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माश्विन, कार्तिक, वीरनि०सं०२४५६] जैन-मंत्रशास्त्र और 'ज्वालिनीमत' हो जाता है, ऐसा अंतके निम्न पद्यद्वारा सूचित किया कनकसहजातपुष्पैर्मलयजनपलोचनामृगमदेव । गया है :
समभागेन गृहीतैस्तिलकं त्रैलोक्यजनवशकृत् ॥७ शाकिन्योऽपस्मारपिशाचभतग्रहाश्च नश्यन्ति । इसमें कनकपुष्प, सहजातपुष्प, मलयगिरिचंदन, निर्विषतां याति विषं तैलस्यामुख्यनस्येन ॥५०॥ नृपलोचना और कस्तरी इन पाचोंको सम भागमें लेकर
छठे वश्ययंत्राधिकारमें अनेक यत्रांक निर्माणको जो तिलक किया जाता है उसे तीन लोक मनुष्योंको विधि उनके मंत्री, चित्रों तथा फन-महित दी हैं, यंत्रों वशमें करने वाला लिम्वा है। के नाम इस प्रकार हैं-१ सर्वरक्षायंत्र, • गहरक्षक- एरण्डकभक्त करसेन दिवसत्रयेण पथककृष्णतिला: पुत्रदायक यंत्र, ३ वश्ययंत्र, ४ मोहनवश्य यंत्र, ५ स्त्री. भाव्याः शुनीपयोनिजमूत्रणानगजयवाणाः ॥५६
आकर्पण यंत्र, ६ सना-जिह्वा-क्रोध-स्तंभन यंत्र. स्तंभन इममें लिया है कि काले तिलोको एरण्डक और यंत्र, ८ जिह्वाम्तंभन यंत्र, ५ गति-जिह्वा-क्रोध-स्तंभन- भक्तकके ग्ममें तथा कुनीके दूध और अपने मूत्रमें यंत्र, १० पापवश्य यंत्र, ११ कगायवश्य यंत्र, १२ शा- पथक तीन दिन तक भावित करें तो वे कामदेवकी किन भयहरण यंत्र, १३, घटयंत्र, १४ मर्वविघ्नहरण विजयके वाण बन जावें। यंत्र, १५ आकर्षणयंत्र, १६ परमदेवगृह यंत्र । अंतम इसी तरह कुछ दवाइयोम बहुनमी गालियाँ बना वश्यहवनका एक नमखा (पधिकल्प ) दकर ४७ कर उन्हें लवण तथा अपने मूत्र के साथ एक अच्छे पद्यांमें इम अधिकारको पृग किया है । नुमन्त्र का वह वर्नन में रख कर भावित करने और फिर पका कर पद्य इम प्रकार है :
नमक तय्यार करनेकी बात लिखी है और उम नमक मधरत्रयेण गग्गल-दशांग-पंचांगधमिश्रण। का“भवनवशकारी" बनलाया है । इस अधिकार जुहुयान महस्र दशकं वशंकगतीन्द्रपपि कथान्यप ।।
पहासंख्या ५५ है। __ इममें बतलाया है कि 'मधात्रय ( मधु, शर्कग, आठवें स्नपनाधिकारमें 'वसुधाराम्नान'का विधान घी ) के माथ गग्गुल और दशांग तथा पंचांग धपका दिया है। इसमें भामको शुद्ध तथा संस्कारित करने, मिलाकर दम हजार बार हवन करनेम इन्द्र भी वशम हा चौकार मंडल यनाने, मंडल के कोनों पर घड़े रखने, जाता है ! भोगेकी तो बात ही क्या ? यह पद्य अगल और ऊपर मंडप नानने तथा उसके मध्य में नवछिद्रका तत्राधिकाग्में दिया जाना चाहिये था, इस अधिकारमें घड़ा लटकाने और घड़ेमें मृत्युंजय यंत्रको लिख कर दिये जानका कोई स्पष्ट कारण मालग नहीं होना। डालने. कर दवाइयों में उद्वर्तन (बटना ) नय्यार
मानवें वश्यतंत्राधिकारमें अनेक प्रकारकं वश्य करके उग मंत्रोमे मन्त्रित करने और जिसके लिए तिलक, अंजन, नमक, नेल, चर्ग, लप तथा अन्य प्र- नय्यार किया गया , उमको मलने पर जो मैल नीचे योगोंके नमन विधि और फल-महिन दिये हैं । एक गिरं उमकी एक मूर्ति बनाने, और फिर मिद्धमत्तिएक विषय के कई कई नमस्त्र भी हैं । दो नमूने इस कास पाठ दिकपालांकी मूर्तियाँ बनाने, उन्हें तथा प्रकार हैं:
मनमूनिका नव पटड़ियों पर बिठलान, उनका पूजन