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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ८, ९, १० जैनदर्शन की तरह न्याय, वैशेषिक, सांख्य३८ है कि मूलतत्वार्थ और उसकी व्याख्याओं ४६ में जो आदि दर्शन भी आत्मबहुत्ववादी ही हैं। जैनदर्शनका काल के लिंगोंका वर्णन है वह वैशेषिक सूत्र की सा पुद्गलवाद वैशेषिक दर्शन के परमाणुवाद४० और शब्दशः मिलता जुलता है । सत् और नित्यकी तत्वार्थसांख्य दर्शन के प्रकृतिवाद१५ के समन्वय का भान गत व्याख्या यदि किसी भी दर्शन के साथ सादृश्य कराता है । क्योंकि इसमें आरंभ और परिणाम उभय
रखती हो तो वह सांख्य और योग दर्शन ही हैं। इनमें
वर्णित परिणामिनित्य का स्वरूप तत्वार्थ के सत् और वाद का स्वरूप आता है। एक तरफ तत्वार्थ में काल
नित्य के स्वरूपके साथ शब्दशः मिलता है । वैशेषिक द्रव्य को मानने वाले मतान्तर४२ का किया हुआ उल्लेख
दर्शन में परमाणुओं में द्रव्यारम्भ की जो योग्यता, और दूसरी तरफ उसके निश्चित रूप से बतलाये हुए
बतलाई गई है वह तत्वार्थ में वर्णित पौद्गलिक बंधलक्षणों ४३ पर से ऐमा मानन के लिये जी ललचाता
द्रव्यारंभ-की योग्यता४८ की अपेक्षा जुदी ही प्रकारकी है कि जैन तत्वज्ञान के व्यवस्थापकों के ऊपर काल
है । तत्वार्थ की द्रव्य और गुणकी व्याख्या४ वैशेषिक द्रव्य के विषय में वैशेषिक४४ और मांख्य दोनों दर्शनों
दर्शन की ५० व्याख्या के साथ अधिक से अधिक साके मंतव्य की स्पष्ट छाप है; क्योंकि वैशेषिक दर्शन
दृश्य रखती है । तत्वार्थ और सांख्यदर्शनकी परिणामकाल को स्वतंत्र द्रव्य मानता है, जब कि सांख्य दर्शन सम्बंधी परिभाषा समान ही है । तत्वार्थ का द्रव्य,गुण ऐसा नहीं मानता । तत्वार्थ में सूचित किये गये काल और पर्याय रूपसे सत् पदार्थ का विवेक सांख्य के द्रव्य के स्वतंत्र अस्तित्व-नास्तित्व-विषयक दानों पक्ष, सन् और परिणामवादकी तथा वैशेषिक दर्शनके द्रव्य जो आगे जाकर दिगम्बर४५ और श्वेताम्बर परम्परा गुण और कर्म को मुख्य सत् माननं की प्रवृत्ति की की जुदी जदी मान्यता रूप से विभाजित हो गये हैं, याद दिलाता है। पहले से ही जैनदर्शनमें होंगे या उन्होने वैशेषिक और चारित्रमीम सा की मार बातें - जीवनम सांख्यदर्शन के विचार संघर्ष के परिणामस्वरूप किसी कौन कौन सी प्रवृत्तियाँ हेय हैं ? ऐसी हेय प्रवृत्तियोंका समय जैन दर्शन में स्थान प्राप्त किया होगा, यह एक मूल वीज क्या है ? हेय प्रवृत्तियोंको सेवन करने वाली शोध का विषय है। परन्तु एक बात तो दीपक जैसी के जीवनमें कैसा परिणाम आता है ? हेय प्रवृत्तियोंका
त्याग शक्य हो तो वह किस किस प्रकार के उपायोंमें ३६ तत्वार्थ ५, २ । ३७ "व्यवस्थातो नाना" ३, २, हो सकता है ? और हेय प्रवृत्तियों के स्थानमें किस २० । ३८ "पुरुषबहुत्वं सिद्धम्" ईश्वरकृष्णाकृत सांव्यका०
" प्रकार को प्रवृत्तियाँ जीवनमें दाखिल (प्रविष्ट) करनी? १८ । ३६ तत्वार्थ ५, २३-२८ । ४० देखा, 'तर्कपग्रह' पृथ्वी - -
४६ देखो, तत्वार्थ ५ २० और उसकी भाष्यत्तिा ४७ प्र मादि भूतों का निरूपण । ४१ ईश्वकृष्ण कृत सांव्यकारिका २२ से
शस्तिपाद, वायुनिरूपण पृ० ४८ । ४८ तत्वार्थ ५, ३२-३५ । मागे । ४२ तत्त्वार्थ ५,३८, । ४३ तत्वार्थ ५,२२, । ४४ वैशे- देखी, तत्वार्थ ५, ३७ और ४० । ५० देखा, कणादसूत्र षिक दर्शन २, २, ६ । ४५ देखो, कुन्दकुन्द के प्रक्कनसार और १, १, ५ मौर १६ जो उमास्वाति-विषयक पहले लेखमें उद्धृत है पंचास्तिकाय का कालनिरुपण तथा ५, ३६ की सर्वार्थसिद्धि । (भनेकान्त पृ. ३६०, ३६१)।