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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ८, ९, १० ___ हाँ, एक बात इस प्रतिमें सबसे अधिक नोट करने- 'दिगम्बर जैनग्रंथकर्ता और उनके प्रन्थ' नामक की पाई जाती है, और वह यह कि इसमें प्रन्थकर्नाका सूचीमें भी रामसिंह मुनिके नामके साथ इस प्रन्थका नाम 'योगोन्द्रदेव' नहीं दिया किन्तु रामसिंह मुनि उल्लेख है, जब कि योगीन्द्रदेवके साथ नहींदिया है । इसकी पुष्पिका इस प्रकार है:- योगीन्द्रदेवके नामके साथ श्रावकाचारका नाम ज़रूर
"इति श्रीमुनि रामसीह विरचता पाहुडदोहा है। और ग्रंथका साहित्य योगीन्द्रदेवके साहित्यम समाप्तं।"
मिलता जुलता ही नहीं बल्कि परमात्मप्रकाश जैसे यह देखकर मैंने पद्योंमें ग्रन्थकर्ताके नामका अन्वे- योगीन्द्रदेव के प्रसिद्ध ग्रंथोंके कितने ही पद्यों तथा वाषण किया तो मुझे 'योगीन्द्रदेव' नाम कहीं नहीं मिला क्यों को ज्यों का त्यों लिय हुए है। इससे इस ग्रंथक बल्कि दो पद्योंमें 'रामसिंह' मुनिका ही नाम उपलब्ध कर्तृत्व-सम्बंधमें एक बड़ी विकट समस्या उपस्थित हो हुआ है । और वे पद्य इस प्रकार हैं:
गई है । या तो इसमें योगीन्द्रदेवकं पद्य प्रक्षिप्त हैं या मंतु ण तंतु ण धंउ ण धारणु
गमसिंह नामादि वाले कुछ पद्य पीछेसे शामिल हुए णवि उच्छासह किज्जइ कारणु ।
हैं और या कोई दूसरी ही घटना घटी है। रामइ परममुक्खमुणि सुचइ
___आशा है लेखक महोदय इस विषयका विशेष एही गल गल कास ण रुच्चइ ।। २०४॥ अनुसंधान करेंगे और अपनी उस अस्पष्ट प्रतिमें देविंग अणुपंहा वारह वि जिया भाविवि एक्कमणेण । कि ऊपर के ये पद्य भी उसमें पाये जाते हैं या कि रामसीह मुणि इम भणइं सिवपरि पावहिजेण०६ नहीं। दूसरं विद्वानोंको भी चाहिये कि वे अपने यहाँके
इन पद्यों और उक्त पष्पिकामे यह ग्रंथ साह भंडारोमें इस ग्रन्थकी खोज करें और वहाँ की प्रतिकी पर गमसिह मुनिका रचा हुआ जान पड़ता है। विशेतापओस सचित करें। -सम्पादक
महावीर हैं [ लवक-श्री पं० मुन्नालालजी जैन विशारद ] पराधीन-क्षणिक-विभवधारी वे अमीर नहीं,
ज्ञान-विभवधारी ही साँचे अमीर हैं। होकर निःसंग जो निम्रन्थ भये निजानन्द,
वे ही साधु, अन्य नंग मँगता फकीर हैं; घोर कष्ट आए जो न त्यागें कभी न्यायमार्ग,
वे ही धीरवीर अन्य स्वार्थी अधीर हैं; कायबलधारी भारी सभट "मणि" वीर नहीं,
मोह सुभट जीतो जिन वेही महावीर हैं ।