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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ३ वीर मुझे बोधि लाभ दें। क्षम (क्षमा), दम (इंद्रिय- अभी तक इनसे पहलेके किसी भी प्राचीन प्रन्यसे दमन), नियम के धारक, कर्मरहित, सुखदुःखविप्रयुक्त इसकी पुष्टि नहीं हुई है ; अतएव भाचर्य नहीं, जो
और ज्ञानसे सल्लेखना को उद्योतित करनेवाले जिनवरों यह भ० प्रभाचंद्रकी ही कल्पना हो * । इससे (तीर्थंकरों) को नमस्कार हो।
पहले का एक वृहत् कथाकोश उपलब्ध है, जो शक ___ इससे मालूम होता है कि ग्रन्थकर्ता का पूरा नाम संवत् ८५३ (वि० संवन् ९८९) का बना हुआ है।
आर्य शिवनन्दि या शिवगत रहा होगा जिसको कि और जिसके कर्ता आचार्य हरिषेण हैं । ये उसी प्रान्त संक्षेप करके शिवार्य लिखा गया है। 'आर्य' शब्द के समीप के रहने वाले थे जहाँ कि स्वामी समन्तभद्र आचार्यका पर्यायवाची है । प्राचीन ग्रंथों में यह शब्द हुए हैं । इन के कथाकोशमें स्वामी समन्तभद्रकी कथा अधिक व्यवहृत हुआ है। परन्तु ये शिवार्य स्वामी अवश्य होती यदि वह उस समय इस रूपमें प्रचलित समन्तभद्र के शिष्य शिवकोटि कैसे बन गये, यह मैं होती जिस रूपमें कि प्रभाचन्द्र और ब्रह्म नेमिदत्तने बहुत सोच विचार करने पर भी नहीं समझ सका हूँ। लिखी है । एक बात और है और वह यह कि,हरिषेण स्वामी समन्तभद्रकी कथामें लिखा है कि,काशीके जिस के कथाकोशमें वे सभी कथायें मौजूद हैं जो आराधना
शैवराजा शिवकोटिकोस्वामीसमन्तभद्रने अपना प्रभाव कथाकोशमें मिलती हैं। केवल स्वामी समन्तभद्रकी और दिखला कर जैनधर्ममें दीक्षित किया था उसीने पीछे इसीके तुल्य भट्टाकलंकदेव तथा पात्रकेसरीकी कथायें भगवती माराधनाकी रचना की थी। परन्तु इस कथा- नहीं हैं। अतएव इन कथाओंको बहुत प्रामाणिक नहीं भाग पर विश्वास करने की इच्छा नहीं होती। क्योंकि
माना जा सकता। कम से कम इनकी प्रत्येक बात यदि इस प्रन्थके कर्ता सचमुच ही समन्तभद्रके शिष्य
ऐतिहासिक नहीं मानी जा सकती । होते तो यह संभव नहीं था कि वे अपने ग्रन्थमें उनका उल्लेख नकरते। कमसे कम उनका नामस्मरण तो अवश्य
*५० माशाधरजी भ. प्रभाचन्द्रसे पहले १३वीं शताब्दी में करते । वे स्पष्टरूप से अपने तीन गुरुओं का स्मरण हुए हैं। उन्होंने इसी प्रथकी टीका में मूल ग्रन्थकारका नाम 'शिवकरते हैं और कहते हैं कि उनके चरणोंके निकट कोटि दिया है । इससे यह नामकल्पना प्रभाच-द्रकी ही नहीं हो अध्ययन करके मैंने इसे लिखा है। जान पड़ता है कि
सकती।
-सम्पादक थोड़ी सी नामकी समता देख कर ही 'शिवार्य' को
इस ग्रन्थका पूरा परिचय प्राप्त करनेके लिए देखा, जनहितैषी 'शिवकोटि' बना डाला गया है और फिर उनका स्वामी भाग VIE ७-८में मेरा 'श्रीहरिषेण कृत कथाकोश' शीर्षक लेख । समन्तभद्रसे सम्बन्ध जोड़ दिया गया है।
४ भहाकलककी कथा कितनी कोलकल्पित है, यह जानने के ___ स्वामीसमन्तभद्रकी उक्त कथाभट्टारक प्रभाचंद्रके
लिए अनहितषी भाग ११ भ७-८ में मेरा लिखा हुमा 'भागय कथाकोशमें और उसी के पद्यानुवादरूप ब्रह्मचारी
कनकदेव' शीर्षक लेख पढ़िए । स्वयं प्रकलकदेवके राजवार्तिकमें नेमिदत्तके पाराधनाकथाकोशमें दी हुई है और ये दोनों नीचे लिखा हुआ पद्य है जिससे मालूम होता है कि वे 'लघुहब्व' ही कथाकोश विक्रमकी १६वीं शताब्दीके बने हुए है। नामक राजा के पुत्र थेब्रह्मनेमिदत्त महारक मलिभषणके शिष्य थे। उन्होंने अपना
जीयाचिरमकलकनह्मा लघुहब्बनृपतिवरतनयः । श्रीपालचरित्र नामका प्रथवि० सं० १५८५ में बनाकर समाप्त किया
अनवरतनिखिलद्धिजननुतविद्यः प्रशस्तजनयः ।। है। ब्रह्मनेमिक्तका कपाकोश छप चुका है, परन्तु प्रभाक्यका अभी जबकि माराधनाकयाकोशके कतनि पुरुषोत्तम मशीका नहींपा।
पुत्र बतलाया है।