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अनकान्त
धर्म और राजनीतिका सम्बन्ध
[ लेखक - श्री०० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री ]
धर्म और राजनीतिका सम्बन्ध स्थापित करने से पहने राजनीति तथा राज्यकी उत्पत्ति पर थोड़ा विचार कर लेना आवश्यक है । प्राचीन शास्त्रोंके आधार पर प्रत्येक या दो विभागों में विभाजित हैं - एक भोगभूमि और दूसरा कर्मभूमि । इस वर्तमान युगका प्रारम्भ भगम होता है । उस समय मनुष्यों को श्राजी - विका कमानेकी चिन्ता न थी, एक प्रकारके कल्पवृक्ष * होते थे जिनसे भोजन-वस्त्र आभूषण आदि जिस वस्तुको प्राप्त करनेकी हृदयमें आकांक्षा उत्पन्न होती श्री वह यथेष्ट परिमाण में प्राप्त की जा सकती थी, सबकी आर्थिक अवस्था समान थी, किसी मनुष्य को दूसरे मनुष्य कोई वस्तु माँगने या उधार लेने की आवश्यकता ही न पड़ती थी । आधुनिक शब्दों में उस वक्त प्राकृतिक आदर्श साम्यवाद था- न कोई राजा या और न कोई प्रजा, जनता में पाप प्रायः उत्पन्न ही नहीं
* नरंगपत्तभूसणपाणाहारंगपुप्फजोडत | गेहूंगा वरथंगा दीवंगेहि दुमा दमहा || ७८७ ॥ -- त्रिलोकसार ।
वर्ष १, किरण ११, १२
'वाचक दाता सूर्याग, भाजनके दाता पात्रांग, आभूषणा दाता भूषगागि, पीने के योग्य वस्तुभांक दाता पानांग, भोजन के
दाता ब्राहारांग, पुष्पों के दाता पुष्पांग, प्रकाश करने वाले ज्योति रंग, गृहोंके दाता गृहांग, वस्त्रों के दाता बत्रांग, और दीपकों के वाता दीपांग, इस प्रकार कम्पन यस प्रकारके होते हैं।
हुए थे, सब लोग सन्तोषपूर्वक सुखके साथ जीवन
व्यतीत करते थे ।
किन्तु समय के फेरसे वह स्वर्णयुग दर तक स्थिर न रह सका - धीरे धीरे अनेक समस्याएँ उपस्थित होने लगीं । कल्पवृक्ष थोड़ा फल देने लगे, जिसमे मनुष्यों
परस्पर झगड़ा होने लगा । सृष्टि के नियमानुसार इस ह्रासके समय एकके पश्चात् दूसरा ऐसे क्रमसे चौदह नेता उत्पन्न हुए जिन्हें 'कुलकर' या 'मन्' कहते हैं। इनमें से पाँचवें मनुके समय में कल्पवृक्ष सम्बन्धी उक्त समस्या उपस्थित हुई और इस लिये उसने इस पारस्परिक कलहको मिटाने के लिये कल्पवृत्तों की सीमा नियत करदी | छठे कुलकर के समय में जब कल्पवृक्ष बहुत कम फल देने लगे और प्रजा में कल्पवृत्तों की . सीमा के ऊपर भी झगड़ा होने लगा तब उस कुलकरनं प्रत्येक व्यक्तिकी सीमा पर चिन्ह लगा दिये जिस से नियत की हुई सीमा में झगड़ा उपस्थित न होने पाये । इस तरह धीरे धीरे कल्पवृक्ष नष्ट हो गये और मनुष्यों के सामने आजीविकाका प्रश्न उपस्थित हुआ । तब अन्तिम कुलकरने पृथ्वी पर उगने वाली वनस्पतिसे निर्वाह करनेकी शिक्षा दी। इन्हीं अन्तिम कुलकर 'नाभिराय' के पुत्र 'ऋषभदेव' हुए, जिन्होंने मनुष्यों में वर्ण-व्यवस्था स्थापित की, सारी जनताको अनेक पेशों ( वृनियों ) तथा श्रेणियों में विभाजित किया