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अनेकान्त
[ वर्ष १, किरण ११. १२
का आधिपत्य था ' । 'उवासगदशासूत्र' (२,४ ) में उसे लिये गणराज्यका अस्तित्व चेटकके जीवन में ही वै
'नायपण्डवन उज्जान' लिखा है और वह नाथवंशीज्ञातक क्षत्रियोंके निवासस्थान 'कोल्लग सन्निवेश' के निकट था । अतएव दिगंबर शास्त्रमें प्रयुक्त हुए 'कुल' शब्दको () : ।। या गोत्रके अर्थ में लेनेसे यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवान् महावीर के कुल ज्ञातु या नाथका निवासस्थान अर्थात् कोल्लग उनके प्रथम पारणाका स्थान और उनके कुलका नृप उनका आहारदाता था । यहाँ कुलनृप - गणराजाके रूपमें ही व्यवहृत हुआ प्रतीत होता है । अतः इससे यही मानना ठीक जँचता है कि कोल्लग के ज्ञातृवंशीय क्षत्रियों में भी संघ या गणराज्य था और उनका प्रत्येक सदस्य राजा कहलाता था । निस्सन्देह बौद्ध साहित्य यही प्रकट करता है । वह वज्जियन राष्ट्रसंघ में लिच्छिवि आदि आठ कुलोको सम्मिलित प्रकट करता है और श्वेताम्बर शास्त्र भी म० महावीरको 'वैशालीय' और वैशाली को 'महावीरजननी' बता कर इस मान्यताका समर्थन करते हैं; क्योंकि यदि भ० महावीर और उनका कुल वैशाली के राष्ट्रसंघ में शामिल न होता तो उनको ऐसा न कहा जाता । अतः वैशाली में संघ या गण सरकार मानना ही युक्तियुक्त सिद्ध होता है ।
अब हमें इस आलोचना में पहले ही उपस्थित किये हुए प्रश्नका उत्तर पा लेना सुगम है अर्थात् वैशालीमें गणराज्यको स्थापना क्या चेटक की मृत्यु के बाद हुई थी ? उपर्युक्त त्रिवेन में कई एक उल्लेख म बुद्ध के जीवनकाल के और कितने ही भगवान महावीर के प्रारंभिक जीवन से लेकर निर्वाण तकके हैं । इस
१. विपाकसूत्र में 'दुइपलादा उज्जान' लिखा है और कल्पसूत्र ( ११५ ) व भावारांगसूत्र ( २, १५-२२ ) मे ज्ञातृक क्षत्रियक अधिकार स्पष्ट है।
शालीमें मानना ठीक है। अतः मुनिजीका यह कथन भी प्रामाणिक नहीं माना जा सकता ।
इसी सिलसिले में मुनिजी कहते हैं कि "इस कथन में कुछ भी प्रमाण नहीं है कि चेटक 'लिच्छिवि' वंशका पुरुष था। मुझे ठीक स्मरण तो नहीं है पर जहाँ तक खयाल है, श्वेताम्बर सम्प्रदाय के पुराने साहित्य में चेटकका “हैहय” अथवा इससे मिलता जुलता कोई वंश बताया गया है।" बेशक यह ठीक है कि जैन शास्त्रों में स्पष्टतः चेटकको लिच्छिवि-वंश या कुलका नहीं लिखा गया है; किन्तु जब वह वैशालीके गणराजा रूपमें राजा सिद्ध होते हैं, तब उन्हें लिच्छिवि वंशका मानना बेज नहीं है । दिगम्बर जैन शास्त्रों में हमारे देखने में उनके वंशका कोई उल्लेख नहीं आया है। यदि श्वेताम्बर ग्रन्थ उन्हें 'हैहय' वंशका प्रकट करते हैं, तो उसमें यह आपत्ति है कि 'हैहय' क्षत्रिय चद्रवंशी हैं। और वैशाली के लिच्छिवि क्षत्रिय सूर्यवंशी वाशिष्ठगांत्री हैं जिनमेंसे चेटकको अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनकी बहुन क्षत्रियाणी त्रिशलाका लिच्छिविरमणी वाशिष्टगोत्री प्रकट किया गया है; जैसा कि डॉ० जैकोबी के पूर्व उद्धरणम स्पष्ट है, और वैशाली में लिच्छिवि गण-राज्यका अधिकार था ।
आगे मुनिजी लिच्छिवि क्षत्रियोंकी वंश रूपमें लिखने पर आपत्ति करते हैं; किन्तु वंशका प्रयोग हमने कुल रूपमें किया है और लिच्छिवि एक कुल (Clan) था, यह मानना ठीक है; क्योंकि वज्जियन संघ के 'अट्ठ
१. भारतके प्राचीन राजवन्श, भाग ११०३७ ।
२. पूर्व पुस्तक, भा०२, १०३७७ व क्षत्री लेन्स इन बुद्धिस्ट इन्डिया १० १४ ।