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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ८. ९.२० के लिये उद्यानमें जाया करती थी।
धरूपी विद्युत् चमक उठा । उन्होंने संघके समक्ष प्रइस समय उज्जैनीमें गर्दभिल्ल x नामक राजा तिज्ञा की कि-"गर्दभिल्ल राजाका उसके गन्यमहिन गज्य करता था। वह अत्यंत विषयी-कामी-और उच्छेद न करूँ तो मेरा नाम कालकाचार्य नहीं।" अत्याचारी था । किसी एक ममय उमकी दृष्टि बाल- कालकाचार्य एक त्यागी और संसारसे विमुम्ब ब्रह्मचारिणीसुरूपवती माध्वी मरम्वती' के ऊपर पड़नेमे माध थे । तो भी एक अत्याचारी दुष्ट गजाको उमकं उसकी कामाग्नि प्रदीप हुई। उसने भविष्य का कुछ भी पापका प्रायश्चित्त देना और प्रजा पर होने वाले अन्याविचार न कर अपने संवकों द्वाग उसे उठवा कर अपने चागंको दूर करना, यह इस त्यागी वैगगी माधन अंतःपर में मँगवा लिया । मावी मरम्वती ने अत्यन्त अपना कर्त्तव्य समझा। करुण चीन्ने मार्ग और मदन किया। मरस्वतीकी सह- उपयुक्त प्रतिज्ञा करनेके बाद भी गजाको उम चारिणी माध्धियाँ एकदम कालकाचार्य के पास गई और कर्त्तव्यका भान करनेके लिये एक विशेष माग अंगउन्हें सरस्वतीके मंकटकी वार्ता सुनाई। कालकाचार्यके कार किया । वह यह था कि-वे एक पागल मनप्य नेत्र धिरसे रक्त हो गये । “एक प्रजापालक शामक, की भांनि बकवाद करते हुए ग्राममें भ्रमण करने लगे। जगत का कल्याण करने वाली एक बालब्रह्मचारिणी पाचायकं पागल हो जानका समाचार राजाके काना माध्वी पर ऐमा अत्याचार करें ।" वे एकदम गजाके तक पहुँचा, परन्तु उस निर्दय राजाके हृदयमें इसका पास गये । इन्होंने उमको शान्तचित्तम ममझाया। कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा । अंतमें कालकाचाय को परन्तु -न्होंने एक न मानी। कालकाचार्यने उपाश्रय- अपनी प्रतिज्ञाका पालन करनेके लिये, उन्म देशको में आकर जैन मंघको एकत्रित किया और साग छोड़ना ही पड़ा । उन्होंने एक गीतार्थ साधुको अपने हाल मनाया । मंघ बड़ी भारी भंट लेकर गजाकं पाम गच्छका भार सुपुर्द किया, और स्वयं 'सिन्धु' नदी, पहुँचा और उसने माध्वीको मुक्त करने के लिये प्रार्थना किनारे पर पाश्कुल नामक देशमें गये । जिस देशके . की, लेकिन संघके वचनका भी गजान अनादर मभी गजा 'साखी *' के नामसे प्रसिद्ध थे। किया। यह जान कर कालकाचार्य गंम गंममें क्रो
कृत कथा 'मापी गजामों के तौर पर परिचय काय x विन्सन्ट, एस्मिथ, अपनी Early History of
गया है। और प्राकृत कयामें 'सगकुल' (शककुन) कहा है - Indin नामक पुस्तक के पृ. २५, पर लिखते हैं: .
"अह सगै 'सगकुले' वञ्चइ, "कुशान वंशमें उत्सान ने पाला राजा वासदेव भारतवर्ष
इग माहिणो समीवंमि" ।। ३७ ।। का मन्तिम राजा था । इसकी मृत्युके बाद अन्य कोई शक्तिमानी
इसका मृत्युक बाद भन्य काई शक्तियानी प तु यह बात तो मय है कि इस शककुल के राजामोंको मा न होनम विदगी गजा मारणा करते थे. और विष्णुपराण मानी) राजा कहते थे। के कथनानुसार प्रभीर, गभित्र, शक, यवन, एप वाहिक प्रादि माखी' अथवा 'शाही' यह नाम भारतीय अथवा पाश्चात्य लोग और उनके स्वामी हिन्दुर नानक शासक हुए थे। यह सव ई. इतिहासकाग द्वारा किसी भी स्थान पर दिया हुमा दम्वने में नही सकी तीसरी शताब्दी में हुमा ।"
माता । हां, 'शक'का उलेख व दृष्टिगत होता है । मनुस्मृति __इम कानम ऐसा मालूम होता है कि गई भिन्न राजा भी में कहा है --शक, पौडक, महि, द्रविड़ कम्बोज, यवन, पारद, भारतवर्षीय नहीं था, किन्तु विदेशीय गजा होना चाहिये । पश्च, नीन, किगत, नग्न, बा, ये मन होने वाले सक्रिय थे।