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प्राषाढ, श्रावण, भाद्रपद, वीरनि०सं०२४५६] पाप का बाप
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* पाप का बाप.
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( इमे ज़रूर पढ़िये) क ब्राह्मण विवाह होने के पश्चा- गये और मारी प्रावली बावली ( विद्या-चतुराई) भूल त विद्या पढ़नके लिये काशी गये । आप सोचने लगे कि "पापका बाप" क्या ? गया। वहाँ पर जब उसको मैंने व्याकरण, काव्य, छन्द,अलंकार, ज्या तिप, वैयक, १२, १३ वर्ष बीत गये और और गणित आदिक मब ही विद्याएँ पढ़ीं परन्तु पाप समस्त वेद-वेदांग का पाठी के बापका तो नाम तक भी नहीं सुना, यह कौनमी, बन गया नब गुरु की आज्ञा विद्या है ? इस प्रकार मोचन मोचन अन्तमें आपको लेकर अपने घर वापिम यही कहना पड़ा कि, 'पापका बाप ना मैंन अभी तक
आया । घर पर आकर जब नहीं पढ़ा।' रमने अपनी विद्याका प्रकाश किया और अपने माना- अपने पनिके इम उत्तर का मन कर मीन किंचिन् पिनाम प्रगट किया कि मैं इस प्रकार बंद-वेदांगका जोशमें आकर कहा कि "जब नुमन पाप का बापही पाठी हो गया हूँ, तब माता पिनाक आनन्द का ठिकाना नहीं पढ़ा ना तुमने पढ़ा दी क्या तुम्हारामय विनानही रहा, और नगर निवामियों को भी उसकी विद्या- आम निपगा हाना और बंद-वंदागका पाठी हाना बिना का हाल मालूम करके अत्यन्त हप हुआ-उन्होंने इसके पद मब निष्फन है । इमलिये मयस पहले पाप अपन नगरमें ऐसे विद्वान के होनम अपना और नगर-ना वाप पढिय । नव ही आपका सय विद्याओं को का बड़ा भारी गौरव समझा।
प्राप्त करना शोभा दे सकता है। अन्यथा, केवल भार ब्राह्मण महोदय की धर्मपत्नी एक अच्छ घगनेकी ही भार बहना है।" पढ़ी लिखी कन्या थी और बड़ी ही मुशीला, धर्मात्मा अपनी स्त्रीके इन वाक्योंका मन कर पनिगम इतने 141 उच्च विचागेको धरने वाली थी। गत्रिके ममय लांजन हुए कि उनकी गन काटनी भारी पड़गई। पाप नत्र वह ब्राह्मण अपनी स्त्रीके पास गया और उममं गत भर करवटें बदलने हुप चिन्नामें मग्न रहे और अपने विद्या पढ़नेका साग दाम्तान (हाल) उमे सुनाया अपने हृदयमें आपने पूरे नौग्मे यह ठान ली कि जब और हर प्रकारमे अपनी योग्यता और निपग्णता प्रगट नक पापका बाप नहीं पढ़ लेंगे तब तक घरमें पैर नहीं की तब उस विचारशीला स्त्रीनं नम्रताके साथ अपने रकग, यही अभिप्राय आपने अपनी बीम भी प्रगट पनिदेवसे यह पूछा कि, "मापने पापका बाप भी कर दिया, और प्रातःकाल उठत ही नगरमे निकल पढ़ा है या कि नहीं?"
गये। इस प्रश्नको सुनते ही पतिरामके देवना कूँच कर वीके वचनोंकी पंडितजी पर कुछ ऐमी फिटकारसी
गय