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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ८, ९, १० पांडित्य श्रीवादिकुमुदचंद्र पंडितदेवके द्वारा रचित रा- है। इनका समय लगभग १८०० होगा। इस गन्थमें मायणके तुल्य प्रतिपादित अभिनव पंपके रामचरित्रमें मन्मथ कोरचि (एक शूद्र जातिविशेष) का वेष धारण अनेक स्थानों पर उपलब्ध संशयोंको निराकरण करने कर अपने मामा की लड़की विदर्भा की कणि-प्रतिपाके लिये जिनसेनाचार्य के शिष्य गुणभद्र स्वामी आदि दित कथा लिखी हुई है। के द्वारा निरूपित त्रिपष्टिलक्षण महापगणकी कथाको १५ चन्द्रसागर वर्णी (ल. १८१८) ही प्रमाण मान कर और उसी के साथ सकल जिन इन्होंने कदंबपराण, चंदनेयकथे, जिनभक्तिमार, शास्त्र-संबंधी कथाओं को जोड़ कर इस कथाप्रपंचका जिनमुनि, परशुरामभारत, पुराणस्तोत्र, बेट्टवर्धनचरित्र, मैंने वर्णन किया है । आश्वासों के अंत में इस प्रकार ब्रह्मशतकोप, भव्यामत, मुल्लाशास्त्र, जिनरामायण, का गद्य मिलता है :
रुद्रयक्षगान, वासुदेवपारिजात, शब्दार्थमंजरी, स्मरको 'परम-जिन-समय-कुमुदिनी शरच्चंद्र-बालचंद्रमुनी- खजि, हिमशीतलनकथे, इन ग्रन्थों की रचना की है। न्द्रचरण-नखकिरण-चंद्रिकाचकोर श्रीमदभिनवपंप- यह सेन गण के हैं । इनके गुरु लक्ष्मीसेन, और विरिचित रामचरित्रपुराण से संबंधित रामकथावतार इनका निवासस्थान तोविनकेरे है । 'कुछ ग्रन्थों को में श्रादि ।'
मैंने श्रवणबेलगोल के उत्तरस्थित धर्माख्यपुर के चंद्रइन दोनों ग्रन्थों के अतिरिक्त और दूसरे ग्रंथ प्रभ स्वामी के अनग्रह से लिखा है' ऐसा कवि का अभी तक प्राप्त नहीं हुए।
कहना है । इनके "जिनमुनि" गन्थ से ज्ञात होता है. १३ ब्रह्मणांक । ल. १८००) कि इन्होंने अपने गृहस्थाश्रम में स्मरकोरवंजि, नागउन्होंने जिनभारत' तथा कंदर्पकोरवंजि नामक कमारपटपदी, ब्रह्मशतकोष, भारत इन चार गन्या गन्थों को लिखा है। इनका पितामह चंद्रनाथ, पिता को और दीक्षा के पश्चात् रुद्रयक्षगान, मुल्लाशास्त्र, चंदण्ण, माता पोंबजे, सहोदर चंद्रनाथ, ब्रह्म और
परशुराम भारत, भव्यामत, चंदनेययक्षगान इन पाँच पन थे। इनके पर्वजोंका निवासस्थान तुंगभद्रा समी- गन्थों को लिखा था। पस्थ हुलिगे और वंश इक्ष्वाकु था। कवि ने तोविन- उल्लिखत कथन से ज्ञात होता है कि परशुराम भाकेरे मंगरस (१५०८) के गंथ के आधार पर 'जिन- रतके अतिरिक्त इन्हीं का बनाया हुया दूसरा भी एक भारत' को भामिनी षट्पदी में लिखा है । इसमें ८४ भारत गन्थ है। परशुरामभारत की रचना १८१० में संधियों और ४६२८ पद्य हैं । इसे पांडव-कौरव-चरित्र और जिनमुनि की रचना १८१४ में हुई है, ऐसा कवि ने भी कहते है । प्रन्थावतार में नेमिजिन, कवि, सिद्ध, स्वयं प्रतिपादन किया है । इनके कुछ गन्थोंका परिचय सरस्वती, ज्वालामालिनी, पद्मावती, और ब्रह्मदेव, इस प्रकार है :
आदि की स्तुति की गई है । इसकविका समय १८०० जिनमुनि - यह वार्धक पट्पदी में है ।इम के लग भग होना चाहिये।
में संधियाँ ५०, पद्य २५५१ हैं । इस गन्थ में महामंड१. अनन्तनाथ (ल. १:००) लेश्वर नागकुमारका चरित्र चित्रित है । कविका कथन इन्होंने ' मन्मथकोरवंजि' नामक यक्षगान लिखा है कि वेणुपुरीय श्रावकों की प्रार्थनानुसार मैंने धर्मपुरी