________________
अनेकान्त
अनेकान्त
वर्ष १, किरण ६, ७
सम्पादकीय
१ श्रद्धांजलि
उन्हींकी गोदमें छोड़कर क्रमशः चल बसे ! तब इम
के पालन पोषण तथा शिक्षणादिका कितना ही काम गांधीजी आज जेलमें हैं। उनकी इस जेल-यात्रा
मुझे करना पड़ा, मैंने अपने पास देवबन्द में रग्ब कर ' के संबंधमें कर्तव्यानगेधसे मैं 'अनेकान्त' के
इसको शिक्षा दी, फिर घरके बिगड़ जाने पर पंडिना पाठकोंके सामने अपने कुछ विचार रखना चाहता था चंदाबाईके आश्रममें पारा भेज कर ऊँची शिक्षा दि. परंतु प्रेस जमानत माँगे जानेकी आशंकासे इस प्रकार
लाई-जहाँ इसकी सती साध्वी बा 'गुणमाला वकी चर्चा तथा विचारोंको छापना नहीं चाहता। प्रेसकी
राबर छायाकी तरह इसके साथ रही और दादीजी ने इस परतन्त्रताके कारण मैं अपने विचारोंको 'अनंका
इस अनाथ बालिकाको हितसाधनाके लिये कोई भी न्त' के पाठकोंके सामने न रखनेके लिये मजबर हो
बात उठा नहीं रक्खी-उन्होंने इस वृद्धावस्थामें अपने गया हूँ; और इसलिए इस समय मैं गांधीजीक चर
सुख-आरामकी सारी बलि देकर और वियोगादिजणों में, निम्न पदके साथ, केवल अपनी श्रद्धांजलि ही
नित कितने ही कणोंको खशीस सह कर बड़ी ही स्तुअर्पण करता हूँ :
त्य वीरताका परिचय दिया। इस तरह अच्छी शिना महामना, निष्पाप, गष्ट्र हितु, जगक प्यारे,
दिलाकर १६ वर्षकी अवस्थामें मैंने इस बहनका विवाह हिंसासे अतिदूर, सौम्य, बहपूज्य हमार
उक्त सुयोग्य वरके साथ किया था, जिसकी अवस्था गाँधी-स नग्न जेल में ठेल दिये हैं !!
उस समय २२ वर्षकी थी और जो कुछ महीने बाद ही क्या आशा वे धरै नहीं जा जेल गये हैं ?
बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण हो गया था तथा बादको
एल.एल.बी. का इम्तिहान पास कर वकील भी बन २ दुःसह वियाग
गया था। इस प्रकार यह एक सुयोग्य जोड़ी मिली थी कैराना जि० मुजफफरनगरके प्रसिद्ध जैन रईम और सभी इस सम्बंधकी प्रशंसा करते थे । मुझे भी ला० मुकन्दलालजीके पौत्र और ला० जीयालालजीके अपने कर्तव्यक ठीक पालन होने पर आनंद था।जोड़ी सुपत्र चिम्बाब त्रिलोकचंदजी वकील आज इस संसार के फलस्वरूप एक सुन्दर पुत्रका भी लाभ हो गया था में नहीं हैं परन्तु उनकी सौम्य मूर्ति श्राज भी मेरी आँखो और इससे दोनों ओर खूब आनन्द बढ़ गया था तथा के सामने स्थित है और उनके हँसमुख चेहरे, उनकी आशालताएँ पल्लवित होने लगी थीं। परंतु दैवसे इन नम्रता तथा सज्जन प्रकृतिका स्मरण करा कर मुझे कष्ट का यह सब सुख चंदरोज भी देखा नहीं गया ! बच्चा देती है। इस नवयुवकके साथ मेरी एक बहन 'जयव- बीमार होकर कुछ महीनोंके बाद ही चलता बना! उस न्ती' का विवाहसम्बंध हुआ था । यह बहन नानौता का यहीं देहलीमें इलाज कराते हुए त्रिलोकचंदजी बीजिसहारनपरके जैनरईस ला०प्रभदयालजीकी सुपत्री मार पड़े, देहली, सहारनपुर, मेरठ आदि अनेक जगह है, जो कि मेरे एक करीबी रिश्तेदार (पिताके मामूंजाद महीनों ठहर कर इलाज कराया गया, अच्छे अच्छे डा. भाई ) ही नहीं किन्तु बहुत बड़े प्रेमी तथा मित्र थे। क्टरों वैद्यों तथा हकीमोंकी दवाई की गई परंतु किसी इसका जन्म मेरे सामने हुआ-मैं उस समय वहीं था से भी स्थायी लाभ कुछ नहीं हुआ । अन्तको पानीका -छोटी सी अबोध शैशवावस्थामें ही इसके पिता- इलाज करते हुए आप बिजनौरमें सोतीजीके पास गये, माता इसे एक मात्र वादी तथा बाके आधार पर- वहाँ जलोदर' की नई शिकायत मालम हुई, कुछ आराम