पदी नामक ग्रंथकी रचना की थी। दीपिका' नामकी टीका लिखी है । ये ललितकीतिक विलगि ताल्लकेके एक शिलालेखसे मालूम होता है कि शि
र शिष्य थे । इनका समय ई० सन् १५०० के लगभग श्रुनीति संगमके गुरु थे और श्रुतकीर्तिकी शिष्य में
- माननमें कोई हानि नहीं है । टीकाके अंतमें इस प्रकार परम्परामें 'कर्नाटक-शब्दानशासन' के कर्ता भटाकला का गद्य दिया है(१६०४) पाँचवें थे और चूंकि कोटीश्वरन जीवन्धर
"इति श्रीमन्मण्डलाचार्य-ललितकीति-शिष्यश्री षट्पदीमें जो अपने पूर्व गुरुओंकी स्तुति की है, उसमें यशःकीति-विरचितायां सन्देहध्वान्तदीपिकायाम्-" विजयकीर्तिके शिष्य श्रुतकीर्ति पर्यंत स्तुति है, इससे
१० शुभचन्द्र (१५००) मालूम होता है कि कोटीश्वरका समय ई०सन १५०० इन्होंन 'नरपिंगलि' नामका ज्योतिष ग्रन्थ लिखा के लग भग होगा।
है जिसमें १६७ कन्दपद्य हैं । अन्तमं इस प्रकारका गद्य ____ अपने पूर्वके कवियों में उन्होंने जन्न, नमिचन्द्र, है-" इदु शुभचंद्र-सिद्धांतयोगीन्द्र-विरचितमप्प नरहोन्न, हंपरस, अग्गल, रम, गणवर्म,नागवर्मका स्मरण पिंगलि-"