Book Title: Anekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 619
________________ ६३८ अनेकान्त '. या है । तब लेखकका शिलालेख के आधार पर खारवेलको निश्चितरूपसे 'ऐलवंशज' प्रकट करना और गर्व के साथ दृढतापूर्वक यह कहना कि "खारवेल अ पनेको चेदिवंशका लिखते ही हैं" एक अति साइसके सिवाय और कुछ मालूम नहीं होता, जो कि ऐतिहासिक क्षेत्रमें काम करने वालोंको शोभा नहीं देता। उन्हें खूब समझ लेना चाहिये कि यदि 'चेतिराज' पाठ ही ठीक हो और उसका अर्थ भी 'चेदिराज' ही मान लिया जाय तो भी इस उल्लेख का सम्बंध ऐलेय के वंशज उस राजा 'अभिचन्द्र के' साथ नहीं जोड़ा जा सकता जिसका न तो 'चेदिराज' नाम ही था और न जिसके 'द्वारा 'चेदि' नामके किसी स्वतंत्र वंशकी स्थापना ही गई है, जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है; तब 'चेतिगज' चेतराज की जगह खारवेल के पितादिकका ही नाम हो सकता है । इस प्रकार यह लेखक महाशय के युक्तिवादका विवे 'न और स्पष्टीकरण है। इसी के आधार पर आप यह कहने बैठे हैं कि "खारवेलको राजा ऐलेय से सम्बन्धित बताना कोरा शब्दखल नहीं है बल्कि यथार्थ बात है" और इसीके आधार पर आप बड़े दर्पके साथ यहाँ तक कहने के लिये उतारू हो गये हैं कि - "इस विषय में किसी भी विद्वानकी आपत्ति करना कुछ महत्व नहीं रखता।" सहृदय पाठक ऊपर के संपूर्ण विवेचन तथा स्पष्टीकरण परसे भले प्रकार समझ सकते हैं कि यह सब लेम्बक महाशय का कितना अधिक प्रलाप है [वर्ष १, किरण ११, १२ ^^ और वह कितने निःसार कथन तथा थोथे अहंकारको लिये हुए है। इस प्रकारका लिखना लेखक के साम्प्रदाकि अभिनिवेशको पुकार पुकार कर प्रकट करता है । अन्तमें मैं अपने पाठकों पर इतना और भी प्रकट कर देना उचित समझता हूँ कि मुझेथेरावली-विषयक कथनका कोई पक्ष नहीं है। यदि उक्त थेरावली मेरे सामने आए और मुझे वह भले प्रकार जाली प्रतीत हो जाय तो मैं यथाशक्ति उसकी अच्छी कलई खोले विना और उसका पूरा भण्डाफोड़ कियेविना न रहूँ । परन्तु यह मुझसे नहीं हो सकता कि विना देखे-भाले ही लेखककी तरह उसे पूर्णतः जाली करार देनेका दुःसाहस कर बैठें। ऐसा काम उन्हींके द्वारा बन सकता है जो साम्प्रदायिक अभिनिवेश के वशीभूत हों। मुझे इस प्रकारकी धींगा धाँगी की विचारपद्धति पसन्द नहीं है और न मेरी अनेकान्त-नीति मुझे इस बातकी इजाजत देती है कि मैं किसी सम्प्रदायविशेषका अनुचित पक्ष लूँ । मैं तो अपनी मतिको वहाँ तक स्थिर करता हूँ जहाँ तक युक्ति पहुँचती हैं, मतिके स्थान पर युक्तिको यों ही खींच-खाँच कर अथवा तोड़ मरोड़ कर लाना नहीं चाहता | मेरी इस प्रवृत्तिसे भले ही कोई महाशय रुष्ट हों या अन्य प्रकारसे किसी की तर फ़दारी वगैरहका मुझ पर कोई आरोप लगाने के लिये उतारू हो जायँ, सत्यके सामने मुझे उसकी जरा भी चिन्ता नहीं है । -सम्पादक

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