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अनेकान्त
वर्ष १, किरण पीड़ित नहीं ही बना, और इस प्रकार सत्यकी, न्याय के बिना हाय-हाय करता है । ईर्ष्या-द्वेष में जलना की, रक्षाके लिए प्राण गँवा दिये । वह अपनी पीड़ा रहता है । जो उसके पास होता है उसे भी छोड का का दूर करना स्वयं जानता था । उस यह सह्य नहीं आगे बढ़ता है, और न पाकर झंझनाते हुए अपना था कि वह पीड़क के हाथों पीसा जाय और फिर उसके जीवन बिता देता है। आर्तनादको सुन कर दूसरे लोग उसके साथ सहानु- इस प्रकार वासनाके पीछे धनी-गरीब सभी पारिन भूति दिखाएँ, उसके दुःखमें दुःखी हां, अत्याचारीको हैं । वामनाने उन्हें कायर बना दिया है। 'धन, धन. गालियों सुनायें, किन्तु उसकी पीड़ा कुछ भी कम न धन !' धनके पीछे ग़रीब-अमीर दोनों ही सब-कुछ कर सके।
करनंको तैयार हैं ? मत्य-न्यायका गला सबसे पहले __ याद आती है इस समय चित्तौड़की रानी पद्मिनी !
ये ही घोटने हैं। और फिर औरोंके द्वारा उनका गाना वह अपन महलकी समस्त स्त्रियों के साथ आग लगा
घोटा जाता है । जब सभी लोग इम तृष्णा कर भस्म हो गई, उसके सिपाही केसरिया बाना
वामनाके चक्कर में पड़ जाते हैं, तो इस चक्कर में पहनकर लड़ने-लडत मर गये पर पीडककी पापीप्यास
सभी एक दूमरेके लिए पीड़क और पीड़ित बन को न वझाया । अन्त को क्या हुआ ? अत्याचारी
जाते हैं । महाजन-ज़मींदार को वकील, मुख्तार नगरमें मुर्दे ही मुर्दै देख कर वापस लौट गया, उसकी
और कचहरीके नौकर लूटते हैं; किमानोंको महाजन अन्याय कामना पूरी न हुई। और इस प्रकार पीड़क,
जमींदार लूटने हैं; किमीको वनिया लुटता है, किमी पोडा और पीडित-किसीकी भी सटि न होने पाई।
को रेल घाले । जमींदार साहब अपने किसानों के कोड़े झांसीकी रानी लक्ष्मीबाईका भी कोन भूल सकता
नगवाने हैं, पर खुद जज साहबके पैर चुमते नजर आते है" मायके सामन, क्या की रक्षा । ना, अपने मार
हैं। कोई किसीका खयाल नहीं करता सभीको अपनी सुखोका बलिदान करने वालोके नाम इतिहास अमर
ही अपनी फिकर है । मबमे गया-बीता किमान ! उसे है। ऐसे ही लोग पृथ्वीका भार हलका करते है. पी४।
मारे ही काम अपने हाथों करने पड़ते हैं । लोग सोचते का जडसे नाश करते है, स्वयं पीड़ित नहीं बनने और
होंगे कि वह बेवाग किस पर अत्याचार करेगा ? और पीड़कोंकी उत्पत्ति में कारण भी नहीं बनने।
वासनाओं ने, ऐश्वर्यकी प्यासन अाज सबको सब अत्याचारी हो सकते हैं, किसान नहीं। किंतु इससे कायर बना दिया है । धना लोग मुफनकारुपया पाकर किसानकी बड़ाई नहीं। उसकी प्रशक्ति ही इमसे प्रकट तरह-तरह के ऐश-आरामों की सष्टि करते हैं । गरीब होती है । छोटा किसान सदा बड़ा किसान बनना लोग उन्हें देखकर ललचते हैं,भले बरे माधनोंसे उन्हें चाहता है, और बड़ा किमान जमींदार । जमींदार पानका अभ्यास करते हैं, न मिलने पर कुढ़ते हैं और बनते ही शक्तिका वह नशा उमको भी नम-नसमें सदा अपना जीवन दुःख में बिताते हैं । धनी की धन- दौड़ने लगता है। अपने पुराने साथियों को, अवसर पिपासा शान्त नहीं होती। वह सदा 'और-और' की पातं ही, वह भी उसी प्रकार पीड़ित करने लगता है। पुकार करता रहता है । उसीके पीछे पागल बना रहता पर वास्तवमें एक गरीबमे गरीब किसान भी जैसा है। वह कभी वास्तविक सुख नहीं पाना । गरीब पन भोला और महानुभूतिका पात्र दिखाई देता है, जैसा