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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ११, १२ और दूसग सबल प्रमाण ना उनकी टिप्पणी ही है। ऐसी छाप दिगम्बरीय पक्ष पर डालनी और साथ ही सत्रका पाठभेद और सूत्रोंकी संख्या दिगम्बर्गय श्वेताम्बरीय अभ्यासियोंको बतलाना कि दिगम्बरीय स्वीकार करने पर भी उसका अर्थ किसी जगह उन्होंने सूत्रपाठ या श्वेताम्बरीय सत्रपाठ चाहे जो लो इन विगंबर परम्परा अनुकूल नहीं किया। हाँ यहाँ एक दोनोंमें पाठभेद होते हुए भी अर्थ तो एक ही प्रकार प्रश्न होता है, और वह यह कि यशोविजय जी श्वेता- का निकलना है और वह श्वेताम्बर परम्पराको ठीक म्बर होते हुए भी उन्होंने दिगम्बर मत्रपाठ कैसे लिया बैठे वैसा ही है। इससे दिगम्बर्गय सत्रपाठसे भड़कने होगा ? क्या वे श्वेताम्बरीय सुत्रपाठसे परिचित नहीं की या उम विरोधी पक्षका सत्रपाठ समझ कर फेंक थे? या परिचित होने पर भी उन्हें दिगम्बरीय सत्र दनकी कोई जरूरत नहीं । तुम चाहो तो भाष्यमान्य पाठमे ही श्वेताम्बरीय मुत्रपाठ की अपेक्षा अधिक सत्रपाठ मीग्या या सर्वार्थसिद्धिमान्य सत्रपाठ याद महत्व दिखाई दिया होगा ? इसका उत्तर यही उचित कगं । नत्व दोनों में एक ही है । इस गतिसं एक तरफ जान परना है कि वे श्वेताम्बर सत्रपाठस परिचिन नां दिगम्बरीय विद्वानोंको उनकं सत्रपाठमसे सरल रीतिसे अवश्य होंगे ही और उनकी दृष्टिम उसी पाठका महत्व सत्य अर्थ क्या निकल मकता है यह बतलाने के लिये भी होगा ही, क्योंकि घमा न होना ना वे श्वेताम्बर- और दमग तरफ श्वेताम्बर अभ्यासियोंको पक्षभेदक परम्परा अनुसार टिप्पणी रचन ही नहीं; ऐसा होने कारण दिगम्बर्गय मत्रपाठमे न भड़कें ऐसा समझाने पर भी उन्होंने दिगम्बरीय मत्रपाट पहरण किया इस के उद्देश्यम ही, इन यशोविजयजीन श्वेताम्बर्गय सूत्रका कारण यह होना चाहिये कि जिम मूत्रपाठक पाठ छोड़ कर दिगम्बरीय मूत्रपाठ पर टिप्पणी लिम्वी
आधार पर दिगम्बर्गय मभी विद्वान हजार वर्ष हुए हो, ऐमा जान पड़ता है। दिगम्बर परम्परा अनुसार ही श्वेताम्बर आगमों
पूज्यपाद में विभक अर्थ करते श्राप है. उमी मत्रपाठीम।
पूज्यपादका अमली नाम देवनन्दी है । ये विक्रम श्वेताम्बर परम्पराको ठीक अनुकूल पड़, ऐमा अथ की पांचवीं, छठी शताब्दीमें हुए हैं। इन्होंने व्याकरण निकालना और करना बिलकुल शक्य तथा मंगत है, माविक विषयों पर प्रा लिखे हैं. जिनमें क कृत ममारः।"-प्रबनय श्रीकान्तिविजयजीक शास्त्रमग्रहमको
तो उपलब्ध हैं और कुछ अभी तक मिले नहीं। दिगलिखित टिप्पणी की पुस्तक।
म्बर व्याख्याका में पज्यपादसे पहले सिर्फ शिवकोटि१३ 1. इस बीकार करने में अपवाद भी है जा किमत था । उदाहरण के तौर पर मायाय ४ का १: वां सत्र उन्होंने
१. दग्वा, नसाहित्य मंगायक प्रथम भाग १०८३ । दिगम्बरीय सूत्रपाठमेसनी लिया। दिगम्बर गोलह मानते हैं.
१३ शिवकोटिकृत तत्वाव्याच्या या उसके प्रक्तामा कम इस लिये उनका पाठ लेनेमें ताम्बीयता नहीं रह सकती, इसम
प्राज उपलब्ध नहीं हैं। उन्होंने तत्वार्थ पर कुछ लिखा था एसी इन्होंने इस स्थल पर चेताम्बर सूत्रपाटीम को बारह बका नाम- सूचना कुछ प्रचीन शिलालम्बा की प्रशस्ति पाम होती+। वाला सुन लिया है।
शिक्कोटि समन्तभद्रके शिष्य थे, मी मान्यता है । दम्वा, 'स्वामी "दग्बा, मधिमिद्धि, .३ की की, 9 समन्तभा ' पृय ६६ । की मोर...: की।
+भाल्गेलका शिलालेख न.१..शक मदन १३..