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पारिवन, कार्तिक, वीरनि०सं०२४५६] तत्वार्थसूत्रकं व्याख्याकार और व्याख्याएं विषयमें ही प्रथम यहाँ पर कुछ चर्चा करना उचित मब मूलसूत्रों परस खास अर्थमें फेर नही पाना । इन जान पड़ता है।
तान स्थलोमे स्वर्गकी बारह भौर मोलह मंग्याविषयक ___ भाष्य भोर सर्वार्थसिद्धि पहला (४, १५.). कालका स्वतन्त्र अस्तित्व-नास्तिस्य 'भाध्य' और 'माणमिति
र मानने विषयक दूसरा ( ५. ३८ ) और तीसरा स्थल विषयमें कुछ विचार करने के पहले इन दोनों के मत्र
पुण्य प्रकृतियोंमें हाम्य प्रादि चार प्रकृतियों के होने न पाठोंके विषयमें विचार करना जरूरी है । यर्थार्थमें
होने का (८, २६ ।। एक ही होने हुए भी पीछेसे माम्प्रदायिक भंदक कारण
३ पाठान्तरविषयक फंग-दांनी सत्रपाठोके पार सूत्रपाठ दो हो गये हैं, जिनमें एक श्वेताम्बर्गय और
म्परिक फेर के अतिरिक्त फिर इम प्रत्येक स्त्रपाठमें भी दूसरा दिगम्बर्गय तौर पर प्रसिद्ध है। शंताम्बीय फर पाता है। सर्वामिद्धि मान्य मत्रपाठमें ऐसा फेरे माना जानेवाले सत्रपाठका स्वरूप भाप्य के साथ श्रीक ग्नास नहाह, एकाध स्थल पर माथमिक्षिके कत्तीने बैठता होनेस, उस 'भाप्यमान्य' कह सकते हैं, और जा पाटान्तर नीट किया है। रमको यदि अलग कर दिगंबरीय माना जानेवाले मत्रपाटका स्वरूप सर्वार्थ
दिया जायनो मामान्य तौर पर यही कहा जा सकता मिद्धिके माथ ठीक बैठना होनेस उम 'मर्वार्थीमद्धि- ।
है कि मब ही दिगम्बर्गय टीकाकार मर्वार्थासाठमान्य मान्य' कह सकते हैं। मभी श्वेताम्बर्गय प्राचार्य मत्रपाठमें कुछ भी पाठभेद चित नहीं करने । इसमें भाष्यमान्य मृत्रपाठका ही अनमरण करते हैं, और
एमा कहना चाहिये कि पत्यपादन मार्थसिद्धि पते
समय जोमत्रपाठ प्रान किया तथा सभागबढ़ायापमा सभी दिगम्बर्गय आचार्य सर्वार्थसिद्धिमान्य मत्रपाठ का अनुसरण करने हैं । मृत्रपाठ मम्बंधमें नीचे की
कानिविवाद म्पमं पीठ मभी निगम्बर्गय टीकाकारोन
मान्य रकम्या । जब कि भाग्यमान्य मत्रपाठके विषयमे चार बात यहाँ जानना जरूरी है:५.सत्रमंख्या भाप्यमान्य सूत्रपाठी मंग्या३४४.
एमा नहीं, यह मत्र पाट श्वनाम्बीय नौर पर ए.
होने पर भी उमम कितने ही स्थानों पर भाज्यक वाक्य और सर्वामिद्धिमान्य मत्रपाठकी मंग्या ३५७ है।
मत्राप दाबिल हो जानेका, कितने ही स्थानो पा ५ अथफेर -- मत्रांकी मंग्या और कहीं कहीं शाब्दिक
मूत्रम्पमें माने जाने वाले वाक्यांका भाष्यापमें भी रचनामें फेर होते हुए भी मात्र मूलसत्री परमही अर्थम
गिने जानका, कहीं कहीं अमल एक ही मात्र का महत्वपूर्ण फेरफार दिखाई द ऐम तीन स्थल है, बाकी
भागोम बट जानका और कहीं अमल के दो मत्र मिल * जय भाम्यमान्य मुलपाठ क्विानग्य मार निश्चित है. म. कर वर्तमानमें एक ही सत्र हो मानेका मचन भाष्यका कि इन्हीं पक्ति में भाग लेखक महोदयक कथनम पर है, नब लभ्य दोनो टीकाम सूत्रोंकी पाठान्नविषयक पची सूत्रोंकी इस निक्षित मत्र्याका माधार क्या है, यह कुछ समझमें
परम स्पष्ट होता है। नी भाया । मेर देखने में एक मातास मुत्रपाट माया है जिसमें मुत्रों की संख्या ३४ है मोरइसी म्बमिद काटिप्पण। १८ वखा, का यह प्रति भलसाके संप्ट राजमल जीजात्य के पास है।
दबा, २,१६।२ : १ ।.... -सम्पादक
और न्यादि।