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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ११, १२ “वैशाल्यामरपकनिकुटम्बिना ।" हैं। अतः वृजि और विदेह देश एक अर्थकेही वाचक अर्थात्-'वैशालीमें के कुटुम्बियोंकी मुद्रा ।' अतः हैं। अस्तु । इससे वैशालीका अस्तित्व निस्सन्देह ईसाकी पाँचवीं इस वृजि या विदेह देशके ही राजा चेटक थे। शताब्दि तक प्रमाणित होता है और इस दशामें मुनि- यह राजा चेटक परम्परीण सर्वसत्तासम्पन्न राजा जीका चेटककी मत्य के साथ ही वैशालीका नाश हा नहीं थे, बल्कि वज्जियन गणराज्य के गणपति या राष्ट्रबताना गलत साबित होता है ।
पति थे । क्योंकि किसी भी जैनशास्त्रमें इन्हें स्पष्टतः ___ अब गणगज्यकी स्थापनाको लीजिये , मुनिजी मगध सम्राटकी तरह सर्वसत्तासम्पन्न अधिनायक वैशालीमें गणराज्यको स्थापित हुआ चेटककी मृत्यु के प्रकट नहीं किया गया है की इनके साथमें जो 'राजा' बहुत दिनो बाद बताते हैं ; किन्तु जैन और बौद्ध सा. शब्द प्रयुक्त हुआ है, वह एक उपाधिमात्र है। ऐसा हित्यसं यह बाधित है। इसके पहले कि हम इस विषय कौटिल्य के अर्थशास्त्रसं स्पष्ट है । और कल्पसूत्रसे में कुछ लिखें, यह बता देना जरूरी है कि विदेह' यद्यपि यह प्रकट है कि नौ लिच्छवि गणराजाओंमें
और 'वृजि' नाम उस समय एक ही देशके लिये लाग ये प्रमुख थे. तथापि बौद्ध साहित्यसे यह बिल्कुल थे । बौद्ध साहित्यमें वैशालीको वृजिदेशकी राजधानी स्पष्ट है कि जि देश पर गण या संघ-प्रकारकी सरकहा गया है और जैन माहित्यम उसीको विदहदेशकी कार थी । 'मज्झिमनिकाय' में यह बात स्पष्टतः कही राजधानी बताया है । किन्तु यह बात भी नहीं है कि गई है ३ । 'ललितविस्तार' में म० बुद्ध के समयकी बौद्ध साहित्य में वृजि देशके स्थान पर विदहका प्रयोग वैशाली के वर्णनमं कहा गया है कि 'वहाँ आयु व नहुश्रा हो और श्वेताम्बरोंने विदेह । साथ साथ उस सामाजिक स्थितिके अनुसार प्रतिष्ठा नहीं थी । प्रत्येक का प्रयोग न किया हो । बौद्ध अजातशत्र की माताको अपने को 'गजा' कहता था । 'महावस्तु' में वहाँ चौवैदेही बताकर वैशालीका विदेहंदशमें स्थित प्रकट भा० १ पृ०२५६) तथा बसालिए' (सूत्रकृताङ्ग १, २, ३, २०) करते हैं और श्वेताम्बर 'बजी-विदेह पत्त' पदका प्र. प्रकट काक ताम्बर साहित्य उक्त एकताका समर्थन करता है क्योंकि योग करके उनकी ममान वाचकताको घोषित करते बौद्ध एवं चीनी साहित्यम वैशा नीका अनि दशमें होना प्रमाणितहै ।
(सम नत्री केन्म इन बुद्धिरट इन्डिया, पृ० ३७.-५६ ।) युद्ध में चटक की मृत्यु होने पर "उसकी राजधानी वैशाली . उत्तर पुराणमें इन्हें 'महाराजा' तो लिखा है, जैसा कि का नाश कुमा' इस वाक्यमें नाश' का अर्थ राजधानीके तबाह या अगले एक में फुटनाटमें प्रकट किया गया है; मालूम नहीं 'महाक्वांद होने का न लेकर वैशाली नगर की सत्ता काही टि जाना गजानो का भी वे सत्तासम्पन्न और अधिनायक थे या कि न. : महा करना और फिर उसका बडन करने बैठना कोई विलना ही
-मम्पादक ममझ का परिणाम जान पड़ता है।
-सम्पादक । “लिच्छविक-जिक-मल्लक-मद्रक-कुकुर-कुरु-पा. मयुत्तनिकाय भा०२,०२८।
चालादयो राजशब्दोपजीविनः संघाः।" ७. भगवती सूत्र ७. ब्रजी श्री विदेह एक ही जाति का २. कल्पमत्र १२८S B E., Vol. XXII. बांतक था. यही कारगा प्रतीत होता है कि टकामें 'वजी शम्मका p.266 note L. मर्थ इन्द्र' किया गया है । वैसे भी श्रीमहावीर म्बानी को एक ३. P T. S. Vol. I, p. 231 'विवेह' या 'विदहके एक गजपुत्र' (कल्पसूत्र ११०-जनसत्र ४. लेफोन, ललितविस्तार, भा०११०२१ ।