Book Title: Anekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 402
________________ वैशाख, ज्येष्ठ, वीरनि०सं०२४५६] अनेकान्त पर लोकमत ४२३ 'अनेकान्त' पर लोकमत | ६२ सम्पादक 'धन्वन्तरि' विजयगढ़, अलीगढ़- usuecess under your control. I am gland ___ "इस(अनेकान्त)के सभी लेख बड़ी गहन विवेचना, the issues hitherto published have more ऐतिहासिक गंभीरता और पांडित्यसे पूर्ण हैं । लेखोंका than fullilled all my expectations. Your चयन जैसी उत्तम शैलीसे हो रहा है उसे देखते हुए हमें expositions of the principles of the Jain पूर्ण आशा है कि जैन साहित्यके पाठकोंमें 'अनेकान्त' religion and of the antiquities of those अनेकों हृदयों पर अधिकार जमा लेगा और सफलता who have prosfosed it and spread it are प्रान करेगा। पत्र तुलनात्मक विज्ञान जिज्ञासओंके masterpieces of their kind, not only by अध्ययन करने योग्य है, और हम हृदयसे सहयोगीका their deep scholarship but by their perस्वागत करते हैं।" fect impartiality and their endeavour to ६३ श्री. नन्ददुलारेजी बाजपेयी. काशी reach truth, pure and simple ___ "आपके पत्रकी तीन-चार संख्याओंके लिए धन्य I wish yon, your institution and the magazine a long and prosperous life. It वाद देरसे दे रहा हूँ। मैंन साम्प्रदायिक पत्रोमें इतनी विचारगहनता बहुत कम देखी थी, आपकी उदार बुद्धि would be the duty of every lover of भी प्रशंसनीय है । मैं जैनी नहीं हूँ, पर आपके पत्रको Jainism to help you in your noble work वड़ी उत्सुकता और ध्यानसे पढ़ता हूँ।" in the cause of the true religion" ___'मैं अब आपके माननीय पत्र "अनेकान्त" की ६४ मिस्टर सी. एस. मल्लिनाथजी, मद्रास पाँच किरणें पढ़ गया हूँ और मुझे उस महती सेवाके "It is excelent in every way". लिये, जो आप जैन धर्मकी कर रहे हैं, आपको अतीव 'यह 'अनेकान्त' पत्र सब प्रकारसे उत्तम है'। हार्दिक धन्यवाद भेंट करना चाहिये । जब मुझे आप ६५ गिस्टर ए. बी. लह, दीवान साहब की पहली किरण मिली थी तभी मैंने आशा की थी यहाराजा कोल्हापुर कि यह पत्र आपकी अधीनतामें सफलताको प्राप्त होगा। “ I have now rend five issues of your मुझे हर्प है कि अब तक की प्रकाशित किरणोंने मेरी sleemed paper, the "Anckanta", and समग्र आशाओंको पूरा करनेमे भी कहीं अधिक काम must write toyoutooffer my very hearty किया है। जैनधर्मके सिद्धान्तों की और उन व्यक्तियों (ongratulations to you upon the great के प्राचीन समयोंकी जिन्होंने जैनधर्मको धारण किया ervice you hsve been doing for Jainism. तथा उसका प्रचार किया है, आपकी व्याख्याएँ अपने Even when I received your tirst kiran, ढंगकी अद्वितीय कृतियाँ हैं, महज़ इसी लिये नहीं Texpected that the magazine would be कि वे गहरे पांडित्यस पर्ण है बल्कि इस लिये भी कि

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