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ॐ महम्
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परमोगमस्य बीजं निषिद्ध-जात्यन्ध-सिन्धुर-विधानम् । सकलनयविलसिताना विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ।।
-श्रीअमृतचन्द्रसरिः । वर्ष १
समन्तभद्राश्रम, करौलबारा, देहली ।
वैशाख, ज्येष्ठ, संवत् १९८७ वि०, वीर-निर्वाण सं०२४५६ सासाराल.......n.
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* प्रार्थना * मुझे है स्वामी ! उस बलकी दरकार।
असफलता की चोटों से नहिं, भड़ी खड़ी हों अमित भड़चनें, दिलमें पड़े दरार।। ___ाड़ी अटल अपार । अधिकाधिक उत्साहित होऊँ, तो भी कभी निराश निगोड़ी,
मानं कभी न हार ।। मुझं० ॥ फटक न पावे द्वार ।। मुझे ।।
दुख-दरिद्रता-कृत अति श्रममे, सारा ही संसार करे यदि,
तन होवे बेकार। दुर्व्यवहार प्रहार ।
नां भी कभी निरुद्यम हो नहिं, हटे न तो भी सत्यमार्ग-गन,
बैठं जगदाधार ॥ मुझे। अदा किसी प्रकार ।। मुझे ॥
जिसके भाग तन-बल धन-पल, धन-वैभवकी जिस भाँधीसे,
तृणवत तुच्छ असार । । अस्थिर सब संसार । महावीर जिन ! वही मनोपल, उमसे भी न कभी डिग पाव,
महामहिम सुखकार ॥ ___मन बन जाय पहार ॥ मुझे ॥ मुझे स्वामी, उस ही की दरकार ॥
नाथराम 'प्रेमी' UWWWWWW.B.edoawww.samrial
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