Book Title: Anekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 614
________________ आश्विन, कार्तिक, वीरनि०सं०२४५६] विशेष नोट अथवा मर्यादा भी मालूम नहीं होती-कहाँ तक वि- होने मात्रसे ही लेखकके कथनको शब्दछल नहीं ठहश्वसनीय हो सकते हैं, इसकी कल्पना पाठक-स्वयं ही राया गया था; बल्कि लेखकने हरिवंशपराणमें वर्णित कर सकते हैं । अस्तु । __ कोई ११ लाख वर्ष पुरानी कथा अन्तर्गत 'ऐलेय' इस तर्ज अमलके द्वाग साम्प्रदायिकताके जिस गजा के नामोल्लेख को लेकर और इधर शिलालेखमें कलंकको पोंछनकी लेखमें चेष्टा की गई है वह उलटा गिन' पदका प्रयोग देवकर जो बिना किसी विशेष कुछ और भी गहरा हो गया है । अच्छा हो यदि लं- आधार-प्रमाणके वारवेलकं वंशकी कल्पना कर डाली खक महाशय भविष्यमें अपनी इस प्रवृत्तिके सुधार की है और उमं उक्त ऐलय' का वंशज बतला दिया है ओर विशेष ध्यान देवें और अपनी लेखनीको अधिक उम कल्पनाका महज़ शब्दछलको लिय हुप निर्मल संयत, मावधान तथा गौरवपूर्ण बनाएँ। बतलाया गया था । और जिन कारणोंके आधार पर इस लेख में यद्यपि बहुतसी बातें आपत्तिके योग्य ऐसा प्रतिपादन किया गया था उनका बलामा दम हैं, फिर भी कुछ थोड़ी-सी बातों पर ही यहाँ नोट दिये प्रकार है - गये हैं और वे भी प्रायः इस लिये कि जिससे पाठकों १ 'ऐलय' गजा मुनिसुव्रत भगवानका प्रपौत्र या पर इस उत्तर-लेखकी स्थिति स्पष्ट हो जाय और इम और इसलिय हरिवंशी था (बुद हरिवंशपरागणम रमे संबंधमें कोई खास ग़लत फहमी फैलने न पाए । अतः 'हरिवंशतिलक' लिम्या है )। जिन आपत्ति योग्य बातों पर नोट नहीं दिये गये हैं- २ एलेय'की वंशपरम्पगमें जितने भी गजामांका मात्र इस विशेष नोट-द्वारा इशारा किया गया है-उन उल्लेख मिलता है उन सबको 'हरिवंशी' लिखा हैके विषयमें किसीको यह समझनकी भूल न करनी गरेलवंशी' या 'ऐलंयवंशी' किसीको भी नहीं लिया। चाहिये कि वे सम्पादकको मान्य हैं । बाकी सब बातो ३ हरिवंशपगणमें ही नहीं, किन्तु दुसरं शास्त्राम के विशेष उत्तरकं लिये मुनि श्री कल्याणविजयजी का भी एल' नामके किमी म्वतन्त्र वंशका कोई उल्लेग्य स्थान सुरक्षित है ही, जिनके उत्तर-लग्बको लक्ष्य करके नहीं मिलता। ही यह प्रत्युत्तर-लख प्रधानतया लिखा गया है। लेखककी इस कल्पनाका और काम भी कोई हाँ, इस लेखका अन्तिम भाग मर स्वास नांटम ममर्थन नहीं होता। सम्बंध रखता है, मुनिजीन भी उमको स्वीकार किया जब तक प्राचीन साहित्य परम स्पष्टरूपमें यह था। बाकी उन्होंने भाषाविज्ञानको दृष्टिस, 'एल'का 'ऐ' सिद्ध न कर दिया जाय कि 'एल' वंश भी कोई वंशन हो सकन आदि रूपसे जो कुछ विशेष कथन किया विशेष था और गजा म्याग्वेल उमी वंशमं हुआ है था उसका कोई उत्तर लेखकन दिया ही नहीं । अनः नब तक इस कल्पनाका कुछ भी मुम्य मालम नहीं लेखके इस अंश पर मेरे लिग्वन और प्रकाश डालनकी होना। खास जरूरत जान पड़ती है। ६ खारवेल यदि पलेयकी वंशपरम्पगमें होने वाला ___ सबसे पहले मैं अपने पाठकों को यह बतला देना हरिवंशी होताना बह अपने को पलवंशी' काने की चाहता हूँ कि हरिवंशपुराणमें ऐलवंश' का उल्लेख न अपेक्षा 'हरिवंशी' कहने में ही अधिक गौरव मानता,

Loading...

Page Navigation
1 ... 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660