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पाश्विन,कार्तिक,वीरनिःसं०२४५६] खारवेल और हि० थेरावली राज्य हो गया। इन कारणोंसे पिछले समय में चेटक और xiकिन्तु उक्त अंतिम घटनाबाद भीवैशालीका अस्तित्वक उसके वंशकी अधिक प्रसिद्धि न रहनेसे उसकी चर्चा बड़े अच्छे ढंग पर मिलता है। मबद्ध के बाद वैश लीका प्रन्थों में न मिलती हो तो इससे सशंक होने की क्या भिक्षुसंघ बहु प्रसिद्ध हुआ था। प्रानन्दने गंगाके मध्य जरूरत है ?" जरूरत इसलिये है कि आपका उक्त जिस एक टापूको बसाया था, उसका. आधा भाग तब वक्तव्य किसी भी प्रमाणाधार पर अवलम्बित नहीं है। के अर्थात् बुद्ध निर्वाणसे लगभग सौ वर्ष बादके वैशा
आपने अपने वक्तव्यकी पुष्टि में एक भी प्रमाण उप- लीके लिच्छवियों को मिला था। लगभग इसी समय स्थित नहीं किया है। इमलिये जब तक आप अपने वैशालीमें ही बौद्ध संघकी दूमरी सभा भी हुई थी। वक्तव्यको पुष्ट प्रमाणों से समुचित सिद्ध न करदें तय प्राचीन बौद्ध साहित्यका यह कथन अमान्य नहीं ठहतक वह विचार करने की कोटिमें ही नहीं आता *। राया जा सकता; जब कि हम इसके कई शताब्दियों ___ मुनिजी जिम समय इस विषय पर सप्रमाण बाद तक वैशालीका अस्तित्व पाते हैं। चीनी यात्री लिखेंगे, उस समय विचार किया ही जायगा । किन्तु काहियान और युनत्सागन में
न फाहियान और पनत्सांगने भी वैशालीके दर्शन किये अब भी मुनिजी के उक्त वक्तव्य के श्रौचित्य को देख थे । यह यात्री क्रमशः ईमाकी पाँचवीं और मातवीं लेना अनुचित नहीं है । यह बान ठीक है कि चेटककी शताब्दिमें भारत आये थे । इसके अतिरिक्त बमाद युद्ध-निमित्तक मृत्यु हुई; किन्तु इसके साथ ही वैशाली प्रामस खांदनं पर ईसाकी पाँचवीं शताब्दिका जो का नाश हुआ बताना बिल्कुल मिथ्या है ! क्योंकि यह पुगतत्व मिला है, उममें कई मुद्राएँ ऐसी हैं जिन पर मानी हुई बात है कि भगवान महावीरका निर्वाण निम्न लंग्व लिखा हुआ है। :और महात्मा बुद्धकी मृत्यु होनेके बाद प्रजातशत्रुने x जायसवाल नीका एमा लिखना जिस, लेखक प्रमाणित करना वैशाली को विजय किया था। ये घटनाएँ क्रमशः ई. बतलाते हैं, क्या क ई ब्रह्म वाक्य है और मुनिजी ने उसे मान्य किया पू० ५४५, ई० पू० ५४४ और ई०पू०५४० की है, ऐमा
है ! यदि एसा न, तो फिर इस बात को मानी हुई बात" केसे कहा
जा सकता है विवाद में 'मानी दुई बात' वह होती है जिसे पानी मौर मि० काशीप्रसादजी जायसवालने प्रमाणिन किया है
प्रतिवादीदानां स्वीकार करत। मुनिमीको इन घटनामोंका उक्तसमम
मान्य नहीं है। और अब तो जायसवाल नी भी प्रचलित वीर नि* मुनिती ने एक संभावना उपस्थित की थी-और यह भी सक्त को अपने पत्नादिकोंमें लिखने लगे हैं. जिसमे ऐसा जान नहीं कि वह यों ही निराधार कोरी कन्पना ही हो-उनकी उस पड़ता है कि इन घटनामंकि समयसम्बधमें उनका पूर्व विचार मय संभवना को भसंभव सिद्ध न करके इस प्रकार का उत्तर देना कुछ स्थिर नही रहा है। लेखक महाशय भले ही उन्हें प्रमाण पर समुचित प्रतीत न होता। कोई संभावव रूप कथन विकारका टिम करते हैं। माही न सकता, यह तो लेखकका विलक्षण तर्क जान पड़ता इन्डियन विदागकल कास्टी , भा. .. । है। यदि कोई बात पुष्ट प्रमाणोंसे सिद्ध हो तो फिर वह संभावना ही 3. भारतके प्राचीन राजश, भा०, पृ. । क्यों कहलाए ? इसपर लेखक महाशयने कुछ भी ध्यान नहीं दिया ।' लेगी फाहियान पृ० ७० और वाटर्म व्यन्न्मांग मा.
-सम्पादक पृ०६३। १. जनरल मंफ़ दी बिहार एयर मांडीसा-रिसर्व-सोसाइटी. ५.मार्क. संवाफ इन्डिया, वार्षिक रिपोर्ट, प..-.. भा० १पृष्ट ११५-११
पृष्११.