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अनकाल
वर्ष १, किरण ११, १० प्रवचनसागद्धारकी टीका कनीने हरिभद्रकी नस्वार्थ- " हरिभद्रोदधतायां तंत्रंब अन्य कर्तकायां " टीकाको 'मूलटीका' केस कहा होगा? क्या वे भास्वामि- ऐसा उल्लेख है और दशवें अध्यायक अन्तमें ' इत्याशिष्य सिद्धसनकी तत्वार्थीय भाष्यवृत्तिको अपेक्षा चार्यश्रीहरिभद्रप्रारब्धायां यशोभद्रसरिशिष्यहरिभद्र की वृत्तिका प्राचीन माननं होंगे ? यदि प्राचीन निर्वाहिनायां तत्वाथटीकायां दशमोऽध्यायः न मानत हो तो मृलपदका किसलिये प्रयोग करत ? समाप्तः"ऐमा उल्लाव है । यदि यह उलाव वृत्तिकार इसी रीनिम यदि भाष्यवृत्तिकार हरिभद्र प्रशमति- का अपना ही हो तो इतना निश्चित रूपसे कहा जा टीकाकार हरिभद्र ही हो तो वे प्रवचनमारोद्धार की
सकता है कि किसी हरिभद्र नामक आचार्य प्रथम वृत्ति के रचयितास बहुन ही करीबके समयमें हुए हैं,
. वृत्ति आरम्भ की और उसे दूमरे किसी प्राचार्यन ऐसा मानना चाहिये । अपनेस बिलकुल नजदीक में
पर्ण की । दूमर श्राचार्य यशोभद्र कहे जाते हैं परन्तु होने वाले ह िभद्रका प्रवचनमागद्धार की वृत्तिका कर्ता
नामसचक उल्लेख में ता 'यशोभद्रमरि-शिष्य' ऐसा मृल टीकाकार मान और उममें प्राचीन तत्त्वार्थकी
पद है, इसमें प्रश्न होता है कि क्या अधूर्ग वृत्ति पूर्ण वृतिक कर्ता भास्वामिशिष्य सिद्ध सनका मूल टीका
का करने वाले खुद यशोभद्रसार ही है या यशोभद्रसरिक कार न मान, यह कैम मंभव हा मकना है ? इम म शिष्य हैं ? क्योंकि 'मरि-शिष्य' यह यदि 'कर्मधाग्य' प्रवचनमागद्धार की वृत्तिका रचयिता यदि भ्रान्त न ममाम हो तो यशोभद्र ही पूर्ण करने वाले है ऐसा हो ना ऐमी कल्पना होती है कि तच्याथकी लघवनिक अर्थ निकलता है। और यदि 'तत्परूप' समाम हो तो का हरिभद्र प्रशमनिकी टीकाक काना हरिभद्रस उनका शिष्य वनिका पर्ण करने वाला है ऐसा अर्थ भिन्न ही हाना चाहिये । पीछे भले ही वह याकिनीसनु निकलता है। उनका शिष्य हो तो वह कौन ? यह हरिभद्रसे भी भिन्न हो ।
विचारनः बाकी ही रह जाता है, और जो व स्वयं वत्ति देवगुप्त और यशोभद्र
पर्ण करने वाले हों तो वे किसके शिष्य थे ? यह वगम द्वारा की हुई भाग्यकी कारिका की
विचारना बाकी रहता है । क्या उनकी वृत्तिका प्रा. व्याख्या मिलती है । उन्होंने भाज्यके ऊपर लिम्बनेक
रम्भक हरिभद्रका ही शिष्य होगा या अन्य किसीका? लिय निर्धारित की हुई व्याम्या लिखी होगी कि नहीं,
यहाँ पर एक बान नोट करने योग्य है और वह यह यह अज्ञान है, । उनी दूमरी कृतियाँ नथा ममय
कि याकिनीसन हरिभद्रकी कृति 'पोडशक' के ऊपर सम्बन्धमें किमी प्रकारका परिचय नहीं मिला। उक्त
यशोभद्रनामक मग्नि टीका लिखी है । क्या यही हरिभद्रद्वारा लिखी हुई मादे पाँच अध्यायकी टीका
यशोभद्र प्रस्तुत यशोभद्र होंगे या कोई दूसरे ? भनन्तरका शेष सब भागयशोभद्रने पूर्ण किया ऐसी प्रसिद्धि है, और व: हरिभद्र सरिका रिव्य ही था,
मलयगिरि ऐसा माना जाता है; परंतु ये सब बातें नितान्न परी
____ मलयगिरि की लिखी तस्वार्थभाष्य परकी ब्याक्षणीय हैं। क्योंकि इस विषयमें हरिभद्र की वृत्ति वाली मलयगिरिने तयाटीका लियो श्री एसी मान्यता की लिखित पुस्तकमें आठवें और नवमें अध्यायके अंतमें प्रा नागनिमें अलब्ध होने वाले निम्न उल्लेख तथा इसी प्रकारक