Book Title: Anekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 592
________________ पाश्विन,कार्तिक, वीरनिःसं०२४५६] माताके माँसुओंकी नदी ६११ फिर कुछ दिवसोंमें अशान्तिकी आग भयङ्करलगी देशमें जहाँ तहाँ, थहराने सब नर ! म्लेच्छोंने आक्रमण किये एकाइक आकर; हाय ! मरों को भी मागे, यह विधि निर्दयता ।। अन्धकूप-सम भंडारों में मुझको डाली, अथवा घरके कोनों में दी जगह निगली ! पवन न पहुंचे जहाँ, घामका नाम न आवै, दीमकका परिवार गेज ही भोज बनायै ! - रहती थी मैं जहाँ, वहाँ ही आग लगाकर, जला दिया साहित्यकुंज मंग मंजलतर! ग्वाज खोज कर ग्रंथ डबाये गहरे जलमें, जलविहीन अतिदीन मीनमम हुई विकल मैं !! बहुत समय यो ही, यातना दुस्सह महती; जीत जी ही मत्यदशाका अनुभव करती ! - किन्तु न किया विषाद, दणि सम्बके भावी पर; आशा-नौका विना कौन तारे दुम्बमागर ? . (१९) होती है सीमा परन्तु सबकी है. प्यार ! तुमही कहो रहूँ कब नक मैं धीरज धार ! . . जब देखा कि समय पाने पर भी अब कोईसुधि नहिं लेता है, तब धीरज खो कर रोई !! देख दशा वह, दया दयाको भी श्राती था; पापपङ्कसे प्लावित पृथ्वी बहराती थी !तो भी जीती रही, प्राण पापी न सिघारे ! माँगे भी नहिं मिलै मौत दुखियों को प्यारे !! (१४) भूमिगर्भके गुप्त घग रहा सहा जा, दुष्टों की नजरों से छिपकर पड़ा रहा जो; जीर्ण-शीर्ण अति मेगजी साहित्य अधुरा, उसको ही उरसे लगाय, माना सुख पूरा !! - इसके पीछे कई शतक बीत दुखदाई, जीवनरक्षा कठिन हुई, सब शान्ति पलाई ! रही न विद्याकी चर्चा, नहिं रहे विपलमति; फैला चारों ओर घोर अज्ञानतिमिर अति !! (१६) लगे भूलने मुझको, सब ही मेरे प्यारं; सच है 'दुखका कोइ न साथी सुख के सारे' ! "उपकारिनि अपनी जननी यह इसे बचानाहै कर्तव्य हमारा" यह भी मान रहा ना !! सुखकारी विज्ञान सूर्य का उदय हुआ है;. जहाँ तहाँ अज्ञान-तिमिरका विलय हुआ है। मारा देश सचेत हुआ है नींद कोड़के . कार्यक्षेत्रमें उतर पड़ा है चित्त जाबके ।। (२१) शान्तिराज्य की छाया में सब राज़ रहे हैं। सब प्रकार विद्या-सेवामें साज रहे हैं। गन्याका उद्धार उदार कराय रहे हैं, घर-घरमें विस्तार, प्रचार कराय रहे हैं। (२२) मेरी थी जितनी सहयोगिनि और पड़ोसिनवे सब सुखयुन दिखनी हैं,अब बीते दुर्दिन । उनका पुष्ट शरीर प्रोजमय मन भाता है। न्योछावर जग उन पर ही होता जाता है।

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