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फाल्गुण, वीर नि०सं०२४५५] वीरवाणी
२२९ इस प्रकार जिनशासन की उन्नति करनेवाला वक्रराय के बाद उसका पुत्र 'विदुहराय' कलिंगदेश भिक्खराय भनेक विध धर्मकार्य करके महावीर निर्वाण का अधिपति हुमा । से ३३० तीन सौ तीस वर्षोंके बाद स्वर्गवासी हुआ। विदुहरायनेभीएकाप्रचितसे जैनधर्मकी आराधना
भिक्खुराय के बाद उसका पुत्र 'वक्रराय' कलिंग की। निर्मन्थ-समूह से प्रशंसित यह राजा महावीर का अधिपति हुआ ।
निर्वाण से ३९५ तीनसौ पंचानवे वर्ष के बाद स्वर्गवासी वक्ररायभी जैनधर्मका अनुयायी और उन्नति करने हुआ।"* वाला था, धर्माराधन और समाधिके साथ यह वीर x उदयगिरि की मधपुरी गुफाके सातवें कमरेमें विदुराय' निर्वाण से ३६२ तीन सौ बासठ वर्ष के बाद स्वर्गवासी के नामका एक छोटा लेख है, उसमें लिखा है कि यह 'लयन' (गुफा)
कुमार विदुरावका है।' लेखके मूल शब्द नीचे दिये जाते हैं
"कुमार वदुरवस लेन" * कलिंग देशके उदयगिरि पर्वत की मानिकपुर गुफा के एक
-एपिग्राफिका इटिका जिल्द १३ । द्वार पर खुदा हुमा 'चक्रदेव' के नामका शिलालेख मिला है जो * कुछ महीनों पहिले 'हिमवंत-येरावली' नामक एक प्राक्त इसी 'वकराय' का है । लेख नीचे दिया जाता है
भाषामयी प्राचीन स्थविरावलीका गुजराती अनुवाद मेरे देखने में माया "वेरस महाराजस कलिंगाधिपतिनो महामेघवाहन था, जिसका परिचय मैने अपने (अप्रकाशित)निवन्ध "वीर संवत् मौर 'वकदेपसिरि' नो लेणं"
जैन कालगणना के अन्तमें परिशिष्टके तौरपर दिया है, उसी परिशिष्ट -मुनि जिनविजयसपादित प्राचीन जैनलेखसंग्रह भा.१०४ मेंका 'राजा खारवेल और उसका श' यह एक प्रकरण है।
हुआ।
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वीरवाणी
सोता था जब सकल विश्व अज्ञान-निशा में, होता था अन्याय अकारण दिशा दिशा में; करुणा, रक्षा, दया, प्रेम, व्याकुल रोते थे, हिन्सा, रोदन, रक्तपात, अविरल होते थे।।
तभी 'वीर-चाणी खिरी बालोकित जग हो गया। शान-दिवाकर-उदयसे मिथ्यातम सब खो गया ।
-कल्याणकमार जैन 'शशि' awaonnasnennuninovel