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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ८, ५, १०
योगमार्ग [लेखक-श्रीयुत बा० हेमचन्दजी मोदी]
नैनधर्ममें योगविद्याका बड़ा माहात्म्य है, आत्माका योगीश्वराजिनान्सर्वान् ,योगनिर्धत कम्मषान । " सारा उत्कर्ष-साधन और विकास योगको साम- योगैस्विभिरहं वन्दे योगस्कन्धप्रतिष्ठितान् ।। र्य पर अवलम्बित है, योगबलस ही केवल ज्ञानकी
-दशभक्ति। प्राप्ति होती है और """"
. इस युगकी आदियोगबलसे ही अनादि: इस लेखके लेखक समाज के सुप्रसिद्ध साहित्य:
में, जैनधर्मानुसार, या: सेवी विद्वान् पं० नाथूरामजी प्रेमीके सुपुत्र बाब हेम-: कर्म मलको आत्मासे
चंदजी मोदी हैं। आप कई भाषाएँ जानते हैं और एक गविद्याक आदि प्रचादूर करके उसे परम अच्छे होनहार उत्साही नवयुवक हैं । कुछ वर्षसे श्राप : रक और प्रतिष्ठापक निर्मल, शुद्ध तथा मुक्त योगाभ्यास कर रहे हैं और इस विषयका कितना ही : (आदियोगाचार्य) श्रीकिया जा सकता है।
जैन-अजैन साहित्य देख गये हैं । उसीके फलस्वरूप : आदिनाथ भगवान हए
आपने यह योगमाग-शीषक एक विस्तृत लेख 'अन-: हैं, जिन्हें 'ऋषभ' या फिर साधारण रिद्धि
कान्त' को भेजनकी कृपा की है, जिसकी मात्र भूमिका सिद्धियों की तो काई इस समय पाठकोंके सामने उपस्थित है । लेखका शेष
: 'वृषभदेव भी कहते है बात ही नहीं है, वे तो भाग क्रमशः पाठकोंके सामने आएगा । लेख अच्छा सहज ही में प्राप्त हो : उपयोगी और पढ़न तथा मनन करने योग्य है । इमस : ध्वजाके कारण 'वृषजाती हैं। जिन्हें भी इस
: पाठकों को कितनी ही नई नई बातें मालूम होंगी । योग- : ध्वज' भी कहलाते हैं।
का विषय गहस्थी और मुनि सबके लिये समान उप- : बीटाचार्य लाकमें कभी कोई खाम:
: योगी है । ममाजमें इसकी चर्चा चलानको खास जरूरिद्धि-सिद्धियोंकी प्राप्ति : रत है । अतः दूसरे विद्वानोंको भी इसमें यथाशक्ति
अपने ज्ञानार्णव' नामक हुई है वह सब योग- : हाथ बटाना चाहिये ।
योगशास्त्र के शुरू में, मार्गका अवलम्बन ले
-सम्पादक : 'योगिकल्पतरु'रूपस कर ही हुई है। इसीस .....
आपका स्मरण किया हैजैन शास्त्रों में यागियोंकी महिमाका बहुत कुछ कीर्तन भवनाम्भोजमार्तण्ड धर्मामतपयोधरम् । पाया जाता है,योगिभक्ति के संस्कृत प्राकृतमें कई पृथक् योगिकल्पनरु नौमि देवदेवं वृषध्वजम् ।। पाठ भी मिलते हैं। यागियोंमें प्रधान श्रीजिनेंद्रदेव-जैनतीर्थकर-हुए हैं,और इसलिये योगीरूपसे उनका कीर्तन इन्हीं आदिनाथकी कायोत्सर्गरूपसे उत्कृष्ट योगासबसे अधिक पाया जाता है । एक नमूना इस प्रकार है:- रूढअवस्थाका वर्णन करते हुए श्रीपयनन्दि आचार्य
हाङ्कित