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परिशिष्ट
अनकान्त
वर्ष १, किरण ६, ५ प्रसिद्ध तवार्थशास्त्र की रचना कुन्दकुन्दके
शिष्य उमास्वातिने की है इस मान्यताके लिये दसवीं मैंने पं० नाथरामजी प्रेमी तथा पं० जुगलकिशोर सदीसे प्राचीन क्या क्या सबत या उल्लेख हैं और वे जी मुख्तारस उमास्वाति तथा तत्त्वार्थसे सम्बन्ध रखन कौन से ? क्या दिगम्बरीय साहित्यमें दसवीं सदीम वाली बातोंके विषयमें कुछ प्रश्न पछे थे, उनका जा पराना कोई ऐसा उल्लेख है जिसमें कुन्दकुन्दके शिष्य ।
उत्तर उनकी तरफ़मे मुझे मिला है उसका मुख्य भाग उमास्वातिके द्वारा तत्त्वार्थसत्रकी रचना किये जाने का - उन्हीं की भाषामें अपने प्रश्नोंके साथ ही नीचे दिया सचन हो या कथन हो? जाता है । ये दोनों महाशय ऐतिहासिक दृष्टि रखते हैं "नवार्थपत्रकारं गद्धपिच्छोपलक्षितम" और वर्तमानक दिगम्बरीय विद्वानोंमें, ऐतिहासिक दृष्टि
इत्यादि पद्म कहाँ का है और कितना पुराना है ? स, इन दोनों की योग्यता उच्च कोटि की है। इससे
७ पूज्यपाद, अकलङ्क, विद्यानन्दि आदि प्राचीन अभ्यासियोंके लिये उनके विचार कामके होनम उन्हें
टीकाकारों ने कहीं भी तत्त्वार्थसूत्रके रचयिता रूपम परिशिष्टकं रूपमें यहाँ देता हूँ। पं० जगलकिशोरजीके
उमास्वाति का उल्लेख किया है ? और नहीं किया है उत्तर परम जिस अंश-विषयमें मुझे कुछ कहना है उम।
नो पीछे यह मान्यता क्यों चल पड़ी ? उनके पत्रके बाद 'मेरी विचारणा' शीर्षकके नीचे यहीं बनला दूंगा:
प्रेमीजीका पत्र प्रश्न
"आपका ताः ६ का कृपापत्र मिला । रमाम्बा : ५ उमाम्वाति कुन्दकुन्द का शिष्य या वंशज है कुन्दकुन्दके वंशज हैं, इस बात पर मुझे ज़रा भा इस भाव का उल्लेख्य सबसे पुराना किस ग्रन्थमें, पट्टा- विश्वास नहीं है। यह वंशकल्पना उस समय की गः वलीमें या शिलालेग्वमें आपके देवनेमें अब तकमें है जब तत्त्वार्थसत्र पर सर्वार्थसिद्धि, श्लोकवार्तिक
आया है ? अथवा यो कहिय कि दसवीं सदीके पर्व- गजवार्तिक आदि टीकाएँ बन चुकी थीं और दिगम्बर वर्ती किस ग्रन्थ, पट्टावली आदिमें उमास्वातिका कुन्द- सम्प्रदाय ने इस ग्रंथ को पर्णतया अपना लिया था। कुन्दके शिष्य होना या वन्शज होना अब तकमें पाया दमवीं शताब्दीक पहले का कोई भी उल्लेख अभी तक गया है।
मुझं इस मंबन्धमें नहीं मिला। मेरा विश्वास है कि २ आपके विचारमें पूज्यपाद का समय क्या है ? दिगम्बर मम्प्रदायमें जो बड़े बड़े विद्वान् ग्रंथकर्ता हु" तत्त्वार्थ का श्वेताम्बरीय भाग्य आपके विचारसे म्वा- हैं, प्रायः वे किमी मठ या गद्दीके पट्टधर नहीं थे। परंत पज्ञ है या नहीं यदि वापस नहीं है तो उस पन में मह- जिन लोगों ने गर्वावली या पट्टावली बनाई हैं उनके त्व की दलीलें क्या हैं।
मस्तक में यह बात भरी हई थी कि जितने भी आचा३ दिगम्बर्गय परम्परामें कोई 'उचनागर' नामक. या ग्रन्थकर्ता होते हैं वे किसी-न-किमी गहीके अधि. शाखा कभी हुई है और वाचकवंरा या वाचकपद कारी होते हैं । इस लिये उन्होंने पूर्ववर्ती सभी विद्वानों धारी कोई मुनिगग्गा प्राचीन कालमें कभी हुआ है और की इसी भ्रमात्मक विचारके अनुसार खतौनी कर डाली हुआ है तो उसका वर्णन या उल्लेख किसमें है ? है और उन्हें पट्टधर बना डाला है । यह तो उन्हें मा
४ मुझे संदेह है कि तत्त्वार्थसूत्रके रचियता उमा- .लम नहीं था कि उमास्वाति और कुन्दकुन्द किस किस स्वाति कुन्दकुन्दक्के शिष्य हों; क्योंकि कोई भी प्राचीन समयमें हुए हैं परंतु चूंकि वे बड़े आचार्य थे और प्रमाण अभी वक मुझे नहीं मिला, जो मिले वे सब प्राचीन थे, इस लिये उनका संबन्ध जोड़ दिया और बारहवीं सदीके बादके हैं । इस लिये उक्त प्रश्न पूछ गुरुशिष्य या शिष्यगुरु बना दिया। यह सोचनेका रहा हूँ, जो सरसरी तौरस ध्यानमें आवे सो लिखना। उन्होंने कष्ट नहीं उठाया कि कुंदकुंद कर्णाटक देशके