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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ११, १२ वना है । तब अब थोड़ेमें देखिये और वह भी जैन रचकर जैनशास्त्रमें विकास करना ? अथवा इन विसमाजको लेकर विचार कीजिये कि उसके सामने चारोंको स्वीकार करनेकी अपेक्षा जैनसमाजके अस्तिआज कौन कौन राजकीय, सामाजिक और त्वका नाश क्रीमती गिनना ? आध्यात्मिक समस्याएँ खड़ी हुई है और उनका हल ३ मोक्षके पन्थ पर पड़ी हुई गुरुसंस्था सम्यक् (समाधान)शक्य है कि नहीं? और शक्य हो तो किस प्रकार गम अर्थात् मार्गदर्शक होनेके बदले यदि अनप्रकार शक्य है ?
गामियोंको गुरु-बोझ-रूप होती हो, और यह गुरु१ मात्र कुलपरम्परास कहे जाने वाले जैनके संस्था सुभमचक्रवर्तीकी पालकीके साथ उसको उठाने लिये नहीं किन्तु जिसमें जैनपना गणसं थोड़ा बहुत वाले श्रावकरूप देवोंको भी डबानेकी दशाको पहुँच गई
आया हो उसके लिये सीधा प्रश्न यह है कि वह मनुष्य हो तो क्या इन देवोंको पालकी फेंककर खिसक जाना राष्ट्रीय क्षेत्र और गजकीय प्रकरणमें भाग ले या नहीं या पालकीके साथ डब जाना अथवा पालकी और
और ले तो किस गतिसे ले ? क्योंकि उस मनुष्यको अपनेको तार ऐसा कोई मार्ग शोधकर ग्रहण करना? फिर राष्ट्र क्या ? और गजकीय प्रकरण क्या ? राष्ट्र यदि ऐमा मार्ग सझे ही नहीं तो क्या करना ? और
और राजप्रकरण तो म्वार्थ तथा संकुचित भावनाका सझे तो वह प्राचीन जैन शास्त्रमें है कि नहीं अथवा फल है और सच्चा जैनत्व इसके पारकी वस्तु है। अर्थात् आज तक किसीके द्वारा वह अवलम्बित हुआ है कि जो गुणसे जैन हो वह राष्ट्रीय कार्य और राजकीय नहीं ? यह देग्वना ।
आन्दोलनमें पड़े या नहीं? यह इस समयके जैनसमा- ४ धंधा सम्बंधी प्रश्न यह होता है कि कौन कौन जका पेचीदा मवाल है-गढ़ प्रश्न है। धंध जैनत्व के साथ ठीक सम्बंध रखते हैं और कौन • २ विवाहप्रथासे सम्बन्ध रखने वाली रूढियों, कौन जैनत्वके घातक बनते हैं ? क्या खेनीवाड़ी, जातपातसे सम्बन्ध रखने वाली प्रथाश्री और धंधे- लुहारी, सुतारी (बढईगिरी) और चमड़े सम्बंधी काम, उद्योगके पीछे रही हुई मान्यताओं तथास्त्री-पापजाति अनाजका व्यापार, जहाजगनी, सिपाहीगिरी साँचेका के बीच के सम्बन्धी विषयमें आज कल जो विचार काम वगैरह जैनत्व के बाधक हैं ? और जवाहिरात, बलपूर्वक उदयको प्राप्त हो रहे हैं और चारों तरफ घर कपड़ा, दलाली, सट्टा, मिलमालिकी,व्याजबट्टा आदि कर रहे हैं उनको जैन शास्त्रमें श्राश्रय है कि नहीं, धंधे जैनत्व के बाधक नहीं या कम बाधक हैं ? अथवा सच्चे जैनत्वके साथ उन नये विचारोका मेल है ऊपर दिये हुए चार प्रश्न तो ऐसे अनेक प्रश्नोंकी कि नहीं या प्राचीन विचारोंके साथ ही सच्चे जैनत्वका वानगी (नमूना) मात्र हैं। इससे इन प्रश्नोंका जो सम्बन्ध है ? यदि नये विचाराको शास्त्रका आश्रय न उत्तर यहाँ विचार किया जाता है वह यदि तर्क और हो और उन विचारोंके विना जीना समाजके लिये विचारशुद्ध हो तो दूसरे प्रश्नोंको भी सुगमतासे लाग अशक्य दिखलाई देता हो तो अब क्या करना ? क्या हो सकेगा । ऐसे प्रश्न खड़े होते हैं वे कुछ भाज ही इन विचारोंको प्राचीन शास्त्र रूपी बुढी गायके स्तनों होते हैं ऐसा कोई न समझे । कमती बढती प्रमाणमें मेंसे जैसे तैसे दुहना ? या इन विचारोंका नया शास्त्र और एक अथवा दूसरो रीतिमे ऐसे प्रश्न खड़े हुए