Book Title: Anekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
View full book text
________________
* लतमाय जैनग्रन्थ ग्रंथका ' कहाँ उल्लेख है ? पारितोषिक
१ जामिद्धि, संस्कृत वामिममन्नभद्र जिनमनकृत हरिवंशपुगणमें * २ नन्वार्थमुत्र, टीका,
मं शिवकोटि श्राचार्य श्रवणवन्गाल शिलालम्बनं०१०में १७) नव स्नात्र, मं० वननन्दी प्राचार्य
___,, नं. ५४में १००) सुमनिमप्रक,मा सुमनिदेवाचाय 11५शन्दवाच्य, मंग
वक्रीव महामुनि १६चडामणि, मं ' श्रीवर्धदेवाचार्य (4 उतत्वानशामन, म म्वामिममन्तभद्र उल्लंग्व-परिचयके लिय दम्या,
जनहिनी भाग ५ पृ. ३५. ८ जन्पनिर्णय, मं পালায় विद्यानंदकृत श्लोकवानिकी ५वादन्याय, मं
कुमारनंदाचार्य .. पत्रपर्गनाम १८ प्रमाणसंग्रह-भाष्य. म . अनंती याचार्य मिद्धिविनिश्रय टीकाम १. प्रमागगमग्रह,ममोपनभाष्य अकनकदेव
... अनन्तवीय क भाप्यमे १२ मिद्धिविनिय, मल तथा
म्वोपज्ञ भाज्य, म । १३ न्यायविनिय, मूल नथा'
.. नया न्यायविटीकाम T म्बापज्ञ भाग्य, म
१४ विलनगकदर्थन. म. पाऊमरी स्वामी १५ म्याद्वादमहाग्गव, मं. .
न्यायविनिश्यालंकारम Y१६ विद्यानंदमहोदय, म. · विधानाचार्य विद्यानदादिकी अनेक कृतियोम १७ कर्मप्राभन, टीका. मः खामिममन्तमा इन्द्र नंदिकृत श्रृतावनाम
११) • १८ मन्मनितक, टीका, मं. मन्मन्याचार्य वादिगजके पाश्वनाथचरितम जीवमिद्धि, मं
अनन्नानि प्राचार्य वादिगजके पाश्वनाथचरितमे मिद्धिभपद्धति टीका, मंः वीरमनाचार्य गगणभद्र के उत्तर पुगगमे सुलोचना, म . महामनाचार्य जिनमनकं हरिवंशपुगगामे वगंगग्नि,
म विपंगाचार्य २३ मार्गप्रकाश, मं.
नियममारकी टीकाम ५ श्रुतबन्ध. मं . ५ गद्धान्नवाचार्य, मं: . आर्यदेवाचार्य मल्लिग्णप्रशाम्त (श्र०शि० ५५)
तथा वीरनंदिकृत आचारमारम सिद्धान्तमार(तर्क गंथ)मं. . जयशंम्बर के षड्दर्शनममुखयमे
७ वागर्थमंग्रह पुगण कविपरमग्री जिनसनके आदिपुगणमे T
जगलकिशोर मुग्लार संपूर्ण पत्रव्यवहारका पता :- अधिष्ठाता "समन्तभद्राश्रम," करीलबारा. दहली।
"
१०)
मुद्रक और प्रकाशक, अयोध्याप्रमाद गोयनीय। गयाटन प्रेम, लोथ मारकंट देहली में छपा ।

Page Navigation
1 ... 657 658 659 660