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पाश्विन, कार्तिक, वीरनि०सं०२४५६] खारवेल और हिमवन्त-थरावली
राजा खारवेल और हिमवन्त-थेरावली
[लेखक-श्री बाब कामताप्रसादजी, सम्पादक 'वीर' ।
नेकान्त'की पाँचवीं किरणमें प्रकट हुए हमारं उप- क्रिया होती है, यह प्रकट किया, कंवल इम मान्यताको
युक्त विषयक लेखका उत्तर श्रीमुनि कल्याणविजय पुष्टि देने के लिये । उक्त मुनिजी भले ही तमारं पक्ति जीन अनेकान्त'की ६-७ संयुक्त किरणमें देने की कृपा की लेखको साम्प्रदायिक कीचड़ उछालना मममें और है। इसके लिये हम उनके आभारी हैं; किन्तु उन्होंने अपने भले ही उमं एक अनिसाहसी और बे-सिर-पैरका लेख्य पूर्व-लेखसे हमें आघात पहुँचा बताया है,वह गलत है। करार दें किन्तु 'अनकान्त' में प्रकट हुए इस विषयक हम साम्प्रदायिकता पक्षपाती नहीं हैं किन्तु तो भी अन्य लेखांको और अपने प्रमाणोंको दण्वत हुए हम जो सिद्धांत हम ठीक और उचित जॅबता है, उसका अपन लेखको समुचित और ठीक माननको बाध्य हैं । समर्थन और प्रष्टि करना हम अपना कर्तव्य समझत हम ही नहीं; अब तो श्वे. मुनिश्री जिनविजयजी और हैं। हमारी इस मान्यताको काई साम्प्रदायिकता और अजैन विद्वान् श्रीजायसवालजी भी हिमवन्त-थेरावली पक्षपात-मूलक समझे, तो यह एक भारी नासमझी के उल्लिखित वर्णनको जाली, बनावटी, प्रक्षिप्त और होगी। बस, इस सम्बन्धमें इतना कह देना ही पर्याप्त श्राधुनिक घोषित करते हैं। और इसप्रकारकी क्रिया है कि हमें जब जब अवसर मिला है साम्प्रदायिकता विषयमें श्रीजिनविजयजी कहते हैं कि "एसीगतिहमा अनिष्ट प्रभावको मेटनका उद्योग हमने अवश्य किया यहाँ बहुत प्राचीन कालसं चली आ रही है, इससे इस है और इसीका परिणाम है कि हमें कई एक श्वेतांबर में हम कोई आश्चर्य पानकी बात नहीं।" अतः विद्वान विद्वानों और नेताओंकी मित्रता पानका सौभाग्य प्राप्त पाठक स्वयं विचार लें कि हमने जो अपनपूर्वोक्त लेखमें है। इतनं पर भी हमें हिमवन्त-थेरावली'कोजाली कहना ऐसी घोषणा की थी, वह ठीक या बेजा कैसे और कहाँ पड़ा है और श्वेताम्बर वृत्तिको वैसी ( जाल बनाने वाली ?) प्रगट करना पड़ा है, उसका एकमात्र उद्देश्य - अन्य लेख मुनि जिनविजयजीका पत्र और जायसवालजीका सत्य-अनसंधान है-आक्षेपक नियत उसमें कारगर एक छोटा सा नोट है । इन दोनों में से कोई भी प्रकृत विषयका
निगा रक न., किन्तु सूक्कमात्र । जायसवाल ना की मचना नहीं है । जब अनुसन्धानसे हमें यह विश्वाम हो गया कि थेगवलीका वह अंश जो प्रकट हुआ है मिथ्या
भी मुनि नीक कथनाधार पर अवलम्बित है। .. सम्पादक
• महज़ किवी की घोषणामावस विचारकों को काई मतीष सिद्ध होता है, तब हमने उसे जाली घोषित किया
न हो सकता, जब तक कि वे युक्तियां मामने न भाजा पोरन और श्वेताम्बर समाज में ऐसी ( जाल बनानेकी ?) की यथार्थता की जांच न हो जाए, जिनके माधार पपी घोषणा
* भले ही वह कभी कभी बिना हमारी इजाजतके ही लेखनी की गई है। यह दूसरी बात है कि कुछ दम लोग अथवा माम्प्र. से टपकी पड़ती हो, इतना साथमें मार भी कह दिया जाता नो दायिकता के रंगमें गेहए व्यक्ति उसे अपने अनुकूल पासताप अच्छा होता।
-सम्पादक धाग्या कले।