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आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, वीरनिव्सं०२४५६] कालक कुमार का प्रमोद जल सख गया और उसके स्थान पर शक- में प्रवेश किया और वहाँ स्वतंत्र राष्ट्र निर्माण किया। सैन्य की मूर्ति- मान दीवार खड़ी हो गई।
कालकाचार्यने आत्मसाक्षी-साहित प्रायश्चित्त ले __ सैन्यसंचालकके रूपमें स्वयं काल काचार्यको स- कर अपनेको विशुद्ध किया और पहले की तरह महाबद्ध हुआ देख कर उज्जयिनी की जनता ने अनुमान व्रतों का पर्णरूपसे परिपालन करते हुए विचरण करने किया कि, यह आक्रमण निष्प्रयोजन अथवा अनायास लगे। ही नहीं हो रहा है किन्तु साध्वी सरस्वतीके अपहरण महाशक्तिशाली प्रभावशील व्यक्तियोंकी श्रेणीमें का यह प्रायश्चित्त है।
कालक सरिका नाम जैनशासनके एक महान ज्योनिरजयिनीमें अपने मामंतों-समेत प्रवेश कर काल- र्धके मपमें अब तक प्रकाशित हो रहा है । काचार्यने गर्दभिल्लको पकड़ लिया । उज्जयिनीको उजाड़ बना देने की एक बार दी हुई धमकी केवल दुर्वन वैरागीका वाग्वैभव नहीं था किन्तु एक ममर्थ पुरुप की प्रतिज्ञा थी, यह गर्दभिल्लको ममझा दियाएक जैन माध शासनको अपमानित होनस बचानके लिए भीपण यद्धका सेनापति भी हो सकता है, इसका
• पक्षणानदष्टि गग दापीका विवेक नहीं होने प्रत्यक्ष अनभ मकग दिया।
दनी । वह मनुष्य को हठपाही बना देना है । उममें वंदी गर्दभिल्ल आज अमहाय था, पापकी क्षमा
. श्रद्धा के न होने हए भी, कपाय वश, किमी बात पर याचना माँग कर जीवनदान प्राप्त करने के अतिरिक्त
न्यर्थ का आग्रह किया जाता है; और आमही मनुष्य उसके लिए कोई अन्य उपाय नहीं था। उसने एक युक्तियों को नाच-ग्याँच कर उम और ले जाने की अपराधीकी भान्ति कालकाचार्यसे क्षमा माँगी और चणा किया करना है जिधर उमकी मति ठहरी हुई मगम्वनीको कारागृहमे मुक्त करनेका वचन दिया।
होती है । विपरीन हमके, 'अपक्षपान' गणदोषों ___ कालकाचार्यको केवल इतना ही इन्छिन था, उन्होंने
के विवको प्रधान महायक है । वह मनुष्यको न्यायी, गर्दभिल्लको तत्काल बन्धनमुक कर दिया। मरम्बनी भी ना
नम्र और गगाप्राहक बनाती है । उमकं कारण मत्पुबन्धनमुक्ता हुई। गर्दभिलने इसके पश्चान भविष्यक रुपी को, पगेना-द्वाग सुनिर्णीत होनेपर, अपनी पर्व लिए किसी मावी अथवा गृहस्थ महिला प्रनि कुष्टि श्रद्धा नथा प्रवृति को बदलनेमें कुछ भी मंकोच नहीं न करने की और राजनीतिक पथ पर शासन करनी होना । वे अपनी बुद्धि को वहाँ तक लेजा कर स्थिर प्रतिज्ञा ली।
करने हैं जहाँ नक युक्ति पहुँचनी है -अर्थान , उनकी श्राचार्यका उद्देश्य पूर्ण हुआ। अब एक पल भर
मनि प्रायः युक्त्यनुगामिनी होती है। शकसैन्यको उज्जयिनी में रहने देना उन्हें अन्याय प्रनीत
- खंडविचार। होने लगा । ममस्त सामंतगण उनके प्राज्ञाकारी शिष्यसमान थे। सामन्तगणोंने वहाँ म हट कर मौगष्ट-प्रदेश * गुजराती 'ग' में अनुवादित ।