Book Title: Anekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 608
________________ ६२७ आश्विन, कार्तिक, वीरनि०सं०२४५६] खारवेल और हिमवन्त-थरावली कूलक' बेंचमें वह भी सम्मिलित थे । कारण प्रकट हो जाता है और इसमें यह भी स्पष्ट है इसके सिवाय, फिर मुनिजी लिच्छिवि गणको कि चेटकके समयमें वह गणराज्य मौजद था; क्योंकि राजा चेटकके मातहत बताते हैं और कहते हैं कि इस समय तक वह युद्ध नहीं लड़ा गया था जिममें विदेह में तब गणराज्य नहीं था, इसीसे उसका उल्लेख चेटककी मृत्यु हुई थी । बौद्ध साहित्य की यह नहीं हुआ है। उसके नायकों पर चेटक महाराजा की प्राचीन माक्षी य ही नहीं टाली जा मकनी । अस्तु; हैसियतमे हुक्म करता था । किन्तु मुनिजी का यह मुनिजीकी इस विषय की निराधार मान्यना गान्य सब कथन निराधार है '* | उन्होंने अपने कथन की नहीं हा सकती ! पछिमें एक भी प्रमाण पेश नहीं किया है। और ऊपर लिच्छवि वंशके क्षत्रिय उस समय बड़ी प्रतिष्टाकी के विवेचनसे उनका यह कथन बाधित है । यदि चेटक दृष्टि से दवे जाते थे और बड़े बड़े गजा-महाराजा महाराजा की हैसियतसे नौ लिच्छिवियों पर हकमन के साथ विवाहसम्बन्ध करना, गौरवकी बात समझत करता था, तो उन्हें गणराजा कहना ही फ़िजल था- थे। अतः इससे यह नहीं कहा जा सकता कि घटक. उन्हें सामन्त या करद कहना ही इस हालतमें उपयुक्त भी मगध श्रादिकं मत्ताधारी गजाांकी तरह ही एक होता । विदह-वैशालीमें गणराज्य राजा चंटकके गजा था। समयमें ही था, यह मानना बिल्कुल ठीक है। अजान- उपयुक्त विवंचनको दस्वनं हप, चंटकका गाय शत्रु इस गणराज्यसं भयभीत था और उसने म० बद्ध अजातशत्रु-द्वाग हारा जाना,वैशालीक गणराज्य के नाश से इस संघको विजय कर लेनका उपाय पछा था। का द्योतक नहीं हो सकता; बल्कि इस घटना वाद बद्धन कह दिया था कि जब तक उसमें एश्य है, उम भी उसके गणराजा मगधसमाट के अाधान रह कर को कोई जीत नहीं सकता । फलतः कुणिक अजात- अपनी श्रान्तरिक व्यवस्था पूर्ववत ही करने : शत्रन अपने मंत्रीको भेज कर उनमें फटका बीज बश्रा और समाद चंद्रगम मौग्यकं ममयमें वह फिर शाक्तदिया था और फिर कालान्तरमें अवसर पात ही वह शाली हो गये मालम होने हैं; क्योंकि कौटिल्य उनमें उन पर आक्रमण कर बैठा था । अनः इम बौद्ध मैत्री करके मौर्य शक्तिको बढ़ानेका उपदेश दमा है। साक्षीसे वजि यन राजसंवमें फट पड़नका अमली इस हालतमें इस बात के लिए यहाँ स्थान ही प्रान नही है कि चेटकका पत्र वैशालीको छोड़कर सुदूरदेश १. पर्व० पृ.१२१-साहित्याचार्य ५० विश्वनाथ रेट मा कनिकको भाग गया होगा और वहाँ जाकर एक बने भी अपने भारत के प्राचीन गजवंश, (भा० २.१० : ५५' नन्त्र राज्य स्थापित कर मका होगा । अपनी जन्मभाम नामक ग्रथमें लिच्छिविको 'ग' ही लिखा है। और बन्ध-बान्धवा तथा गणराज्यमें अपने स्थानको निराधार हो या साधार, परन्तु उमरपुरागाक व पर्वमन। चेटकको "प्रतिकित्र्यात भूमत" और "महीश" ही नही किन्तु १. नविय केन्म इन नियन्ट इन्दिया, पृ.1.1:। "महाराजा" भी लिखा है । यथा:- "सचेटकमहाराज पूर्व० पृ. १३ । स्नेहात्"(ला. १५)। -सम्पादक ३. पूर्व.पृ. १३-११७-"संघलामो दण्डामित्र२. मंयुननिकाय (P.T.S.) मा०२, पृ० २६७-२६८। लाभानामुनमः ।"

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