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आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, वीरनि०सं०२४५६] क० साहित्य और जैनकवि
४८१ की चेन्नम्म देवीकी इच्छानुसार सन् १७६१ में रचा साल ( MEnt) आदिका अधिकार पाकर और चि. हुआ बतलाता है।
___ क देवराजकी प्रीतिका पात्र होकर उनसे बेल्गोल में यह ग्रन्थ सांगत्य में है । इसमें १२ अध्याय और 'कल्याणि' को बनवाया था । साथ ही यह बात भी १६७१ पद्य हैं । और पद्मावती यक्षी की कथा लिखी विदित होती है कि अण्णय्यके संबंधी पट्टय्यने पार्श्व
नाथ-मंदिरके पुरोवर्ती मानस्तम्भको तथा चंद्रगिरि पलक्ष्मण पण्डिन (ल. १७७५) र्वतके प्राकार को बनवाया था। कविका कथन है कि इन्होंने अकारादि क्रमसे एक निघंटु लिखा है, 'न्यायकुमुदचंद्रोदय' आदि गूथोंके रचयिता प्रभाचंद्र'जी जिसमें संस्कृत शब्दोंके-प्रधानतया वैद्यक शब्दोंके- यति श्रवणबेल्गोलमें रहते थे और 'अभयचंद्र'जी शशकन्नड पर्याय नाम दिये गये हैं। इनका समय अनमा- कपुरीय ‘सल' के गुरु थे। ग्रन्थावतारमें गोम्मटेश्वरकी नतः १७७५ होना चाहिये।
म्तुति तथा सिद्ध,सरस्वती शीलसागर ऋपि और यति
पंडिताचार्य श्रादि की प्रशंसा है। १० अनन्तकवि (ल. १७८०) इन्होंने बेलगोलके गोम्मटेश्वरका चरित लिखा है।
११ गगन (१७६२)
इन्होंने 'पूज्यपादचरित' लिम्वा है । यह वत्स गोत्र लगभग १६७३ में चेन्नराण के द्वारा निर्मापित मंदिरक वर्णन * से, शक १६०० नल संवत्सरकं फाल्गुण
के थे । अपने वंशके विपय में इन्होंने इस प्रकार लि
खा है:भासमें (१६७७) चिक्क देवराजके मंत्री विशालाक्ष पंडि
गिरपुर में करणिकोत्तम (:uc countant बोम्मण्ण नके द्वारा संपन्न गोम्मटेश्वर के अभिषेक के उल्लंख
नामक ब्राह्मण था। उसके सांताप, हुमबोम्मरम,देवग्स, नथा शक १७०१ दुर्मुखी संवत्सर के फालगण मास में
बोम्मरम नामके चार लड़के थे। कविता-विशारद बोम्म(१७७७) गोम्मटेश्वर स्वामी की संभूत महा' जा के
ग्मका पुत्र विजयप्प, विजयप्पका पुत्र बोम्मरस,बोम्मउल्लेख से, यह कवि उल्लिखिन समयोंम बाद का स्पष्ट
रमका पुत्र विजय, विजयका पत्र देवप्प और देवप्पका होता है । अतः यह लगभग १७८० में रहा होगा।
पत्र आर्यप्प हुआ । यह पायाप तरह वर्ष की अवस्था कविका उक्त ग्रंथ सांगत्यमें है और उसमें गोम्मटे
में ही काव्य-शब्द जिनेन्द्रप्रतिष्ठादि-शास्त्रों का ज्ञाता श्वरका चरित एवं श्रवणबेलगोल और कतिपय जैन
हा। इसका पुत्र विजयप्प तथा बन्धजन देवरम, गाओंसे सम्बंध रखने वाले कुछ उल्लेख है । कविका बोम्मम्म, देवचन्द्र थे । देवचंद्रका पुत्र देवप्प, उसकी कहना है कि गोम्मटेश्वरकी प्रतिठा कलियुगकं ६०० धर्मपत्नी कुसमम्भ और पत्र चंदप्प तथा पद्मगज थे। संवत् में हुई थी और चावुण्डायने पूर्वस्थिन मूर्तिका यही पद्मगज ग्रंथकी हैं। इम ग्रंथम यह भी ज्ञान ही शिल्पियोंके द्वारा सुधरवाया था। इस प्रन्थ में होता है कि ग्रंथरचनामें देवचंद्रभी सहायक थे । यही ज्ञात होता है कि बसबसेट्टि के पुत्र अण्णय्यने टक- देवचंद्र 'राजावलीकथे' के रचयिता हैं। पद्मगज * Mysore Archnological Report 1909, इनके बड़े भाई हैं । यह ग्रंथ शक १७१४ परिधावी Para 106.
मंवत ( १७९२) में रचा गया है । कविने अपने पूर्व में