________________
६१४
अनेकान्त
वर्ष १, किरण ११, १२ पहला निन्हव
एक बार कुम्भकार ढंक पाक (प्रवा) में मिट्टी कुण्डपुर नगरमें भगवान महावीर के भागिय और के बर्तनों को उलट पलट रहा था। पास ही सुदर्शना दामाद जमालि नामक राजपुत्र थे । उसकी स्त्रीका बैठी स्वाध्याय कर रही थी। कुम्भकार ने एक अंगार नाम ज्येष्ठा, सुर्दशना अथवा अनवधांगी था। जमालि सुदर्शनाकी संघाटी पर गिरा दिया । संघाटी का छोर ने पांचसौ पुरुषों के साथ और सुर्दशना ने एक हजार जलने लगा तो वह बोली-"अरे श्रावक ! तुमने स्त्रियों के साथ भगवान के पास दीक्षा ली । जमालि मेरी संघाटी क्यों जलादी ?" मौका पाकर ढक बोला ग्यारह अंग सीख चुके तो उन्होंने भगवान से “आपका सिद्धांत तो यह है कि जो कार्य हो रहा है विहार करने की आज्ञा माँगी । भगवान् ने हाँ, ना, उसे 'हो गया' कहना मिथ्या है । संघाटी अभी जल कुछ न कहा -मौन रह गये। तब वह पांचसौ साधुओं रही है, फिर श्राप 'जलादी' ऐसा क्यों कहती हैं ?" को साथ लेकर चल दिया और पर्यटन करता हुआ कुम्भकार ढंक की इस युक्ति से सुदर्शना का 'श्रावस्ती' पहुँचा। रूखा-सखा आहार करने से उसे मिथ्यात्व दूर हो गया । वह प्रतिबुद्ध होकर जमालिको भीषण बीमारी हो गई । वह बैठा नहीं रह सकता था, प्रतिबोध देने गई, किन्तु जब न माना तो वह और अतः उसने शिष्यों मे बिछौना बिछाने के लिए कहा। जमालि के साथी साधु, उसे अकेला छोड़ भगवान के शिष्य विबौना बिछा ही रहे थे कि जमालि ने पछा- समीप चले गये। अंत में जमालि मर कर किल्विष “बिछौना बिछ गया या नहीं। शिष्योंन अधबिछे बिछौने देव हुआ । 'को विका हुमा कह दिया। वह उठकर आया और जमालि की मुख्य मान्यता यह थी कि कार्य के प्रधषिछा बिछौना देख पाग-बबूला होगया । बोला- एक ही समय में कोई वस्तु नहीं उत्पन्न हो सकती, "मिद्धान्त में किये जारहे कार्य को 'किया हुआ' किन्तु उसके लिए बहुत समय की आवश्यकता है। कहना बताया है, वह एकदम ही मिथ्या है।" बस वह कहता है कि जो कार्य किया जा रहा है उसे किया यही पहले निलव का उत्पाद है और उसका प्रवर्तक हुआ या किया जा चुका, कहना प्रत्यक्ष-विरुद्ध है। जमालि भी निहव कहलाया। वृद्ध साधुओं ने उसे यदि अधूरे काम को पूरा कह दिया जावे तो फिर उस बहुतेरा समझाया, पर जब उसने एक न मानी तो कुछ कार्य की निष्पत्ति के लिए किये जाने वाले व्यापार साधु उसे छोड़ कर भगवान के पास चले गये और वृथा होजावेंगे। मान लीजिए,कुंभकारनं मिट्टी गूंथकर कुछ उसी के पास रह गये।
घड़ा बनाना प्रारम्भ किया । यदि प्रारम्भ करते ही, ___ जमालि की स्त्री सुर्दशना, उस समय श्रावस्ती में एक ही समय में, घट बन गया मान लें, तो फिर चाक ही 'लंक' नामक कुंभकार के घर ठहरी थी । जमालिके घमाना आदि क्रियायें व्यर्थ हो जाती हैं। इसके सिवास्नेह के कारण उसने भी जमालि का मत अंगीकार य, जब कि क्रियाके प्रथम ही समयमें घट बन चुका कर लिया और 'ढंक को भी अंगीकार कराने की तब उसे बनानेका अर्थ हुमा बने हुए घटको बनाना । चेष्टा की । ढंक विद्वान था, वह तारगया कि सुदर्शना यदि बने हुए घट को फिर भी बनाने की मावस्यकता मिध्यास्विनी हो गई है।
है तो जीवन भर में यहाँ तक कि तीन काल में भी