Book Title: Anekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 589
________________ ६०८ अनकान्त [वर्ष १, किरण ११, १२ वाल' के कर्ता प्रचण्ड तार्किक मल्लबादि से प्रस्तुत इति लोकायतरादान्तःसमाप्तः सर्वसिद्धान्तमवेटिप्पणकार मल्लवादि भिन्न होने चाहिये, क्योंकि जैन- शकसमाप्तः नियायिक-वशेषिक-जैन-सांख्यपरम्परानुसार 'नयचक्रवाल' के कर्ताका समय चौथी बौद्ध-मीमांसक-लोकायतिकमतानि संक्षेपतः शताब्दि हैx।इस टिप्पणको 'गायकवाड़ ओरियन्टल समाख्यातानि ।" सिरीज' छपवाये तो अच्छा है। १०-संयमाख्यानकम् ह सर्वसिद्धान्तप्रवेश ५१-प्रकीर्ण माधवाचार्य कृत 'सर्वदर्शनसंग्रह' की पद्धतिका उपर्युक्त ११ ग्रंथोंमेंसे द्रव्यालङ्कारवत्ति, कुव. यह ग्रंथ जैनाचार्यकृत होना चाहिये। क्योंकि ग्रंथकारने लयमाला, विलासवइकहा, धर्मोत्तरटिप्पण और इसके मंगलाचरणमें जिनेश्वर को नमस्कार किया मिटातप्रवेशच पंथीको मारी जैन है। इसमें नैयायिक आदि सात दर्शनोंका मुख्यतया साहित्यप्रचारक संस्थायें और विद्वान शीघ्र ही प्रकावर्णन है। इस प्रन्थका अन्तिम भाग इस प्रकार है :"लोकायतिकानां संक्षेपतः प्रपेयम्वरूपम् शित करनका यथाशक्य प्रयत्न करेंगे ऐसी आशा रखना हुआ मैं इस लेखको समाप्त करता हूँ। श्रीx जेनरम्पराका यह समय-वधी कथन क्या जांचक द्वाग मोहनलाल जैन सेन्ट्रल लायब्रेरी की हस्तलिखित उपठीक पाया गया है। यदि नहीं तो फिर दोनोंको एक माननेमें क्या बाधा है। -सम्पादक योगी प्रन्थ प्रतियोंकी सूची मैंने देखी है, और नोट भी * सर्वभावप्रणेतारं प्रणिपत्य जिनेश्वरं । किये हैं, उसके सम्बन्धमें समय मिलने पर विवेचन वक्ष्ये सर्वविगमेकं यदिवंतवलक्षणम ।। सहित लिम्बनका विचार है। मिथ्या धारणा माजकल भारतवर्षमें बहुतसे हिंसक, तीन कषायाँ "कनलल मूज़ी कबलुल ईज़ा" ' और रौद्र परिणामी मनुष्य भिरड़,नतेय, बिच्छू, अर्थात-'ईजा (दुख) पहुँचानसे पहले ही मूजी कानखजूरे, तथा खटमल, पिस्सू , मच्छर आदि छोटे (दुख देने वाले) का मार डालना चाहिये । परन्तु वे छोटे दीन जन्तुओं को मारकर अपनी बहादुरी जतलाया कभी इस बातका.विचार भी नहीं करते हैं कि जब करते हैं और भिरड़ ततैयोंके छत्तीमें आग लगा कर भिरड़, ततैये आदि थोड़ी सी पीड़ा पहुँचान हीके तीसमारखों बना करते हैं । जब उनसे कोई करुण- कारण मूजी और वयोग्य हैं तो फिर हम, जो कि हृदय व्यक्ति पूछता है कि आप ऐमा निर्दयताको लिये उनको जानसे ही मार डालते हैं और उन जन्तुओंका हुए हिंसक कार्य क्यों करते हैं? तो वे बड़े हर्षके साथ, गाँवका गाँव (छत्ता ) भस्म कर देते हैं, उनसे कितने मुसलमान न होते हुए भी, उत्तरमें यह मुसलमानी दर्जे अधिक मूजी और वधयोग्य ठहरते हैं। मिद्धान्त सुना देते हैं कि वाम्नवमें विचार किया जाय तो यह मब उनकी

Loading...

Page Navigation
1 ... 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660