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भवदीय
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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ८, ९, १० क्षेपोंकी सृष्टि खड़ी की गई है। इस पर दिगम्बर जैन- म्बरमें साध्विये प्रायः नहीं हैं । अब तक मुझे यह पता। धर्मके अनुयायियों और खासकर उसके तरहपन्थी तक न था कि दिगम्बर समाजमें भी 'तेरहपन्थ मन' सम्प्रदायके भाइयोंको बहुत ही बरा मालम हुआ, है । सम्भव है कि श्री० सुमतिप्रसादजीन भ्रमवश ही उन्होंने दीक्षितजीके इस निरर्गल कथनको सिरसे पैर मेरे लेखका प्रतिवाद, जो श्वेताम्बर तेरहपन्थियांक तक बिलकुल झठा तथा बे-बनियाद समगा, क्योंकि किसी प्रकार अनुकूल पड़ता है, प्रकाशित कराया है। उनके धर्म में ऐसी एक भी बात नहीं है जिसका लेखमें कृपा बनी रहे । योग्य सेवा लिम्वें । उल्लेख किया गया है- उनका तरहपंथ सम्प्राय पूर्ण १४-७-३० ] अहिंसावादी, परोपकारपरायण तथा शुद्ध जैनधर्मका
शंकरप्रसाद दीक्षित उपामक है। इसलिये उनमें उक्त लेखक प्रतिवादका आन्दोलन प्रारंभ हुआ, जिसके फलस्वरूप वा० सु- दीक्षितजीके इस स्पष्टीकरणसे झगड़ा तो अब मतिप्रसादजी एल० सी० सा० (लन्दन), बी० ए० शान्त हो जाता है परन्तु यह कहे विना नहीं रहा विशारदन, श्वेताम्बरीक तरहपन्थ सम्प्रदायका परिचय जाता कि, लेखकोंकी थोड़ीमी असावधानीसे क्या कुछ न रवत हुए और यह समझते हुए कि यह लेग्व दिग- अनर्थ पैदा होता है और कितना क्षोभ तथा व्यर्थका म्बर तरहपन्थी सम्प्रदायको ही लक्ष करकं लिखा गगद्वेप खड़ा हो जाता है। यदि दीक्षितजीको दिगम्बरगया है, एक प्रतिवादात्मक लेख अप्रैल सन १९३० के तरहपन्थका पता नहीं था तो भी उन्हें जैनधर्मके मुख्य 'चाँद' में प्रकाशित कराया और उसमें दीक्षितजीके दो भेदों दिगम्बर तथा श्वेताम्बर मतका तो जरूर जैनधर्म तथा जैनमाहित्य-विषयक अज्ञान पर गहग पता था; यदि व जैनधर्म के साथमें 'श्वेताम्बर' ऐसा आक्षेप किया। इधर जैनमित्रमंडल दहलीके ज्वाइंट विशेषगण लगा देत अथवा 'श्वेताम्बर जेनसमाजक सेक्रेटरी बा०पन्नालालजी पं० शांभाचन्द्रजी भारिल्लको अन्तगन' मा मीधा तथा स्पष्ट उल्लेग्व कर दंत-और प्रतिवादात्मक लग्बके लिये अंगगा कर रहे थे कि उधर उन्हें करना चाहिये था- तो कुछ भी गलतफहमीके देवयांगम दीक्षितजी एक दिन बीकानेग्में भारिल्ल जी- पैदा होने के लिये अवमर नहीं था । परन्तु आपन ऐमा के मकान पर पहुँच गये । लेखमम्बन्धी वार्तालापर्क नहीं किया और, यह जानते हुए भी कि जैनियाक होने पर मालम हुआ कि उनका लंग्व एक मात्र श्व- अहिंसा धर्मकी महात्मा गाँधीजीजै असाधारण परनाम्बर-तरहपन्थ सम्प्रदायका लक्ष्य कर के लिग्वा गया प भी बहुत बड़ी प्रशंसा करते हैं, एक जगस छिद्रका है। दिगम्बर-तरहपंथका तो उन्हें अब तक पता तक लेकर-एक भले-भटके आधुनिक समाज की बातको नहीं था और इसलिये उन्होंने बड़ी प्रसन्नता पूर्वक पकड़ कर-मूल जैनधर्मको अपने आक्षेपका निशाना अपने लेग्य का स्पष्टीकरण लिख कर उन्हें दे दिया, जो बना डाला !-उसे हिमाप्रिय धर्मतक कह डाला!-, इस प्रकार है:
यह निःसन्देह एअ बड़ी ही असावधानी तथा अक्षम्य प्रिय महाशय,
भलका काम हुआ है। सावधान लेग्वक ऐसा कभी न___ जनवरीके चाँदमें मंग जो लेग्व 'मारवाड़का एक
ही कर सकतं । वे अपने आक्षेपांको ऐसा मीमित करते विचित्र मत' शीर्पक प्रकाशित हुआ है, वह दिगम्बर
हैं जिससे वे ठीक लक्ष्य पर पड़ें-३धर उधर नहीं । तरहपन्थियों के विषयमें नहीं है, किन्त श्वेताम्बर-तरह- आशा है दीक्षितजी भविष्यमें इस प्रकारकी अमावपन्थियोंके विषयमें है। यह बात लेख में उल्लिखित सा- धानास काम नहा लग। वियोंकी संख्या भली प्रकार प्रकट है, क्योंकि दिग
-सम्पादक