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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ११, १२ मण्डन होता है उन्हींके द्वाराशरीरके स्वास्थ्यका साथही दूसरे यह है कि सम्पादकके द्वारा लिखी हुई मेरी साथ खण्डन होजाता है । अतः स्वण्डनके साथ मण्डन भावना, उपासनातरव, विवाहसमुद्देश्य, स्वामी समका और मण्डनके साथ खण्डनका अनिवार्य संबंध न्तभद्र (इतिहास), जिनपूजाधिकारमीमांसा, शिक्षाहै, जिसको शास्त्रीय परिभाषामें अस्तित्वके साथ ना. प्रद शास्त्रीय उदाहरण, जैनाचार्योका शासनभेद, वीरस्तित्वका और नास्तित्वके साथ अस्तित्वका अविनाभाव पष्पांजलि, महावीरसंदेश, मीनसंवाद, हम दुखी क्यों ? सम्बंध बतलाया गया है और जो स्वामी समन्तभद्रके और विवाहक्षेत्रप्रकाश जैसी पुस्तकों तथा जैनहितैषी 'अस्तित्वं प्रतिषेध्येनाविनाभाव्येकर्मिणि' जैसे पत्रको भी, जो प्रायः सभी आपको मिल चुके हैं, तथा 'नास्तित्वं प्रधिषध्येनाविनामाव्यकर्मिणि' या तो आपने मण्डनात्मक नहीं समझा है और या उन्हें जैसे वाक्योंसे स्पष्ट प्रकट है । अतः काबिल तारीक
काबिल तारीफ़ नहीं पाया है । मण्डनात्मक न समझना खण्डनके द्वारा काबिल तारीफ मण्डनका कोई काम
तो समझकी विलक्षणताको प्रकट करेगा और तब
मंडनका कोई अलौकिक ही लक्षण बतलाना होगा, नही हुया,यह कहना अथवा समझना ही भल है और यह बात खुद बैरिष्टर साहबके एक पत्रके भी विरुद्ध
इस लिये यह कहना तो नहीं बनता; तब यही कहना पड़ती है जिसमें आपने सम्पादकके 'ग्रंथपरीक्षा-द्विती
होगा कि आपने उन्हें काबिल तारीफ नहीं पाया है । य भाग' पर सम्मति देते हुए लिखा है
अस्तु; इनमें से कुछ के ऊपर मुझे आपके प्रशंसात्मक
विचार प्राप्त हुए हैं उनमें से तीन विचार जो इस वक्त "वाकई में आपने खूब छानबीन की है और सत्य
मापन खूब छानबान का ह आरसपा मुझे सहज ही में मिल सके हैं, नमूनके तौर पर नीचे का निर्णय कर दिया है। आपके इस मजमूनसे दिये जाते हैं:मुझे बड़ी भारी मदद जैनलों के तय्यार करने १ "अाज 'शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरण' प्राप्त में मिलेगी । .. 'आपका परिश्रम सराहनीय है। हुआ । श्रापके लेव महत्वपूर्ण और सप्रमाण होते हैं। मरारिबके विद्वान भी शायद इतनी बारीकी से छानबीन इस पुस्तकसे मुझे अपने विचारोंके स्थिर करनेमें बहुत नहीं कर पाते जिस तरह से इस ग्रंथ ( भदबाहसंहिता) कुछ सहायता मिलेगी। आप दूरदशी है और गभार को मापने की है। पाप जैनधर्मके दुश्मन कल प्रश- विचार रखतहा" खासकी निगाहमें गिने जाते हैं, यह इसी कारणसे है
२"विवाहक्षेत्र प्रकाश' जो आपन देहलीमें मुझे कि भापकी समालोचना बहुत बेढब होती है और
दी थी वह श्राज खतम हो गई है । वास्तवमें इस पु
स्तकको लिख कर बाब जगलकिशोरजी ने जैनधर्मका असलियत को प्रकट कर देती है। मगर मेरे खयालमें इस काममें कोई भी अंश जैनधर्मकी विरुद्धता तारीफ करनी जरूरी नहीं है । हर सतरसे तहरीरकी
बहुत ही उपकार किया है। बाब साहब मौसफ़की का नहीं पाया जाता है, बल्कि यह तो जैनधर्मको
खूबी, बुद्धिमत्ता पालादर्जेकी कुशलता, लेखककं भावों अपवित्रताके मेलसे शुद्ध करनेका उपाय है।" की उदारताका परिचय मिलता है । हिम्मत और शान
क्या सत्यका निर्णय कर देना, जैनला की तय्यारी लेखक महाशयकी सराहनीय है। मेरे हृदयमें जितनी में बड़ी भारी मदद पहुँचाना, असलियतको प्रकट कर शंकाएँ पैदा हो गई थी वे सब इस पुस्तकके पाठ करने देना और जैनधर्मको अपवित्रताके मैलसे शुद्ध करने से समाधान हो गई हैं। इसीका नाम पांडित्य है। का उपाय करना, यह सब कोई मण्डनात्मक कार्य वास्तवमें जैनधर्मके आलमगीरपन ( सर्वव्यापी क्षेत्र) नहीं हैं ? जरूर हैं। तब आपका उक्त लिखना क्रोधके को जिस चीजने संकीर्ण बना रक्खा है वह कुछ गत भावेशमें असलियतको भुला देनेके सिवाय और कुछ नवीन समयके हिन्दू रिवाजोंकी गुलामी ही है। कुछ भी समझ में नहीं आता।
संकुचित खयालके व्यक्तियोंने जैनिज्म ( Jainism)